कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

बीना दास : हथियार उठाकर अंग्रेज़ों को धूल चटाने वाली एक क्रांतिकारी महिला थीं!

24 अगस्त 1911 को बीना दास, सुभाष चंद्र बोस के गुरू प्रसिद्ध ब्रह्मसमाजी शिक्षक बेनी माधव दास और समाज सेविका सरला देवी के घर पैदा हुई। 

24 अगस्त 1911 को बीना दास, सुभाष चंद्र बोस के गुरू प्रसिद्ध ब्रह्मसमाजी शिक्षक बेनी माधव दास और समाज सेविका सरला देवी के घर पैदा हुई। 

रूढ़िवादी समाज में जब हथियार चलाना पुरुषों का काम माना जाना था, तब मात्र 21 साल की उम्र में बीना दास ने हथियार उठाकर अंग्रेज़ों को धूल दी। बीना दास भारतीय महिला क्रांतिकारियों के सूची में अंग्रीम पंक्ति में खड़ी वह महिला क्रांतिकारी है, जिसने अंग्रेज़ी हुकूमत का विरोध करने के लिए सशस्त्र क्रांति को भी ज़रूरी समझा और गाँधीवादी आंदोलनों में भी शिरकत किया।

उनकी बहन कल्याणी दास के संस्मरण की समीक्षा में मकरंद परांजपे बताते हैं, “बीना अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल करके दर्द सहने की क्षमता जांचती थी। कभी ज़हरीली चींटियों के बिल पर अपना पैर रख देती, तो कभी अपनी उंगलियों को आग की लौ पर। वह सचमुच आग से खेलने वाली महिला क्रांतिकारी थी।”

बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव की थी

सुभाष चंद्र बोस के गुरू प्रसिद्ध ब्रह्मसमाजी शिक्षक बेनी माधव दास और समाज सेविका सरला देवी के घर पैदा हुई 24 अगस्त 1911 को बीना दास, बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव की थी। अपनी क्रांतिकारी बहन कल्याणी दास के साथ बीना स्कूल के दिनों से ही अंग्रज़ों के विरुद्ध होने वाली रैलियों और सभाओं में शिरकत करती थीं।

माँ सरला देवी के निराश्रित महिलाओं के लिए बनाए आश्रम ‘पुण्याश्रम’ में भी सहयोग करती थीं। ज़ाहिर है उनके स्वभाव में क्रांतिकारी चेतना और मानवीय मूल्य एक ही साथ पोषित हो रहे थे। ब्रह्मसमाजी परिवार के माहौल में देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत बीना दास के जीवन पर बंकिम चंद्र चटर्जी और गेरी वाल्डी जैसे लेखकों की रचना का खासा प्रभाव पड़ा, जिसने बीना के विचारों को दिशा देने का काम किया।

कॉलेज में धरने के साथ राजनीतिक सफर की शुरुआत

‘बैथुन कालेज’ में स्टूडेंट लाइफ के दौरान साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए कुछ महिला छात्राओं के साथ कॉलेज के दरवाज़े पर धरना देकर उन्होंने अपनी राजनीतिक सफर की शुरूआत की। ‘युंगातर’ क्रांतिकारी संगठन के साथ मिलकर दीक्षांत समारोह में डिग्री लेने के दौरान बंगाल के गर्वनर स्टेनली जैक्सन को अपनी गोली से निशाना बनाने का निश्चय किया। ‘युंगातर’ का सदस्य बनने के बाद बीना ने लाठी, तलवार और गाड़ी चलाना सीखा।

6 फरवरी 1932 को दीक्षांत समारोह में जब गर्वनर स्टेनली जैक्सन ने भाषण देना शुरू किया, तब सीट से उठी और गर्वरन के सामने आकर गोलीयां दांग दी। लेफ्टिनेंट कर्नल सुहरावर्दी ने दौड़कर बीना का गला एक हाथ से दबा दिया और दूसरे हाथ से पिस्तौल वाली कलाई पकड़ कर हॉल की छत की तरफ कर दी।

इसके बावजूद बीना एक के बाद एक गोलियां चलाती रहीं। उनका निशाना जब चूक गया तब उनको पकड़ लिया गया, मुकदमा चला और आनन-फानन में सारी कार्यवाही पूरी करके उनको 9 वर्ष की सज़ा हुई।

तमाम यातनाओं के बाद भी उन्होंने अपने किसी साथी का नाम नहीं बताया। अदालत में उन्होंने कहा, “बंगाल के गर्वनर उस सिस्टम का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने मेरे करोड़ों देशवासियों को गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ है। मैं गर्वनर की हत्या करके सिस्टम को हिला देना चाहती थी।”

सज़ा मिलने से पहले उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट में कहा, मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने सीनेट हाउस में अंतिम दीक्षांत समारोह के दिन गवर्नर पर गोली चलाई थी। मैं खुद को इसके लिए पूरी तरह से ज़िम्मेदार मानती हूं। अगर मेरी नियति मृत्यु है, तब मैं सरकार की उस निरंकुश प्रणाली से लड़ते हुए इसे अर्थपूर्ण बनाना चाहती हूं, जिसने मेरे देश और देशवासियों पर अनगिनत अत्याचार किए हैं”।

तीन वर्षों के लिए जब बीना को किया गया नज़रबंद

देश के प्रांतों में काँग्रेस की सरकार बनने के बाद उन्हें जेल से मुक्त किया गया। ‘भारत छोड़ों आंदोलन’ में उन्हें फिर तीन वर्षों के लिए नज़रबंद किया गया। उन्होंने क्रांतिकारी संगठन ‘युंगातर’ के सदस्य जतीन चंद्र भौमिख से विवाह किया, जिसके बाद भी वह देश के कामों में सक्रिय रहीं। आज़ादी मिलने के बाद बंगाल विधानसभा की सदस्य भी रहीं।

पति की मृत्यु के बाद बीना कोलकाता छोड़कर सरकार के द्वारा दी जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन लेने से इंकार करके ऋषिकेश के आश्रम में आकर रहने लगीं। अपना गुज़ारा करने के लिए उन्होंने शिक्षिका के तौर पर काम किया। आज़ादी की लड़ाई की इस महान वीरांगना का अंत त्रासद से भरा रहा है।

फ्लैश बैंक: बीना दास में प्रो. सत्यव्रत घोष बताते हैं, “उन्होंने सड़क किनारे अपना जीवन समाप्त किया। उनका मृत शरीर बहुत ही छिन्न-भिन्न अवस्था में था। रास्ते से गुज़रते लोगों को उनका शव मिला। पुलिस को सूचित करने के बाद पता चला कि यह शव बीना दास का है। यह सब उसी भारत में हुआ, जिसके लिए बीना दास ने सब कुछ ताक पर रख दिया।”

संदर्भ: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य बीना दास की बहन कल्याणी दास के संस्मरण ‘जीवन अध्याय’ से लिए गए हैं।

मूल चित्र : Wikipedia

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

240 Posts | 719,205 Views
All Categories