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अटूट बंधन

दादी माँ! आपको क्या उपहार मिला था, सुहाग रात में?

दादी माँ! आपको क्या उपहार मिला था, सुहाग रात में?

कल मेरी पोती की शादी है। घर में बहुत चहल- पहल हो रही है। पोती की सहेलियों ने उसे घेर रखा है। खूब हँसी-ठठ्ठा चल रहा है। तभी इस बात पर मंथन होने लगा कि, शादी की पहली रात(सुहाग रात) पर वो अपने पति को क्या उपहार देगी?

सभी सहेलियाँ, जो शादीशुदा थी, अपनी राम कहानी बताने लगीं, “मैंने तो ये गिफ्ट दिया, मुझको वो गिफ्ट मिला!”

मैं चुपचाप उनकी बातों का रस ले रही थी। तभी पोती की सहेली ने मुझसे पूछा, दादी माँ! आपको क्या उपहार मिला था, सुहाग रात में?
मैंने एक ठंडी साँस ली, और कहा, “मुझे कोई उपहार नहीं मिला था। मुझसे तो एक वादा लिया गया था!”

“क्या वादा?”

“हाँ! वादा।”

जब तेरे दादा जी कमरे में आए (पुराने लोग आज भी अपने पति का नाम नहीं लेते है) तो उन्होंने कहा, रज्जो! मैं तुमसे एक वादा लेना चाहता हूँ, कि मैं किसी भी प्रमुख त्योहार पर तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा!

मैंने पूछा, “क्यों?”

उन्होंने कहा , मेरी नानी माँ ने मुझे पाला है। मेरी माँ के अलावा उनकी कोई सन्तान नहीं थी। नाना की मृत्यु के बाद खेती बाड़ी, वही संभालती थी। उन्हें त्योहार मनाने का बड़ा शौक था। उस दिन वो पूरा घर, धो कर, उसे अच्छे से सजाती थीं। पूजा पाठ बहुत करती थीं।
जब उनकी मृत्यु का समय नजदीक आ गया, तो उन्होंने मुझे बुलाया और कहा,” ये सारे खेत-खलियान तुम्हारे हैं। इन्हें रखो, चाहे बेचो! लेकिन मेरा पुश्तैनी घर कभी नहीं बेचना। इसमें मेरे पूर्वजों का वास है। तुम मुझसे वादा करो, तुम हर त्योहार पर इस घर में दिया जलाने आओगे। मेरी देहरी को कभी त्योहार के दिन सूना नहीं रहने दोगे।”

“उनकी साँस, शायद मेरी हाँ की, ही प्रतीक्षा कर रही थी! मेरे हाँ कहते ही, उनकी आँखों में एक अलग चमक आ गयी और उन्होंने हमेशा के लिये आँखें बन्द कर लीं। मैं हर दीवाली, होली और दशहरा में, नानी माँ के गाँव जाऊँगा! तुम इस घर की बहू हो, इसलिए तुम्हें यहीं रह कर त्योहार मनाने होंगे।”

होली, दीवाली नहीं मनायी?”

“तो इतने सालों में, एक बार भी दादा जी ने, आपके साथ होली, दीवाली नहीं मनायी?”

“नहीं”, मैंने ठंडी साँस लेकर कहा।

“आपने कभी उन्हें जाने से रोका नहीं?”

“नहीं, उन्हें अपना फर्ज निभाने से कैसे रोकती? वैसे भी मना भी करती तो भी, तेरे दादा जी जाते, बुझे मन से जाते। इसलिए मैंने हमेशा उनसे कहा, यहाँ मैं हूँ, सब सम्भालने के लिये। आप निश्चिंत हो कर जाएँ।”

“रिश्ते निभाने के लिये, जरूरी है कि एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करें।”

“अच्छा, इसलिए दादा जी, आज भी आपको इतना प्यार करते है!”

इन बच्चों के दादा जी, जो किवाड़ के पीछे छिप कर, मेरी सारी बातें सुन रहे थे।

उनकी आँखों में अपने लिये, जो गर्व और निश्छल प्रेम देखा! वो ही मेरे जीवन का आधार हैं!

मूल चित्र: Canva

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