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क्यूँकि अब मैं तुम्हारी बातों में आने वाली अबला नारी नहीं…

जो लोग मुझे अभी भी अबला नारी समझते हैं, वे समझ लें कि बात घर की हो या आफिस या सामाजिक स्तर की, हर जगह मैंने अपनी योग्यता से कमान संभाल ली है!

जो लोग मुझे अभी भी अबला नारी समझते हैं, वे समझ लें कि बात घर की हो या आफिस या सामाजिक स्तर की, हर जगह मैंने अपनी योग्यता से कमान संभाल ली है!

हमारे समाज मे औरत को कई नामों से जाना जाता है, कोई स्त्री, तो कोई नारी बुलाता है। जितने उसके नाम उससे कहीं ज्यादा उससे जुड़े रिश्ते। जैसे माँ, बहन, बेटी, बहु, सहेली। आज हर क्षेत्र में चाहे देश हो या विदेश, वह अपनी भूमिका बखूबी निभा रही है। अब जिम्मेदारियां घर की हों या आफिस की या सामाजिक स्तर की, हर जगह उसने अपनी योग्यता से कमान संभाल ली है। और अपनी हुनर का लोहा मनवाया है।

जो लोग औरतों को अबला नारी समझते हैं, आज मेरा लेख ऐसे ही लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव एवं उनके नजरिये को बदलने के एक छोटी सी कोशिश है।

औरत ‘अबला नारी’ क्यों समझी जाती थी

अगर हम बात करें उस पुराने दौर की जब एक औरत अबला इसलिए समझी जाती थी क्योंकि न तो उसे शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखने की अनुमति होती थी और न ही समाज की सोच उसे पढ़ने और आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती थी।

उसका दायरा इतना सीमित था जो सिर्फ घरेलू कार्य तक ही  बंधा था, जैसे पर्दे में रहना, बच्चों की परवरिश, आदि। पुरुषों के समक्ष अपने विचार तक व्यक्त करने की अनुमति नहीं होती थी। तो समाज में अपने व्यक्तित्व को कैसे निखार पाती?

अबला नारी क्यूँकि उसके सपनों की कोई कीमत नहीं? 

अब इसे अबला नारी ही कहेंगे जिसे केवल बच्चे पैदा करने ओर परिवार की देखभाल करने ओर घरेलू कार्य तक ही सीमित रखा गया। और अगर हिम्मत करके वो शिक्षा के लिए ज़ोर डालती भी तो परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वह अपना वो सपना भी तोड़ देती। हालातों  के चलते उसे अपने घुटने टेकने ही पड़ते। दूसरों पर निर्भरता उन्हें उभरने नहीं देती और फिर नारी से अबला बनने में ज्यादा समय नहीं लगता।

परिवार ओर समाज दोनों दोषी 

इसमें पूरा-पूरा दोष सिर्फ नारी के माथे ही नहीं मढ़ सकते, बल्कि इसमें परिवार ओर समाज दोनों  ही दोषी हैं, जिन्होंने नारी की शिक्षा को ना तो ज्यादा अहमियत दी और न ही  ऐसी सोच को समाज ने पनपने दिया कि शिक्षा का अधिकार तो सभी के लिए सामान है।

आज नारी ने अपने आप को आत्मनिर्भर बनाया तो अबला नारी क्यों?

पर कहते हैं सभी का दिन आता है। आज की 21वी सदी की नारी वह अबला नारी नहीं रही। नारी ने उस सो कॉलड अबला नारी के टैग को अपने से अलग ही नहीं किया बल्कि अपने आपको इतना मजबूत और सक्षम किया कि कोई भी कार्यक्षेत्र रहा हो उस के हर जगह अपनी पकड़ बना ली है।

लोगों में शिक्षा के प्रति न केवल नजरिये में बदलाव आया है बल्कि लड़कियों ने भी अपने इस अधिकार का खुलकर फायदा उठाया। अपने आप को न केवल आत्मनिर्भर बनाया बल्कि अपने परिवार की जिम्मेदारियों को भी अपने कंधे पर लिया।

शिक्षा की अहमियत समझी नारी ने भी 

शिक्षा है ही ऐसी चीज है जो न केवल इंसान के हुनर को उसमे वजूद को तराशती है बल्कि उसे समानता का अधिकार भी दिलाती है, समाज में उसकी अपनी पहचान भी बनाती है। इंसान के लिए आगे बढ़ने के हर द्वार को खोलती है, बस ज़रूरत है लगन और मेहनत की।

आखिर वो पीछे क्यों रहे?

आज की नारी ने हर वो बंदिशें तोड़ दीं जिनसे वो आज तक जकड़ी जा रही थी। आखिर वो पीछे क्यों रहे? उन्हें उतना ही हक़ है जितना कि पुरुषों को। आज हर वर्ग के लोगों ने शिक्षा की समानता के अधिकार को न केवल स्वीकार किया है, बल्कि लोगों की सोच में भी बहुत बड़ा बदलाव आया है।

शक्षित नारी से हो विकसित समाज और देश  

ये बात पूर्णतया सत्य है कि अगर एक नारी शिक्षित होती है तो उससे ना केवल एक परिवार शिक्षित होती है अपितु समाज और देश के विकास में बहुत योगदान होता है। इसलिए अब कोई नारी को अबला रूपी ज़ंजीरो में न जकड़े, उसके महत्व को समझे और उसे उसके सपनों की उड़ान भरने में पूरा-पूरा सहयोग करे।

आज नारी जमीन पर पैर तो कसकर पकड़े हुए हैं ही, उसने आसमान को भी छूने के लिए कामयाब उड़ान भरी है और इस बात को कोई नजरअंदाज नही कर सकता।

हमारे सामने ऐसे अनेकों उदहारण हैं, जिनसे समाज और देश को न केवल गर्व महसूस होता है।  उनसे एक हौसला एवं सीख मिलती है कि शिक्षा ही वो उम्मीद है जिसके सहारे समाज का प्रत्येक इंसान, चाहे वो स्त्री हो या पुरुष सभी आगे बढ़ सकते हैं और देश को तरक्की के रास्ते पर लाने में अहम योगदान से सकते हैं।

मूल चित्र : Canva Pro 

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