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कभी परिवार पे, मुसीबत हो! पर पहले वो, अपना देश का फ़र्ज़ निभाते हैं! हाथ में राइफल लिए, वो दिन-रात खड़े रहते हैं। ना फिकर उन्हें कल की, वो आज जान हथेली पर लिए लड़ते हैं!
वो करते हैं, मुल्क की हिफाजत! उनके लिए ना ईद है, ना दीवाली! वो हैं, सरहद के सेनानी!
खुद की इच्छाओं को मार कर, परिवार से दूर करते हैं, देश की रक्षा!
जो कभी, अपनी माँ के लाडले थे! वो आज! भारत माँ के लिए, खुद को कुर्बान करने के लिए तैयार है!
ना मनपसंद खाना! ना वो ऐशो आराम! कभी जंगल में शाम! तो कभी बिन मन के काम!
महीनों तक, अपनों से दूर, सरहद पर मजबूर! अपनी बंदूक लिए वो तैयार हैं, दुश्मनों से लड़ने के लिए। दिल उनका भी करता होगा! घर का खाना खाने का! बच्चों के साथ खेलने का!
आज के वीडियो के जमाने में! वो एक! अपने परिवार से, एक वॉयस काल के लिए तरस जाते हैं।
कभी परिवार पे, मुसीबत हो! पर पहले वो, अपना देश का फ़र्ज़ निभाते हैं! हाथ में राइफल लिए, वो दिन-रात खड़े रहते हैं। ना फिकर उन्हें कल की, वो आज जान हथेली पर लिए लड़ते हैं। घर की जिम्मेदारियों को पीछे छोड़ कर, वो देश की रक्षा करते हैं।
ना भूख की उन्हें फिकर कोई, वो देश की रक्षा करते हैं। वो हैं, किसी के भाई, किसी के पति, किसी के पिता! पर देश की रक्षा के लिए, वो सब रिश्तों को पीछे रखते हैं।
सैनिक होना आसान नहीं, बहुत कुर्बानियाँ देनी पड़ती हैं, कभी माँ का आंचल, तो कभी बेटी का हाथ छोड़ना पड़ता है!
साल में दो महीने की छुट्टी मिलती है, जब परिवार पास होता है! वो लम्हा हसीन होता है, जब वो अपनों के साथ होते हैं। छुट्टी खत्म होने पर, वो फिर अपनी शपथ को पूरा करने निकलते हैं। चेहरे पे तो मुस्कान होती है, पर दिल पे उनके क्या गुजरती है? वो बस वही समझते हैं। अपनों से दूर! वो फिर निकल जाते हैं! खुद के अंदर, गम को छुपाए, बच्चों को हंसा के चले जाते हैं!
कभी ठंड में ठिठुर के देखो, कभी धूप में जल के देखो! कैसे होती है? मुल्क की हिफाजत! कभी सरहद पार चल कर देखो!
मूल चित्र: Canva
काश कोई लौटा दे मेरा वो मासूम सा, नादान सा बचपन!
उन दिनों माँ को कैसा लगता होगा मैं अब समझती हूँ…
वो माँ है तो क्या, थोड़ा बचपना अभी भी बाकी है
और हाँ, मैं मायके के कौले ठंडे करके नहीं आई
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