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सपनों की दुनिया

सबको परखा, अपनों को परख, परायों को परखा। पर खुद के सिवा, अपना कोई ना निकला!

सबको परखा, अपनों को परख, परायों को परखा। पर खुद के सिवा, अपना कोई ना निकला!

छोटी सी थी, दुनिया मेरी!
आंखों में बड़े-बड़े सपने थे!
मंजिल थी, दूर मेरी!
पर इरादे मेरे, मजबूत थे।
सपनों की इस दुनिया में,
कोई मेरे अपने थे, कोई पराए थे।

चेहरे पर मुस्कान लिए फिरती थी।
अपनों की दुआ लिए फिरती थी।
कोई दूर न हो मुझसे, यही फरियाद करती फिरती थी।

किसी की मोहताज नहीं थी, मैं।
पर खुदा ने बना दिया, मोहताज किसी का।

दिल के एक कोने में, एक ख्वाब भरा था!
जिस को पूरा करने का मन में, जुनून भरा था!

सबको परखा, अपनों को परख, परायों को परखा।
पर खुद के सिवा, अपना कोई ना निकला!
ना सपने पूरे हुए, ना अपने खुश हुए!
सपनों की दुनिया में, मैं अकेली, रह गयी!

मूल चित्र: Canva

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