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और मैंने अपनी दोस्त की ज़िंदगी में रोशनी भरने की ठान ली…

आज मुझे आप सब को ये बताते हुए ख़ुशी महसूस हो रही है कि हम दोनों का रिश्ता आज भी कॉलेज के दिनों जैसा है, ईश्वर ने मेरी दोस्त को मुझे फिर लौटा दिया!

आज मुझे आप सब को ये बताते हुए ख़ुशी महसूस हो रही है कि हम दोनों का रिश्ता आज भी कॉलेज के दिनों जैसा है, ईश्वर ने मेरी दोस्त को मुझे फिर लौटा दिया!

प्रिया के हँसमुख और मिलनसार स्वभाव से वह मेरी अच्छी सहेली बन गई थी। कॉलेज में हम जहाँ भी जाते जो भी करते, साथ में करते। हम दोनों का घर एक ही कॉलोनी में होने के कारण हम साथ में ही कॉलेज जाते थे। कॉलेज के पाँच साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला। इस बीच हमारी दोस्ती और गहरी होती गई।

कॉलेज पूरा होने के बाद हमारा ज्यादातर एक दूसरे के घर पर ही मिलना होता था। एक दिन वह बहुत खुश थी, उसने बताया कि उसके पापा ने उसकी शादी पक्की कर दी है।

किसी को बिना जाने-पहचाने, शादी करने को तैयार?

“अरे वाह ये तो बहुत खुशी की बात है, अच्छा कौन है वो, लकी परसन! क्या करता है?” मैंने उत्सुकता से पूछा!

“मैं तो उससे मिली भी नहीं हूँ, उसका नाम रवि है, इसके अलावा मुझे कुछ नहीं पता”, प्रिया ने कहा।

“आज के समय में किसी को बिना जाने-पहचाने, तू कैसे शादी करने को तैयार हो गई?” मैंने गुस्से से कहा।

“पापा उसके परिवार को जानते हैं, बहुत अच्छा परिवार है, उनका। मुझे पापा पर पूरा विश्वास है, वो जो करेंगे मेरे लिए बेस्ट होगा”, कहकर प्रिया ने मुझे चुप करा दिया।

मैं भी अपनी सहेली की खुशी में शामिल हो गई। एक महीने के अंदर बड़े धूमधाम से प्रिया की शादी हो गई। शादी के लगभग 15 दिन बाद उसका मैसेज आया। मैं झट से तैयार होकर उसके घर की तरफ चल दी। मन में बहुत से सवाल आ रहे थे, ‘रवि कैसा लगा उसे? ससुराल कैसा है? पहली रात कैसी रही?’ जैसे शरारती प्रश्नों को दिमाग में तैयार करते हुए, सीधा उसके कमरे में पहुँची।

शादी कर दो, सब ठीक हो जायेगा!

प्रिया ने जैसे ही मुझे देखा गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी।

“क्या हुआ मैडम? लगता है मायके आते ही पतिदेव की याद सताने लगी!” मैंने मज़ाक में उसको हँसाने की कोशिश की।

थोड़ा शांत होकर, उसने जो बताया, उसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, “लड़का मुझे शादी की रात ही छोड़कर चला गया, जहाँ वो जॉब करता था। मैं घूंघट में उसका इंतजार करती बैठी ही रह गई। बाहर रोना-धोना चलता रहा, पर मुझे समझ न आया कि क्या हुआ है? मुझे सुबह पता चला। सास ससुर मुझसे माफी मांग रहे थे। फोन पर लड़के को समझाने की कोशिश हुई, तो उसने फोन बंद कर लिया। जब पापा आये, मुझे सीने से लगाकर, बिलख-बिलख कर रोये। और पापा मुझे वापस ले आये।”

“लड़के का पहले से ही अफेयर था। कम से कम मुझसे एक बार बोल तो देता! उसके माँ बाप को भी पता था, उसके बारे में, लेकिन वही आम धारणा, कि शादी कर दो, सब ठीक हो जायेगा!”

उस लड़के ने मेरी दोस्त से शादी कर भी ली

“उस आज्ञाकारी औलाद ने शादी कर भी ली, मेरी जिंदगी बर्बाद करने के लिये! उस रात ने मेरी जिंदगी बदल कर रख दी! पापा भी बहुत दुखी हैं। इस सबका जिम्मेदार, वो स्वयं को मान रहे है। उन्होंने तो मेरा अच्छा ही सोचा था, पर वो भी साधारण इंसान ही हैं! कोई देवदूत नहीं!”

 प्रिया बहुत गहरे डिप्रेशन में चली गई थी

मुझसे प्रिया की हालत देखी न गई। थोड़ी देर रुकने के बाद, मैं घर आ गई। खुद पर भी गुस्सा आ रहा था कि मेरी प्रिय सहेली इतनी तकलीफ में थी और मुझे मजाक सूझ रहा था।

उस दिन के बाद से, अक्सर मैं ही, उससे मिलने चली जाया करती थी। उसका तलाक हो गया था। उसने खुद को एक कमरे में कैद सा कर लिया था। ना कभी बाहर जाना, ना किसी से बात करना, ना किसी की बातों पर कोई प्रतिक्रिया देना! वो बहुत गहरे डिप्रेशन में चली गई थी। उसे बहुत गहरा सदमा लगा था। हँसने-बोलने वाली प्रिया, जाने कहाँ खो गई थी? उसके बातूनी, चंचल स्वभाव को, मैं भूल नहीं पा रही थी।

प्रिया को शादी के नाम से भी नफरत होने लगी

मैं अपनी सहेली को किसी भी हालत में पहले जैसा देखना चाहती थी। एक रोज मैंने अपने बड़े भैया से उसका जिक्र किया। तभी भैया ने प्रिया से शादी करने की बात कही। भैया द्वारा शादी का प्रस्ताव रखने के बाद तो, मैं फूली नहीं समा रही थी। उन्होनें तो जैसे मेरे मुँह की बात ही छीन ली थी। पर सबसे मुश्किल काम था, प्रिया के साथ-साथ दोनों के परिवार वालों को तैयार करने का। घरवाले पहले तो गुस्सा हुए, पर बाद में मान गए। पर प्रिया का तो सबसे भरोसा ही उठ गया था। उसे तो शादी के नाम से भी नफरत होने लगी थी।

मैंने उसे भैया से मिलवाने का फैसला किया। और एक दिन भैया को लेकर उसके घर पहुँच गई। प्रिया अपने कमरे में ही अँधेरे में बैठी थी। यकीन नहीं होता था मुझे, यह देखकर की हमेशा रोशनी की तरह चमकने वाली, मेरी दोस्त आज रोशनी से ही डरने लगी है।

मेरे भैया प्रिया के पास गए

तभी भैया प्रिया के पास जाकर बोले, “अच्छा-बुरा सबके साथ होता है, यह प्रकृति का नियम है। आप मुरझाई हुई अच्छी नहीं लगती! किसी और की गलती की सजा खुद को क्यूँ देनी? अपने चारों तरफ देखो! ये दुनिया बहुत खूबसूरत है। अंदर प्रेम न हो तो, बाहर की खूबसूरती भी नहीं दिखती, प्रिया जी!”

प्रिया ने कोई जवाब न दिया। पर मैं हिम्मत हारने वालों में से नहीं थी। प्रिया को गम से उबारने के लिए, भैया ने भी मेरा पूरा साथ दिया। कुछ महीनों में उसकी हालत सुधरने लगी। कभी-कभी मेरे साथ बाहर घूमने भी जाती। उसने फिर से हँसना, बात करना शुरु कर दिया था।

आज वही प्रिया, मेरी भाभी है। वही पुरानी वाली प्रिया! वही खिलखिलाहट, वही चंचलता! भैया से शादी हुए पाँच साल हो गए हैं। एक बेटी भी है, फूल जैसी!

आज कभी-कभी जब सोचती हूँ, तो बहुत खुशी होती है कि मैंने अपनी दोस्त को, अँधेरे में गुम होने से बचा लिया। हम दोनों का रिश्ता आज भी वैसा ही है, जैसा कॉलेज के दिनों में हुआ करता था। ईश्वर ने मेरी दोस्त को मुझे फिर लौटा दिया!

मूल चित्र : Canva

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Babita Kushwaha

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