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आजकल रिश्ते होते हैं, कॉरपोरेट जगत के जैसे औपचारिक! ये कहाँ, हमारी रुहानी बात समझते हैं? ये तो बस ऊपरी चकाचौंध में, चमकते हैं।
जब कभी, दर्द का प्याला भर जाता है, वो छलकता ही है। कभी बातों में! कभी आँखों से! कभी शब्दों में ढलकर! कागज के पन्नों पर!
हमारा चेहरा, हमारी बातें, हमारे मन का आईना ही तो हैं। जैसे मन के भाव होते हैं, वही झलकता है। ये बात और है कि आजकल वो आइने ही नहीं मिलते, जो दिखा दें, दर्द आपके चेहरे का। वो दोस्त भी, कम होते हैं, जो पढ़ लें, दर्द आपकी आँखों से।
आपकी कही-अनकही समझ जायें, ऐसे रिश्ते ही कम होते हैं। आपकी खुशी! आपकी सफलता! उनके आँखों की चमक बढ़ा दें, कितने होते हैं, ऐसे रिश्ते हमारे पास?
आजकल रिश्ते होते हैं, गुलदस्ते के फूलों जैसे, नफासत से सजे हुए, पर प्लास्टिक के फूलों वाले गुलदस्ते! सलीके से सजायी गई, खाने की मेज जैसे, जिसमें तहज़ीब से बैठ कर, थोड़ा सा खा कर, हम उठ जाएँ।
कॉरपोरेट जगत के जैसे! औपचारिक होते हैं, रिश्ते! जहां ‘आप कैसे हैं’ के जबाव में, ‘बहुत अच्छा’ ही कहना होता है!
पर ये कहाँ, हमारी रुहानी बात समझते हैं? ये तो बस ऊपरी चकाचौंध में, चमकते हैं। जिसे आप मंहगी क्राकरी की तरह सम्भाल कर, गहनों सा सहेज कर, त्योहारों सा सजाकर, अच्छे दिनों में, इस्तेमाल के लिए रखते हैं।
दिल ये सब नहीं समझता! वो यहां, ज्यादा नहीं जुड़ता! दिल को तो समझ आती है, केवल एक ही भाषा! जो बोले प्यार और अपनेपन की परिभाषा! जो ना सिर्फ हमारी गलतियों पर फटकारे। अपितु उन्हें सम्भाले भी।
जिन्हें हम चलकर बताएँ, अपनी गलतियों के किस्से! पता हो जिन्हें हमारे, अधूरे हिस्से! बाते हों जिनसे, बिना नापे-तौले! कभी भी, जिनके गले लग रो लें!
नाइट सूट में, बेतरतीब घर में भी, चाय की चुस्कियों पर, ठहाके भी लगा लें! आधी रात! जिन्हें कर सकें, परेशान! बिना भूमिका के कर सकें, तकलीफ बयान। दिल बस! ऐसे ही, रिश्ते अपनाता है, वरना चुप्पी साध लेता है!
पर समस्या ये है कि, ऐसे रिश्ते मिलते नहीं! जबरन बनते नहीं! बस होते हैं, आपकी जिंदगी में बहुत कम! पर दिल के घावों पर मरहम, जैसे होते हैं ये रिश्ते!
ईश्वर का शुक्र मनाती हूँ! कि है ऐसे रिश्ते मेरे पास! और परिवार से बढ़कर होता है, ये अनोखा परिवार। मन से मन मिलकर बनता है, रिश्तों का ये खूबसूरत हार।
मूल चित्र: Canva
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