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जब अपनी कहानी मैं खुद कहने लगी, तो तुम कहते हो मैं स्त्रीवादी हूँ?

इतिहास गवाह है कि कल से ले कर आज तक, और ना जाने कितने और कल तक, मर्द के लिए औरत बस अपनी जीत का डंका पीटने का एक ज़रिया रही है... 

इतिहास गवाह है कि कल से ले कर आज तक, और ना जाने कितने और कल तक, मर्द के लिए औरत बस अपनी जीत का डंका पीटने का एक ज़रिया रही है… 

मैं पढ़ती हूँ इतिहास
कहानी की तरह
वही कहानी जो मेरी है
वही कहानी जो तुम्हारी है
फ़र्क़ बस इतना है
तुम भोग रहे थे
मैं भोगी जा रही थी…

मैं पढ़ती हूँ तुम्हारी सिद्धि
जो गुजरती थी
मेरे जिस्म से होते हुए
तुम्हारे ईश्वर की ओर
और मैं बन जाती थी
मात्र इक ज़रिया…

मैं पढ़ रही थी
तुम्हारी वीरता
जहां अपने पौरुष का दम्भ भरने को
जीत ले जाते थे तुम मुझे
और इतिहास कहता है
तुम प्रेम करते थे मुझसे…

मैं पढ़ रही थी
तुम्हारी ख्याति
जब यति गति में समेट
मेरे नखशिख वर्णन को
तुम बटोर रहे थे
अपना नाम…

मै पढ़ने लगी जैसे ही
बदलाव की बयार
तुमने कहा महान हूँ मै
और जोड़ दिया मेरा अस्तित्त्व
धर्म ममत्व कर्तव्य से
और बन बैठे
मेरे सामन्त…

पढ़ कर तुम्हारी सिद्धि
जान कर तुम्हारा प्रेम
देख तुम्हारा सौंदर्यवर्णन
अब जब मैं लिखने लगी
अपनी कहानी खुद
तुम कहते हो
मैं स्त्रीवादी हूँ?

मूल चित्र : Pexels

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