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कुछ लोगों को शिकवा है मुझसे, तुम हो गए हो बदले बदले। जो पत्ते पेड़ से टूट गए, क्या अब भी वो रंग ना बदले? क्या अब भी वो रंग ना बदले?
कुछ लोगों को शिकवा है मुझसे, तुम हो गए हो बदले बदले। जो पत्ते पेड़ से टूट गए, क्या अब भी वो रंग ना बदले?
कहते हैं प्रकृति का नियम है ये, बदलाव ही तो जीवन है। गर मैं भी ज़रा सी बदल गई, तो क्यूँ कहते तुम हो बदले?
तितली की तरह उन्मुक्त उड़ूँ, पन्छी की तरह पर फहराऊँ। पानी की तरह मैं बह जाऊं, कोई चाह नहीं इसके बदले।
मैं तो खेल रही थी वैसे ही, जैसे पत्ते मुझको थे मिले। तुमने ही बाजी पलट डाली, तुमने ही पत्ते अदले-बदले।
मुझसे तो शिकायत है सबको, पर झाँको ज़रा अपने भीतर। क्या तुम भी पहले ऐसे थे? क्या तुम नहीं बदले बदले?
कुछ लोगों को शिकायत है मुझसे , तुम हो गए हो बदले बदले। जो पत्ते पेड़ से टूट गए, क्या अब भी वो रंग ना बदले?
मूल चित्र : Canva
Samidha Naveen Varma Blogger | Writer | Translator | YouTuber • Postgraduate in English Literature. • Blogger at Women's
तुम मुझे क्या छोड़ोगे, तुम तो ख़ुद अपनी क़ैद में हो…
न जाने क्यों अब मुझे इस लाल रंग से डर लगने लगा है…
कृष्णकली तुम श्रेष्ठ हो, अपराजित हो
मेरा हाथ बटाने में क्या तुम्हारा अपमान होता है…
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