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मैं मुस्कुरा रही थी, किन्तु मुझे अपनी योनी में कुछ रेंगता सा महसूस हो रहा था और अचानक वह काला अजगर मेरे जाँघों के मध्य से निकल, मेरे सम्मुख खड़ा हो गया था।
चोट दिखाई दे जरूरी तो नहीं, कुछ जख्मों के निशां नहीं मिलतें।
प्रत्येक चेहरा अपने भीतर अनेक चेहरों को गुप्त रखता है। जब जैसी भीड़, वैसा चेहरा। इन सभी चेहरों की बोझ में कब उसका वास्तविक चेहरा लापता हो जाता है, इससे वह स्वयं अनभिज्ञ रहता है। ओढ़ा हुआ झूठ, एक दिन उसका सच बन जाता है।
आज यह कमरा अनगिनत मुस्कुराते चेहरों से भरा हुआ था। न मालूम इनमे से कितनें मुस्कुरा रहे थें, अथवा मुस्कुराने का अभिनय भर कर रहे थें।
अमित सभी के अभिवादन का उत्तर मुस्कुरा कर ही दे रहे थे। आज हमारी शादी की सालगिरह थी, और यह पार्टी उसी के उपलक्ष्य में दी गयी थी। मैं भी अमित के साथ ही थी। नारंगी बॉर्डर की काली चंदेरी साड़ी के साथ मैंने सफ़ेद डायमंड का सेट पहन रखा था। यह उपहार अभी कुछ समय पूर्व उन्होंने स्वयं मुझे पहनाया था। पहना कर कुछ समय तक मुझे अपलक निहारते रह गए थे। मेहमानों की इस भीड़ में भी उनकी नजरें मुझ पर आकर ठहर जा रही थीं। उनकी आँखों की झील में मेरे लिए तैरते प्रणय तथा प्रशंसा के डोरों को सभी देख रहे थे।
“यार! शादी के दस साल और तेरा पति आज भी तुझे पलट कर देखता है, अमित को कौन से मंत्र द्वारा बाँध रखा है?”
“आप सब दुआ करें कि इस बंधन में हम ताउम्र कैद रहें!” अमित ने पीछे से आकर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया था।
“तू बहुत भाग्यशाली है, जो तुझे अमित जैसा पति मिला!” मेरी सहेली जया ने कहा था।
“जी नहीं, यहाँ आप गलत हैं। लोग तो परियों का ख़्वाब देखते हैं, हम तो इस ख़्वाब को जीते हैं। अब कहें, भाग्यशाली कौन हुआ?” अमित ने मेरी पतली कमर को अपनी मजबूत बाँहों में भर लिया, और मुझे डांस फ्लोर पर ले आये थे। सभी लोग तालियाँ बजाने लगे थे।
मैं मुस्कुरा रही थी, किन्तु मुझे अपनी योनी में कुछ रेंगता सा महसूस हो रहा था। जिस पीड़ा का अनुभव मैं वर्षों से कर रही थी, उसने आज मुझे चारों दिशाओं से घेर लिया था। अचानक ही वह काला अजगर मेरे दोनों जाँघों के मध्य से निकल, मेरे सम्मुख खड़ा हो गया था। इससे पूर्व कि मैं चीखती उसने मुझे डस लिया। मूर्छित होने से पूर्व, मैंने उस अजगर के दीर्घ उच्छ्वास को अपने कानों में अनुभव किया था।
मैं! मुझसे परिचय तो रह ही गया। किन्तु, मैं तो स्वयं अपना परिचय भूल गयी हूँ, आपको क्या बताऊँ!? नाम?! मिसेज अमित चंद? नहीं-नहीं! आरंभ कहती हूँ, सम्भवतः मुझे मेरा विस्मृत परिचय प्राप्त हो जाये।
मेरे पिता ने मेरा नाम प्रतिभा रखा था। तीन बहनों में, मैं तीसरे स्थान पर थी। पिता बहुत धनवान नहीं थे, किन्तु विद्या धन का महत्व समझते थे। सभी बेटियों को पढ़ाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हम सभी बहनें पढ़ने में होशियार भी थीं।
किन्तु, मेरी माँ की राय पिता से भिन्न थी। उनके अनुसार स्त्री परजीवी के समान होती है। अत: स्त्री जीवन का लक्ष्य मात्र सशक्त पुरुष की तलाश है। दीदी भाग्यहीन थीं, उनकी तलाश ने अधिक समय ले लिया, और वे एक सरकारी बैंक में नौकरी पा गयी थीं। बड़ी दीदी के विवाह के पश्चात, माँ छोटी दीदी की विदाई की तैयारी में लग गई थीं।
छोटी दीदी के साँवले रंग ने उनकी तलाश को कुछ अधिक ही लम्बा कर दिया। इस मध्य उन्होंने एक सरकारी स्कूल में नौकरी पा ली और मैंने बी एड कर लिया था। किन्तु, मैं भाग्यशाली थी, छोटी दीदी को देखने आये लड़के, अमित का दिल मुझ पर आ गया था।
उच्च पद पर आसीन लड़के का मोह मेरे माता-पिता नहीं छोड़ पाये थे। उस पर से अमित के आधुनिक विचारों ने मेरे पिता के साथ-साथ मेरा भी मन मोह लिया था। शादी में उनके परिवार की तरफ से किसी तरह की कोई अनुचित माँग भी नहीं रखी गयी थी। अमित को शादी के बाद मेरे नौकरी करने से भी कोई आपति नहीं थी। यहाँ तक की मेरे एम्.एड करने का प्रस्ताव भी उन्होंने ही रखा था।
अमित के गुणों को सभी ने देखा, किन्तु छोटी दीदी के अपमान की सभी ने उपेक्षा कर दी थी। सपनों के बादलों पर सवार मैं अमित के घर आ गयी थी।
शादी के कुछ दिनों बाद ही मैं अमित के साथ मुंबई आ गयी। मैंने एक दो बार उनसे अपनी नौकरी की बात भी कही, किन्तु अमित ने व्यस्त होने की बात कहकर टाल दिया था।
सब कुछ सामान्य ही चल रहा था कि, एक रात उस अजगर से मेरा साक्षतकार हो गया था।
उस रात मैं अमित से एक स्कूल के बारे में बात कर रही थी, “अमित, ब्रिलियंट समर स्कूल में मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया है। ”
“हम्म..” अमित की उँगलियाँ कभी मेरे बालों से खेल रही थीं तो कभी मेरे होठों पर ठहर जा रही थीं।
“अमित, आप सुन भी रहे हैं?”
“सुन भी रहा हूँ और समझ भी रहा हूँ। लेकिन तुम मुझे और मेरे शरीर के इशारों को नहीं समझ पा रही।” इतना कह वे मेरे ऊपर आ गए और मेरे दोनों हाथों को अपनी मजबूत हाथों में बाँध लिया था।
“नहीं अमित…..आज नहीं..!”
मेरी आवाज मेरे गले में घुट के रह गयी। मैं कुछ कहना चाह ही रही थी कि, मेरे सामने पल भर के लिए न जाने कहाँ से एक काला अजगर आ गया था। पूरी रात वह मुझे डसता रहा और मैं जीवित रही।
अगली सुबह, मैं चाहकर भी अमित से कुछ नहीं कह पाई थी। अमित मुझे स्वयं स्कूल ले कर गए। इंटरव्यू भी अच्छा हुआ था। मैं खुश भी थी। मैं उस अजगर को अपना भ्रम समझ कर भूल ही रही थी कि, वह पुनः मेरे सामने आ गया, और इस बार जो आया फिर कभी गया ही नहीं।
मेरे और अमित के साथ वह भी इस घर में रहने लगा था। आरम्भ में वह दिन के उजाले में सामने नहीं आता था। किन्तु, हर रात वह हमारे शयनकक्ष में जरूर आता, और मेरे शरीर पर अपना एकाधिकार स्थापित कर चला जाता। फिर धीरे-धीरे वह दिन के उजाले में भी मुझे डसने लगा था।
इसी दौरान मुझे मेरे चयन की खुशखबरी प्राप्त हुई थी। मैं अभी खुश हो ही रही थी कि, अमित ने डाक्टर की रिपोर्ट मेरे हाथ में थमा दी।
कुछ दिनों पूर्व मैं शौपिंग मॉल में बेहोश हो गयी थी। अमित ने ही जिद कर मेरे सम्पूर्ण शरीर की जाँच करा दी थी। यह रिपोर्ट उसी जाँच की थी। रिपोर्ट के अनुसार, मैं प्रेग्नेंट थी।
“प्रतिभा, नौकरी अथवा हमारा बच्चा, निर्णय तुम्हारा होगा। मैं मात्र इतना कह सकता हूँ कि, माँ बनने का सुख किसी भी आर्थिक सुख से अधिक होता है।”
इतना कहने के अतिरिक्त अमित ने मुझ पर कभी कोई दबाव नहीं डाला था। मैंने अपने नौकरी के सपने को भूला दिया और अपनी इस नवीन भूमिका को अंगीकार कर लिया था।
उस रात वह अजगर बहुत प्रसन्न हुआ था। मेरे आर्थिक स्वावलंबन को कुचलने की उसकी योजना कामयाब हुई थी। मुझे अपनी कायरता पर लज्जा भी आई, किन्तु मैं उसका विरोध उस रात भी नहीं कर पाई थी।
मेरी गर्भवस्था में मेरी सास मेरे पास रहने आई थीं। मैंने उन्हें भी बताने का प्रयास किया था, किन्तु, एक स्त्री कितनी कटु हो सकती है, इसका अंदाजा तब लग जाता है जब वह माँ से सास बन जाती है। प्रथम गर्भकाल में मैंने वह मानसिक और शारीरिक यातना झेली, जिसे शब्दों में उतारना संभव भी नहीं।
इसका परिणाम यह हुआ कि, मैंने एक मृत शिशु को जन्म दिया। अमित का रुंदन देख सभी रिश्तेदारों की आँखें भर आई थीं। किंतु, मैं प्रसन्न थी। जो मरा, उसकी वास्तविकता से लोग अनभिज्ञ थे, मैं नहीं! वह शिशु नहीं, एक और अजगर था।
इस घटना के पश्चात भी मेरी स्थिति में अधिक परिवर्तन नहीं आया था। हाँ, मेरी सास चली गयी थीं। अमित मेरा बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन उस समय तक मैंने अपने जीवन में अजगर की उपस्थिति को स्वीकार कर लिया था।
मैं जीवित थी, साँस जो ले रही थी। मैं मृत भी थी, अंदर सब सूख जो गया था। अजगर मेरा मालिक था और मैं उसकी बँधुआ। मालिक को ना कहने का अधिकार समाज ने मुझे नहीं दिया था।
आप उसे नहीं देख पा रहे होंगे। किन्तु, वह आप सभी सभ्य कहे जाने वाले लोगों के मध्य है। नारी सशक्तिकरण का हिमायती है, समाज में पूजनीय है। एक कमजोर स्त्री की आड़ में फन फैलाकर बैठा है।
पिछले कुछ महीनों से अजगर मुझे डसने से पूर्व, मेरे साथ कोमलता से खेलने लगा था। मैं समझ गई थी, यह पुनः एक नए अजगर को लाने की तैयारी थी। उसके सम्मुख मेरी अनिच्छा का कोई महत्व नहीं था। उसके लिए मैं एक बर्तन मात्र ही तो थी। जिस दिन मुझे मेरे शरीर में उस अजगर के अंश का समाचार प्राप्त हुआ, मैं पलायन के रास्ते खोजने लगी थी।
मुझमें उसके सम्मुख खड़े होने का साहस तो कभी नहीं आया, किन्तु अपने शरीर के अंत का आ गया था। इस अंत में मुझे अजगर की पराजय प्रतीत हो रही थी।
मैंने कल पार्टी की योजनाओं के मध्य ही, उस अजगर को पराजित करने की योजना बना ली थी। बड़ी होशियारी से आज अपनी ड्रिंक में वह दवा मिला ली थी। अब मेरी यह मूर्छा कभी नहीं टूटेगी। सम्भवतः कही से वह अजगर भी मुझे देख रहा होगा। मुझे मेरी भूमिका में पुनः उतारना चाहता होगा। वह मुझे अस्पताल भी ले आया था।
यहाँ डाक्टर मुझे होश में लाने के प्रयास में लगे हुए हैं। किन्तु, मुर्दे के मरने का समय आ गया था।
जानती हूँ, आप मुझे कायर समझ रहें होंगें। सही है। कायर ही तो हूँ, तभी तो पहले दिन ही मैं उस अजगर का फन नहीं कुचल पाई थी। मैं पढ़ी-लिखी थी, चाहती तो थोड़े प्रयास से एक नौकरी भी पा जाती, फिर क्यों साहस नहीं कर पाई? अब इस सब का क्या लाभ, अब तो चिरनिद्रा का समय आ गया था। फिर, इस विदा की घड़ी में कौन मेरे कानों के पास आकर स्वागत गान गा रहा था।
“मम्मा! मम्मा!”
शीतल मंद बयार सा वह स्वर मुझे स्पंदित कर गया था। गर्म गंगाजल की बूंदें मेरे गालों को लगातार भिंगो रही थीं। जैसे मेरी मृत आत्मा को जीवन दान मिला था। वर्षों पूर्व से बंजर पड़ी इस धरती पर एक पौधा निकल आया था। मैं खुली आँखों से जो सत्य नहीं देख पा रही थी, बंद आँखों ने वह मेरे सामने रख दिया था।
मेरे भीतर मेरा ही अंश साँसे ले रहा था। मेरी रूह में उसकी धड़कन मिली हुई थी। उसका लिंग कोई मायने नहीं रखता क्योंकि वो मैं थी। यदि आज भी मैंने संघर्ष नहीं किया तो यह उस अजगर की नहीं मेरी आत्मा की हार होगी, एक स्त्री होने के मेरे अधिकर की हार होगी, मेरे भीतर अंकुरित हुए मातृत्व की हार होगी।
व्यक्ति का मृत साहस जब पुनर्जीवित होता है, वह अजेय हो जाता है। मैंने आँखे खोल ली थीं। डॉक्टर के बताने से पूर्व ही मैं जान गई थी, मैं और मेरा शिशु इस संघर्ष में विजयी हुए थे।
मेरे निकट आते अजगर पर मेरी स्वतंत्र, दृढ़ तथा निर्णायक नजरें ठहर गयी थीं। अजगर अब सिकुड़ने लगा था।
कमरे के दाहिने कोने से, एक महिला पुलिस अधिकारी मुझे निहार रही थी। आप भी निश्चित होकर जाएं, मेरे उठने का समय हो गया है।
मूल चित्र : Pexels
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