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‘फेयर एंड लवली’ से फेयर शब्द हटाना ही क्या रंगभेद को रोकने के लिए काफी है?

हिंदुस्तान यूनीलीवर फेयर एंड लवली से फेयर शब्द हटाने जा रही है जो कि अपने आप में एक ऐतहासिक कदम है लेकिन क्या इतना काफी है? 

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हिंदुस्तान यूनीलीवर फेयर एंड लवली से फेयर शब्द हटाने जा रही है जो कि अपने आप में एक ऐतहासिक कदम है लेकिन क्या इतना काफी है? 

अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लायड की मौत के बाद दुनियाभर में अश्वेतों से भेदभाव को लेकर ‘ब्लैक लाइव्ज़ मैटर’ अभियान चल रहा है जिसे कई दिग्गज सेलिब्रिटीज़ और नामी कंपनियों ने अपना समर्थन दिया। 

जॉनसन और जॉनसन उन सभी प्रोडक्ट्स का उत्पादन और बिक्री नहीं करेगा जो रंगभेद को बढ़ावा देते है 

इसी सिलसिले में अमेरिकन कंपनी जॉनसन और जॉनसन ने घोषणा की कि वह अपने उन प्रोडक्ट्स का उत्पादन और बिक्री नहीं करेगा जो रंगभेद को बढ़ावा देते है। वह अपने प्रोडक्ट ‘बैंडएड’ की स्किन कलर वाली पट्टी को गहरे काले और भूरे रंग का करने जा रही है।  

शादी डॉट कॉम ने अपना सर्च पैटर्न बदला

इसके अलावा शादी डॉट कॉम ने वेबसाइट से उस ऑप्शन को हटा दिया है जिसके तहत लोग स्किन टोन के आधार पर अपने पार्टनर को सर्च कर सकते थे। 

फेयर एंड लवली फेयरनेस क्रीम के खिलाफ पेटिशन साइन किये गए

इस फैसले की बाद हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड के फेयर एंड लवली फेयरनेस क्रीम के खिलाफ भी पूरी दुनिया में लगभग 3 अलग अलग पेटिशन साइन किये गए, जिसे सभी ने सपोर्ट किया। इसी के चलते फेयर एंड लवली ने 45 साल बाद सबक लिया है और अब अपने प्रोडक्ट में से फेयर शब्द हटाने का निर्णय लिया है। 

कई सालों से इसकी आलोचना करी जा रही है

हिन्दुस्तान यूनीलीवर का कहना है कि उस पर कई सालों से आरोप लग रहे हैं कि त्वचा के रंग को लेकर वह समाज में रंगभेद को बढ़ा रही है, जिसके चलते ये फैसला लिया गया है। यूनीलीवर और उसकी भारतीय सहायक हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) की हमेशा से रंगभेद को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर आलोचना की गई है। 

अब कंपनी के प्रोडक्ट में अलग अलग स्किन टोन वाली महिलाओं को जगह दी जाएगी

कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डाइरेक्टर संजीव मेहता ने कहा कि 2019 में कंपनी ने दो चेहरे वाला कैमियो हटा दिया था। अब कंपनी अपने ब्रांड की पैकेजिंग से फेयर, व्हाइटनिंग और लाइटनिंग जैसे शब्दों को हटा देगी। इसके अलावा, विज्ञापनों और प्रचार साम्रगी में हर रंग की महिलाओं को जगह दी जाएगी। कंपनी अब नए लांच किये जाने वाले प्रोडक्ट में अलग अलग स्किन टोन वाली महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर ज्यादा ध्यान देगी। 

1970 के दशक में आयी इस क्रीम का भारत में सालाना 3750 करोड़ रूपये का कारोबार है

एक रिपोर्ट के मुताबिक 45 साल पुराने इस क्रीम का भारत में सालाना 3750 करोड़ रूपये का कारोबार है। 1970 के दशक में आयी इस क्रीम को हर साल कई टीनएजर्स और महिलाएं या तो अपनी मर्ज़ी से या सोसाइटी के प्रेशर से ख़रीदा करते हैं जहां गौरी त्वचा ही ख़ूबसूरती का पैमाना है।

इस क्रीम के विज्ञापन में लगभग सभी बॉलीवुड की अभिनेत्रियों ने काम किया है जो अभी सोशल मीडिया पर बढ़ चढ़कर ब्लैक लाइव मैटर के नारे लगा रहें है।  

अभिनेता शाहरुख़ खान की बेटी सुहाना खान ने भी हिंदुस्तान यूनीलीवर के इस फैसले का समर्थन किया

सुहाना खान ने अपने इंस्टाग्राम स्टोरी पर इस न्यूज़ को रिपोस्ट किया। सुहाना खान ने अपने साँवले रंग के कारण कई बार आलचनाओँ का सामना किया है। लेकिन शाहरुख़ खान ने हमेशा अपनी बेटी का साथ दिया और खुल कर इस बार कई बार इंटरव्यूज में बात भी करी है।

एक तरफ तो वो अपनी बेटी को सपोर्ट करने के लिए रंगभेद का बहिष्कार करते हैं वही दूसरी और फेयर एंड हैंडसम क्रीम के विज्ञापन में गोरेपन को बढ़ावा देते है। क्या इस तरह से हमारे इन्फ्लुएंसर्स काम करते हैं ? शायद अब वक़्त आ गया है की वही आकर जनता को बताये की आखिर उनकी किस बात को मानना है।      

लेकिन क्या नाम बदलना काफी है ? 

ये अभी भी फेयरनेस क्रीम ही है। कंपनी ने सिर्फ नाम बदलने का फैसला लिया है नाकि इसके इंग्रिडेंट्स बदलने का। एक नई बोतल में वही पुरानी क्रीम उसी सोच के साथ फिर से खुले आम बाज़ारों में बिकेगी और कई लड़कियों पर मली जाएगी।  

पहले भी ऐसे कई केम्पेन आये और चले गए

एक क्रीम के नाम बदलने को बहुत बड़ा जश्न मनाने वाले सभी लोगो को बता दूँ, आज से पहले भी ऐसे बहुत से केम्पेन भारत ही नहीं पूरे विश्व में चलाये गए हैं लेकिन हमेशा की तरह बस वो थोड़े दिनों में ही गायब हो जाते हैं। 2016 में अनफेयर एंड लवली ऐसा ही एक केम्पेन पुरे विश्व में चला था लेकिन वो भी कुछ महीनों के लिए ही था और वापस से वही रंगभेद हो रहा है। 

नंदिता दास ने कई बार साँवले रंग को लेकर आवाज उठायी है

नंदिता दास 2009 से यानि लगभग 11 सालों से इसके खिलाफ लड़ाई लड़ रहीं है। उसी तरह 2019 में उन के वीडियो ने एक बार फिर हर तरह के स्किन कलर को सेलिब्रेट किया था। उस दमदार वीडियो ने पूरे देश में रंगभेद के खिलाफ एक लहर चलाई थी और वो भी कुछ दिनों तक ही रही। 

तो क्या हम इसका मतलब यही समझे की एक बार फिर ये सब कुछ दिनों के लिए ही है ? क्या इसका कोई परमानेंट सलूशन है? 

आखिर इस परेशानी की जड़ें कहां हैं ?

किसी भी परेशानी का हल तभी निकलता है जब हम उस परेशानी की जड़ तक जाये। तो इस परेशानी की जड़े कहाँ हैं ? क्या इसका बीज आपने और हमने मिलकर ही बोया है ? समाज में प्रचलित रंगभेद के लिए हम चाहे आज कितने ही सेलिब्रिटीज़ या बड़ी कंपनियों का दोष दे लेकिन इसके ज़िम्मेदार हम ही हैं।

क्यों आज भी आप अपने बच्चों को खासकर लड़कियों को फेयरनेस क्रीम मलकर शादी में लेकर जाते हैं। क्यों साँवले रंग की लड़कियों से कहते हो की अच्छा पढ़ लिख कर नौकरी कर लो वर्ना तुम्हारे रंग की वजह से तुमसे शादी कौन करेगा। मतलब क्या अब हम अपनी पढ़ाई भी सिर्फ अपने रंग को दबाने के लिए करें?

हर स्किन शेड को लवली कहने की आदत डाल लें

अगर आप सच में चाहते हैं की समाज से रंगभेद पूरी तरह से हट जाये और हर स्किन शेड को हम लवली कहे तो उसके लिए शुरुवात हमें ही करनी होगी। मैं आपसे किसी पेटिशन को साइन करने के लिए नहीं कहूंगी, न ही किसी सेलिब्रिटी को फेयर नेस क्रीम प्रमोट करने पर रोक की मांग करने को कह रही हूँ और ऐसी कम्पनीज को  किसी भी प्रोडक्ट का नाम बदल कर मार्केटिंग करने से रोकने के लिए कह रही हूँ। इन में से हमें कुछ नहीं करना। ये सब अपने आप हो जायेगा अगर आप अपने घर से इसकी शुरुवात करें तो। 

सोशल मीडिया से पहले घर में इसे सपोर्ट करें

आप बस अपने बच्चों में शुरू से हर रंग को खूबसूरत कहने जैसी शिक्षा दें। किसी भी शादी में लड़कियों पर उनके रंग को लेकर टिप्पणी देने से पहले हज़ार बार सोचें। अपने बेटे के लिए एक गौरी लड़की की जगह पढ़ी लिखी लड़की को तवज्जों दें। साँवले रंग की लड़कियों को हर तरह के रंग के कपड़े पहन ने की इज़ाज़त दे। अपनी बेटियों को गौरा करने के लिए किये गए खर्चे को उन्हें पढ़ाने में लगाए।

बस इन्हीं छोटी छोटी आदतों से रंगभेद जैसी बड़ी बीमारी से निज़ात पा सकते हैं। मुझे उम्मीद है अगर ट्विटर पर ये टॉपिक ट्रेंडिंग बन सकता है तो हमारे घरों में भी बन सकता है। बस सोशल मीडिया से पहले घर में इसे सपोर्ट करें। 

मूल चित्र : Canva  

      

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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