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फिल्म ‘ईब आले ऊ’ देख कर आप भी अपने अंदर का बंदर ढूंढने लग जाएंगे!

फिल्म ईब आले ऊ उस वर्ग की लाचारी दर्शाती है जो कई सपने लेकर बड़े शहरों में आते हैं और वह शहर उन्हें एक बंदर की तरह नचाता है।

फिल्म ईब आले ऊ उस वर्ग की लाचारी दर्शाती है जो कई सपने लेकर बड़े शहरों में आते हैं और वह शहर उन्हें एक बंदर की तरह नचाता है।

‘दुनिया में रहना है तो काम कर प्यारे’ गीत का संदेश इस धरती पर जन्मे हर प्राणी पर फिट होता है फिर वह चाहे इंसान हो या जानवर। लेकिन इस दुनिया का नियम यही है कि हर कमज़ोर प्राणी दूसरे शक्तिशाली प्राणी के हाथों का खिलौना बनकर ही रहता है। ये वो दुनिया है जहां काम कर पैसा कमाने के लिए एक दूसरे का सदा से यूंही इस्तेमाल किया जाता रहा है और आगे भी किया जाता रहेगा।

अभी पिछले हफ्ते खबर आई कि मेरठ की एक लैब से बंदर कोरोना का सैंपल लेकर भाग गया। बंदरों के उत्पात से हम सभी वैसे भी परेशान रहते हैं। पिछल हफ्ते रिलीज़ हुई ‘ईब आले ऊ’ एक ऐसी ही फिल्म है जो बंदरों और हमारे जीवन के बीच तालमेल बिठाते हुए यह दर्शाती है कि एक तरफ तो हम बंदरों की पूजा करते हैं और दूसरी ओर उसे स्वयं से दूर रखने के भी प्रयास करते रहते हैं।

और इसी के चलते रोज़गार के ऐसे अवसर सामने आते हैं जो दुनिया में रहकर काम करके पेट भरने के लिए किसी इंसान को स्वयं जानवर बनकर तमाशा दिखाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। प्रतीक वत्स द्वारा निर्देशित इस फिल्म ईब आले ऊ में इंसान और बंदर के बीच का एक रिश्ता दिखाया गया है जो एक रोजगार के अवसर के रूप में पैदा होता है। साथ ही यह भी दिखाया गया है कि जब कोई दूसरे शहर में नौकरी की तलाश में जाता है तो उसे किस प्रकार अपने आत्मसम्मान को ताक पर रख कर अपने मालिक मदारी के हाथों एक बंदर बन कर तमाशा दिखाना पड़ता है।

फिल्म ईब आले ऊ के मुख्य कलाकार शार्दूल भारद्वाज के साथ नैना सरीन, नूतन सिन्हा एवं महिंदर नाथ हैं।

एक डाक्यूमेंट्री की तरह फिल्माई गई यह फिल्म समाज के उस वर्ग की लाचारी दर्शाती है जो कई सपने लेकर बड़े शहरों में आते हैं और वह शहर उन्हें एक बंदर की तरह नचाता है। और विशेषकर आज के इस लॉक डाऊन की स्थिति में जब यहां वहां गरीब मजदूर सड़कों पर चल रहे हैं, तब हम सहज ही महसूस कर सकते हैं कि गरीब जनता का इस्तेमाल कर उन्हें यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया गया है।

फिल्म एक बेहतरीन सटायर है। दुनिया मदारी है और लोग अपने नेताओं के सामने कैसे बंदर बन कर नाच रहे हैं, उन्हें लुभाने के लिए तरह तरह के तमाशे करते हैं। यह फिल्म दिल्ली के लुटिऐंस जोन की कहानी है।

दिल्ली केवल वही नहीं है जो दूर से दिखाई देती बल्कि अंधेरे के बीच बसी बस्तियों में रहने वाले लोगों की भी है। बेरोजगार अंजनी अपने गांव(शार्दुल भारद्वाज) दिल्ली आता है। उसे बंदर भगाने का काम मिलता है। तरह तरह की आवाज़ निकालने में विफल अंजनि इस नौकरी से नाखुश हैं क्योंकि एक तो काम अच्छा नहीं और बंदरों के काटने का भी डर। बदले में केवल कुछ पैसे लेकिन उसे कोई और नौकरी भी नहीं मिलती ।

इस स्थिति में एक इंसान किस तरह रास्ते तलाशता है और धीरे- धीरे इंसान और बंदर में फर्क नहीं रह जाता है। निर्देशक ने बेहद खूबसूरती और संजीदगी से इंसान के दर्द की बंदर से तुलना की है। फिल्म आपको भीतर तक झकझोरती है। आप कहीं न कहीं खुद को बंदर की तरह तमाशा करता पाते हैं !

फिल्म ईब आले ऊ में सभी कलाकारों का अभिनय एकदम वास्तविक है, कोई शो बाजी नहीं। एकदम नेचुरल तरीके से प्रस्तुति है। फिल्म का पेस डार्क है, लेकिन अगर इसे थोड़ा रखा जाता और बेहतर होता।

फिल्म की खूबी इसके नेचुरल कलाकार ही हैं, सभी ने स्वाभाविक अभिनय किया है। मुख्य भूमिका में शार्दुल भारद्वाज ने शानदार अभिनय किया है। शेष कलाकारों ने भी अच्छा साथ दिया है।
फिल्म ईब आले ऊ मौजूदा दौर के लिहाज से एक बेहतरीन सटायर है जो संजीदगी से जीवन का स्याह पक्ष रखती है। फिल्म अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुंचनी चाहिए। वास्तव में ये दुनिया एक मदारी है और इंसान बंदर!

ये फिल्म ज़रूर देखिए!

मूल चित्र : Facebook 

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