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इस बार गर्मी की छुट्टियों में घर नहीं गयी ना तो वह खुद ही मुझसे मिलने चला आया …
कल रात 11 बजे नींद के आगोश में समाने ही वाली थी की लगा कोई है जो खिड़की से झाँक रहा है। डर के आँख खोली तो पाया, ये तो चाँद है जो आज मेरी खिड़की से नज़र आया…
अरे कमरे की खिड़की से आज चाँद नज़र आया… और साथ लाया बचपन के वो दिन जब हम छतों पर सोते थे और यूं हीं चाँद को देखा करते थे।
लाया वो यादें जब रोज़ सब मिलकर ध्रुव तारे और सप्तऋषि को ढूंढा करते थे। और हाँ, चाँद पर कुछ आकृतियाँ भी तो ढूँढ़ते थे, कभी पानी भर्ती औरत तो कभी खेलते हुए बच्चे। कभी खुद चाँद का चेहरा तलाशते… आज वह मुस्कुरा रहा है या उदास है।
पर अब कहां ये फ्लैट्स में यूं सोते हुए चाँद नज़र आता है। वह तो बचपन में जब छत पर सोते थे, तभी नज़र आता था।
फिर क्यों आज ये आया मेरी खिड़की पर, और झांक रहा है अंदर जैसे बस मेरे लिए ही आया है बचपन की सब यादें लेकर। मुझसे ही बतियाने आया है।
बात करते हुए उसने बताया इस बार गर्मी की छुट्टियों में घर नहीं गयी ना तो वह खुद ही मुझसे मिलने चला आया …
और ले आया वह पुराने किस्से, हर छुट्टियों में नानी के घर जाना और चाँदनी रातों को जाग कर सब भाई बहनों के साथ मस्ती करना… आधी रात को जागते हुए नानी की रसोई में कुछ खाने के लिए ढूंढना, वह मामा का लाड़ लगाना, वह मामी का दुलारना… उफ़ ये चाँद कितनी यादें ले आया।
यूं ही उसे देखते देखते, बतियाते हुए, बचपन की कहानियां कहते हुए पता नहीं कब उसके जाने का समय भी हो गया पर जैसे कर गया हो वादा कल फिर आऊंगा अपनी अधूरी बातें करने पूरे साल भर के किस्से सुनने।
आज मेरी खिड़की पर चाँद नज़र आया…
मूल चित्र: Screenshot, Thappad Movie, Youtube
I am a mother of lovely boy and girl twins. Chartered Accountant and Company Secretary
आज फिर से बचपन बहुत याद आया
ज़िन्दगी में रंग भरते – गुब्बारे – एक पल के लिए ही सही!
काश कोई लौटा दे मेरा वो मासूम सा, नादान सा बचपन!
मुझे जीना नहीं आया…
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