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सामाजिक मुद्दों के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली मृदुला साराभाई

मृदुला साराभाई महिलाओं के मौलिक अधिकार, गर्भपात, तलाक और अवैध संतान जैसे मुद्दों पर राज्य से महत्वपूर्ण सिफारिशें करती रहीं।

मृदुला साराभाई महिलाओं के मौलिक अधिकार, गर्भपात, तलाक और अवैध संतान जैसे मुद्दों पर राज्य से महत्वपूर्ण सिफारिशें करती रहीं।

आज़ादी के संघर्ष में महिलाओं की भागीदारी के सवाल पर महात्मा गाँधी के असहमति से सहमति के विचार बनने के बाद बाल काल से जिस महिला का योगदान देखने को मिलता है, उसमें मृदुला साराभाई का नाम सम्मान से लिया जाता है।

पिता अम्बालाल जिन्होंने “केलिको मील” उत्तराधिकार प्राप्त करने के बाद देश में प्रथम श्रेणी का कपड़ा मील बनाया। माता सरला देवी जो राजकोट के प्रतिष्ठित वकील हरिलाल गौशालिया की बेटी के घर  6 मई 1911 अहमदाबाद गुजरात में  मृदुला साराभाई का जन्म हुआ।

मृदुला साराभाई की प्रारंभिक शिक्षा रचनात्मक रही

शिक्षा और लालन-पालन पर मेडम मांटेसरी की पुस्तक समीक्षा से प्रभावित अम्बालाल ने घर में ही एक स्कूल “द रिट्रीट” की नींव रखी, जिसमें इंग्लैड से दो शिक्षक नियुक्त किए गए। इस स्कूल में बच्चों के पाठ्यक्रम में संगीत, नृत्य, चित्रकारी, मिट्टी के बर्तन बनाना और बढ़ई-गिरी भी सिखाई जाती थी।

इस स्कूल के रचनात्मक माहौल में मृदुला की प्रारंभिक पढ़ाई हुई। इस लिहाज से मृदुला खुशनसीब रही क्योंकि उस दौर में लड़कियों के प्राथमिक शिक्षा के लिए पर्याप्त माहौल विकसित नहीं हो सका था।

अखिल भारतीय चरखा संघ में सक्रियता

प्रारंभिक पढ़ाई खत्म करने के बाद मृदुला अपने भाई-बहनों के तरह विदेश पढ़ने नहीं गई और महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित गुजरात विधापीठ में दाखिल हो गई, जहां शिक्षा का माध्यम गुजराती था और पाठ्यक्रम को राष्ट्रीय दिशा प्रदान किया जाता था।

दस वर्ष की उम्र में मृदुला ने अहमदाबाद काँग्रेस अधिवेशन में काँग्रेस प्रतिनिधियों के लिए प्याऊ लगाने का काम किया और अखिल भारतीय चरखा संघ के शिशु विभाग में सक्रिय रही।

जेल का अनुभव

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के वर्षों में महात्मा गाँधी ने महिलाओं को घरों से निकलने और सहयोग करने के लिए प्रेरित किया। उस समय मृदुला गुजरात विधापीठ की छात्रा थीं। वह सत्याग्रह और तमाम गतिविधियों में शामिल रही हैं।

इसी वजह से उन्हें साबरमती जेल में रखा गया जो जेल का उनका प्रथम अनुभव रहा। थोड़े समय के लिए रिहा करने के बाद फिर यरवदा और बेलगाम के जेल में भेज दिया गया।

पहली महिला जिन्हें मिला महामंत्री का पद

1930 में मृदुला काँग्रेस में शामिल हुईं और कई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को संभाला। 1936 में पंडित नेहरू ने उन्हें काँग्रेस में महामंत्री के पद पर नियुक्त किया। काँग्रेस के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी महिला को पद पर नियुक्त किया गया था।

काँग्रेस में रहते हुए आलोचनात्मक रूख रखने के कारण उन्हें वहां से निकाला भी गया क्योंकि कई मामलों में मृदुला काँग्रेस कार्यसमिति में महिलाओं के साथ व्यवहार को लेकर प्रसन्न नहीं थीं।

सामाजिक कुरीतियों पर मुखर रहीं मृदुला साराभाई

मृदुला की चिंता थी कि महिलाएं अपनी निजी और पारिवारिक समस्या के कारण देश के स्वाधीनता आंदोलन के प्रति उदासीन नहीं हो इसलिए उन्होंने “ज्योति संघ” और “विकास-गृह” जैसे गृह की नींव रखी और तमाम सामाजिक कुरीतियों पर मुखर रहीं।

मृदुला महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और वैधानिक स्तर उठाने के साथ विभिन्न मोर्चे में भी सक्रिय रहीं। महिलाओं के मौलिक अधिकार, गर्भपात, तलाक और अवैध संतान जैसे मुद्दों पर राज्य से महत्वपूर्ण सिफारिशें करती रहीं।

महात्मा गाँधी के साथ सांप्रदायिक सामंजस्य बनाए रखने में काम करने का उनका अनुभव आज़ादी के बाद विभाजन से आए शरणार्थियों के साथ काम आया।

सीमा रेखा के दोनों तरफ से उन्होंने हज़ारों महिलाओं को बाहर निकाला और उनका पुर्नवास कराया। यह उनके महत्वपूर्ण योगदानों में गिना जाता है, जिसमें उनका व्यक्तित्व निखरकर सामने आया। उनकी कार्यक्षमता और नेतृत्व के गुण भी प्रमाणित हुए।

तिहाड़ जेल में होना पड़ा नज़रबंद

वह मृदुला शेख अब्दुला को गिरफ्तार किए जाने के फैसले के खिलाफ थीं और उनके समर्थकों के पक्ष में निरंतर समर्पण भाव से काम करती और लिखती भी रहीं, जिस कारण उनपर देशद्रोह के आरोप लगे। उन्होंने सभी संगठनों से इस्तीफा दे दिया। जिस कारण उन्हें तिहाड़ जेल में नज़रबंद कर दिया गया।

इन्हीं दिनों एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उनको “अंत: करण के बंदी” के रूप में मान्यता प्रदान की और वह भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल की भारतीय शाखा की निमित बनी।

आज़ादी के बाद नहीं लिया कोई पद

आज़ादी के संघर्षों में शामिल महिलाओं में मृदुला उन लोगों में से हैं, जिन्होंने आज़ादी के पश्चात कोई पद नहीं लिया। एक कार्यकर्ता के रूप में देश की स्वतंत्रता, हिंदू-मुस्लिम एकता, शरणार्थियों के पुर्नवास, अपहरण की गई महिलाओं की खोज, महिलाओं की समानता और कश्मीर के सवाल पर सक्रिय रहीं।

महात्मा गाँधी ने मृदुला साराभाई को बेटी के रूप में स्वीकारा

महात्मा गाँधी ने उनके अंदर की क्षमता को पहचान लिया था इसलिए उनको ‘मीरा’ नाम देकर अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया था। नेहरू उनके अभिन्न मित्र रहे, जिनकी आलोचना करने से वह कभी पीछे नहीं रहीं।

महिला समाजसेवी और प्रखर कार्यकर्ता के रूप में मृदुला साराभाई को हमेशा याद किया जाना चाहिए, जिन्होंने सामाजिक सवालों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य एम जी अग्रवाल की किताब ‘विमन फ्रीडम फाइटर्स’ से लिए गए हैं।

मूल चित्र : YouTube

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