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मैं और तुम मिलकर एक साथ होकर आओ समाज में फैली अराजकता को समेटते हैं, आओ हम एक होकर प्रार्थनाओं के सहारे जीवन को सरस् बनाते हैं।
मैं और तुम मिलकर,
अमावस के नभ में,
चमकते तारों से,
अनुनय-विनय करके,
मांग लें, कुछ सफेदी,
उधार में और उस,
छोटे से ताल के.
पानी में उड़ेलें।
फिर मिला दें उसमें,
अपनी प्रार्थनाएं ।
उम्मीदें और कुछ
सकारात्मक सोच।
तपस्यारत फिर हम,
करेंगे प्रतीक्षा।
जब तक वो समझ लें।
अंतर्मन की तहों,
में झांक लें कि हमें,
इक चाँद पाना है।
अंधेरी रात को,
अपनी एकता से,
शांति प्रिय, समृद्धि,
के उजाले से इस,
जहां को भर जाना है।
मूल चित्र : Pexels
आखिर कब तक नारी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी? आखिर कब तक?
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