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महिलायें एवं राजनीति

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी न्यूनतम होने का परिणाम है भारतीय गणतन्त्र में महिलाओं के प्रति उदासीन विचारधारा का विकसित होना।

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी न्यूनतम होने का परिणाम है भारतीय गणतन्त्र में महिलाओं के प्रति उदासीन विचारधारा का विकसित होना।

आज हम सदी के उस दौर में हैं जहाँ महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र  में अग्रसर भूमिका निभा रही हैं, परन्तु आज भी केवल भारतवर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व पटल पर यदि देखा जाये तो राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रतिशत अत्यधिक न्यूनतम है।

राजनीती में महिलाओं की भागीदारी कम होने का महत्तवपूर्ण कारण है महिलाओं की राजनीति के प्रति उदासीन विचारधारा। ऐसा इसलिये नहीं है कि महिलाओं में नेतृत्व की क्षमता नहीं होती अपितु महिलाओं द्वारा स्वयं ही अपनी नेतृत्व क्षमता का दायरा निश्चित कर लिया गया है। महिलायें  जहाँ  घर से ले कर विभिन्न कार्यक्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं, वहीं राजनीति का मुद्दा आते ही स्वयं  को अलग-थलग कर लेती है और यही कारण है कि आज भी भारत सहित विभिन्न शक्तिशाली राष्ट्रों के निर्माण मे महिलाओं की भूमिका न्यूनतम है।

यदि हम भारत जैसे विशाल गणतन्त्र की चर्चा करें तो भारतीय राजनीति में शीर्ष पदों पर क्रियाशील  महिलाओं के नाम उगलियों पर गिने जा सकते है। जबकि भारतीय राजनीति मे महिलाओ को 33% आरक्षण  भी प्रदान किया जा चुका है। राजनीति मे महिलाओं की भागीदारी न्यूनतम होने का परिणाम है भारतीय गणतन्त्र में महिलाओं के प्रति उदासीन विचारधारा का विकसित होना। प्रत्येक क्षेत्र मे अग्रसर होने के बाद भी महिलाओं के प्रति उदासीन सामाजिक मानसिकता का आज भी अग्रसर होना और यह तय है कि समय के साथ यह उदासीन मानसिकता निरन्तर विकसित होगी।

अतः वर्तमान समय को निर्णायक काल मे परिवर्तित करते हुये महिलाओं को भारत की राजनीति में अधिक से अधिक अग्रसर हो कर निर्णायक भूमिका निभानी होगी ताकि भारतवर्ष को सम्पूर्ण विश्व के सम्मुख भारतीय गणतन्त्र मे महिलाओं के अग्रसर होने की दिशा मे विश्वगुरू की उपाधि प्राप्त हो सके।

मूल चित्र : Twitter 

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Vijayta Srivastava

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