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माँ के गहरे ज़ख्मों को ढकता रहा उनका मेकअप बॉक्स, लेकिन एक दिन…

अभी 15 मिनट पहले तक तो आप मेरे पापा थे, मगर अब सिर्फ विनय, जो एक कायर इंसान है, जिसकी बाजुओं में दम तो है मगर अपने से कमज़ोर के लिए।

अभी 15 मिनट पहले तक तो आप मेरे पापा थे, मगर अब सिर्फ विनय, जो एक कायर इंसान है, जिसकी बाजुओं में दम तो है मगर अपने से कमज़ोर के लिए।

“वाणी, वाणी! कहाँ हो तुम? फिर से मेरा फेस पावडर कहीं गुम कर दिया तुमने!”

“मम्मी आपको हर वक़्त बाहर जाते वक्त भी पाउडर चाहिए? गीता आंटी के आने से पहले भी पाउडर लिपस्टिक चाहिए? आप इतना मेकअप मुझे तो नहीं करने देतीं!” अपनी मासूम सी शक्ल लेकर 9 साल की वाणी ने अपनी माँ से यह सब बातें साझा करने लग गई।

“तू पीछे हट , तेरे पापा आने वाले होंगे, मैं बाज़ार जाकर सब्ज़ियाँ ले आती हूँ। कहीं मीना मिल गई रास्ते में फिर टोकेगी कि ऐसा चेहरा क्यों बना रखा है?”

“विनय आ गए आप? कैसा रहा आज का दिन?”

एक भी आँसू गिरा तो मुक्का तेरी आँखों पर पड़ेगा

“आ ही गया तभी दिख रहा हूँ। दिन से तेरे को क्या लेना देना? वाणी का और घर के कामों पर ध्यान दिया कर बस, समझी?”

आरती ने कोई जवाब नहीं दिया, और चुपचाप किचन में चली गई।

“घण्टे लगेंगे क्या खाना देने में?” विनय तेज़ी से चीख।

“बस-बस सब्ज़ी गरम हो रही है, सलाद काट रही हूँ, पानी भी गुनगुना कर दिया।”

“तुझे बिल्कुल भी अच्छा खाना बनाना नहीं आता, सारे राशन का बेड़ा गरक कर देती है। इधर आ तुझे सिखाऊं कैसे बनाते हैं सब्ज़ी। डर मत, आगे आ, और चेहरे पर से यह बाल हटा, गर्मी नहीं लग रही तुझे? आज बना ली आगे से ध्यान रखियो, ठीक है?” यह कहते कहते विनय ने एक मुक्का आरती के दाहिने गाल पर रसीद कर दिया।

आरती के मुँह से खून निकलने लगा, वह दौड़ी-दौड़ी बाथरूम में गई और खून साफ करने लगी। उसके चेहरे पर तो कोई विषाद नहीं था, हाँ मगर आंखों में आँसुओं का तूफान उमड़ने के किये तैयार था। मगर पीछे खड़ा विनय बोल रहा था, “अगर एक भी आँसू गिरा तो मुक्का तेरी आँखों पर पड़ेगा।”

आरती की आँखें भरी हुईं थीं, गलती से आँखों की किनारियों से आँसूं का एक क़तरा ढलक गया और उसको पहले से ही वह दर्द महसूस होने लगा था जो वह अब झेलने वाली थी।

“मैंने कहा था न आँसूं टपकना नहीं चाहिये? यह ले सज़ा। अब तुझे यही सज़ा मिलेगी”, और फिर आरती की आँखों में उसने वही मुक्का फिर मारा। इस बार आरती ढह गई और नीचे बैठ गई। इस बार आँसू नहीं, खून बह रहा था। विनय अपने कमरे में सोने चला गया और विनय ने सख़्त हिदायत दी थी कि उसके ऑफिस से आने से पहले ही वह वाणी को सुला कर रखा करे।

यह विवरण कहीं न कहीं ज़्यादातर औरतों को ख़ुद जैसा ही लगता होगा। शायद! मगर यह घरेलू हिंसा हमारे समाज का पीछा नहीं छोड़ने वाली।

बेटा मैंने मेकअप ज़्यादा लगा लिया

“मम्मी आपकी आँखों में क्या हुआ? ये निशान किस चीज़ का है? अपने मेकअप किया है क्या? दोनों आँखों का करो न। आपकी आँखे नीली नीली हो गयीं!”

“बेटा मैंने मेकअप ज़्यादा लगा लिया, अभी दूसरी आँखों में भी ऐसा ही कर लेती हूं। तब ठीक हो जाएगा। तू इतना मत सोचा कर।”

आरती के हाथ दोबारा से मेकअप बॉक्स की तरफ बढ़े और फिर आँसुओं की क़तार। यह कैसी विडंबना है पितृसत्ता की, क्या यह भी आतंवाद की शक्ल है?

मम्मी दोबारा मेकअप करो

स्कूल से आने के बाद वाणी ने देखा, और कहा, “मम्मी आप कितनी सुंदर लग रही हो, मगर आज का मेकअप काला काला सा है।”

“चल पगली! बैग उतार और खाना खा ले।”

फिर शाम हुई , विनय के आने का समय हुआ, आरती ने पूरे 3 घण्टे किचन में रह कर आज विनय की पसंदीदा चीजें बनाईं, पनीर की भुजिया के साथ लच्छे वाले परांठे और साथ में मीठे के तौर पर खीर। आज आरती बहुत खुश थी, आज उसने साड़ी पहनी थी। उसको आज की रात कल जैसी नहीं गुज़ारनी थी, वो आज नई रात चाहती थी।

“वाणी, इधर आ! देख तो ज़रा मुझे मैं कैसी दिख रहीं हूँ? अच्छी खुशबू तो आ रही है, है न?” आरती ने बड़ी आशा के साथ वाणी से पूछा।

“हम्म, माँ साड़ी अच्छी लग रही है मगर आँखों का मेकअप काला काला है, आपके गाल पर भी एक तरफ डिज़ाइन बना हुआ हैं, मम्मी दोबारा मेकअप करो।”

“अच्छा! ठीक है मैं दोबारा कोशिश करती हूं, सारे दाग़ छुपाने की।”

फिर से आरती ने अपना मेकअप बॉक्स खोला और मेकअप करना शुरू किया, मगर उसको क्या पता यह तो वो दाग़ हैं, जो मर्दवाद की संकरी गलियों से गुज़र कर आए हुए उस मर्द के हैं जो पितृसत्ता के विष में पकी हुई एक छवि के समान है।

आज तो वाणी ने भी ज़िद पकड़ ली थी, आज मैं पापा के साथ खाना खाऊँगी। आज वाणी ने भी प्यारी सी लंबी सी फ्रॉक पहनी है, जैसे कोई राजकुमारी। दरवाज़े की घन्टी बजती है और आरती भी उत्सुकता से अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करती हुई और बालों में हाथ फेरती हुई दरवाज़ा खोलने के लिए आगे बढ़ती है, इस से पहले वाणी ने ही दरवाज़ा खोल दिया होता है।

इतनी बदसूरत तो आज तक तुम नहीं लगीं

“अरे! आज यह सब क्या कर रखा है? वाणी, क्या बात है आज तो तुम जग रही हो, प्यारी लग रही हो”, ज़ुबान तो विनय की मीठी ज़ाहिर हो रही थी मगर उसकी आँखों में एक आक्रोश था आरती को देखते हुए।

“पापा आज मैं आपके साथ खाना खाऊँगी। पाप लव यू।”

“हाँ बेटा आज हम दोनों साथ खाना खाएंगे।”

“आरती तुम चेंज कर के खाना लगाओ, यह क्या जोकर जैसी अजीब सी शक्ल बना रखी है, डर लग रहा है तुम्हारी भयानक शक्ल देख कर”, विनय ने किचन में आकर आरती से बोला।

“विनय, मैं आज आपके लिए तैयार हुई हूँ, क्या आपको अच्छा नहीं लगा?”

“तुमसे मैंने क्या कहा? के मुझे डर लग रहा है तुमसे। इतनी बदसूरत तो आज तक तुम नहीं लगीं।”

यह विचारधारा पुरुषों के मन में घर कर चुकी है कि किसी को शक्ल हो या बॉडी शेमिंग का मामला, पुरुष इस बात से ज़रा भी खौफ़ नहीं खाते के सामने वाले के दिल पर क्या गुज़रेगी।

“ठीक है मैं खाना लगा कर चेंज कर लूंगी आप अपना मूड ऑफ मत कीजिए।”

मम्मी इस चोट पर दवाई लगाओगे या यहाँ भी मेकअप करोगे?

विनय आरती के बाल खींचते हुए बोलता है, “अभी के अभी बदल कर आ इसे, तुझे मेरी बात समझ नहीं आती?” और देखते देखते उसका हाथ पकड़ कर उसके हाथ पर गर्म तवा चिपका देता है, जिससे आरती की चीख निकल आती है। उस चीख़ में दर्द की सारी सीमाओं का अंत था और एक बेबसी भी। चीख़ सुनकर वाणी भी आकर यह मंज़र देख लेती है, पर छोटी होने के कारण यह सब देख कर बस इतना बोलती है, “मम्मी इस चोट पर दवाई लगाओगे या यहाँ भी मेकअप करोगे?”

यह एक पीड़ादायक स्तिथि थी, वाणी के लिए भी, उसने देख लिया था एक कुरूप रूप अपने पिता का। यह देखकर वह सीधे अपने कमरे में जाकर सो जाती है, और खाना ऐसे का ऐसे ही पड़ा रहता है। एक छोटा सा पेट भूखा रह जाता है, ऐसे न जाने कितने ही दर्द होंगे नो मासूमियत की दिनों में यह सब झेलते होंगे।

दूसरे दिन सुबह वाणी को स्कूल के लिए देर हो गई और विनय ऑफिस के लिए घर से जल्दी ही निकल गया था। वाणी की बस छूट गई, तो आरती को तैयार होना पड़ा। उसको अपने चेहरे पर पड़े पिटाई के निशान को फिर से संजोना पड़ा, अपने हाथ पर पड़े गर्म तवे के निशान को पूरी आस्तीन की क़मीज़ से ढकना पड़ा, अपने आंखों के ज़ख्म पर भी मेकअप लगाना पड़ा। उसके बाद उनकी स्तिथि बाहर जाने के लिए तैयार हुई।

वाह री विडबंना! यह क्या हाल किया है पुरुषवाद ने समाज का

वाह री विडबंना क्या कहने, यह क्या हाल किया है पुरुषवाद ने समाज का। उस महिला का जिसने एक समूह के भाव को शरीर को और आत्मा को छिन्न भिन्न कर के रख दिया है। कुचल डाला है, बर्बाद कर दिया है।

वाणी, विनय, और आरती की ज़िंदगी के 20 साल ऐसे ही पुरुषवाद की आंधी में कटते चले गए। वाणी की शिक्षा पूरी हो चुकी थी और विनय और आरती की वही स्तिथि आज भी थी। वाणी के अंदर एक कर्मठ और ताकतवर लड़की जन्म ले चुकी थी, जो महिला हिंसा के ख़िलाफ़ लड़ने वाले कई संस्थानों की सहायिका रह चुकी थी। उसने सोशल वर्क में परास्नातक के लिए अप्लाई  किया था। साथ के साथ BPO में कार्यरत थी, जहाँ से 25 हज़ार मासिक आमदनी होती थी।

“मम्मी आज मैं बहुत थक गई आप एक कप मेरे हाथ की चाय पिएँगी?”

वाणी ने घर आते ही मम्मी से चुटकी लेनी शुरू कर दी। विनय चुपचाप अख़बार पढ़ता रहा, और वही नज़रें, जिसमे ईर्ष्या, का भाव था।

“अरे! पागल मैं बनाती हूँ चाय,तू थक कर आई है।”

पिछले दस सालों से बेटी ने विनय से बात तक नहीं की

आरती चाय बनानी चली जाती है, और वाणी वहाँ से उठकर दूसरी जगह जाकर बैठ जाती है, पिछले दस सालों से उसने विनय से बात तक नहीं की और उसकी राय है जो समाज में औरतों की इज़्ज़त नहीं करता उससे बात करनी छोड़ देनी चाहिए।

“विनय यह आपकी फीकी चाय, और वाणी तुम भी यहीं आकर चाय पीयो।”

“नहीं माँ, मुझे इधर ही दे दो चाय मैं यहाँ कंफर्टेबल हूँ।”

“थू! यह कैसी चाय बनाई तूने!” और गर्म चाय आरती के मुँह पर फैंकते हुए, एक ज़ोरदार थप्पड़ मारते हुए, तमतमाता हुआ अपने रूम की ओर बढ़ने लगा।

तभी पीछे से आवाज़ आती है, “मिस्टर विनय, स्टॉप, वहीं रुकिए मैं ही आती हूँ। आज तक तो माँ यह सब पिछले 20 सालों से झेलती आ रही है, मगर अब नहीं झेलेगी, ध्यान रखिएगा आगे से।” और पूरी वीरता से सामने खड़ी होकर वाणी ने अपने पिताजी से बोला, और बोलते ही बोलते उसने भी अपने पिता की मुँह पर बहुत ज़ोरदार तमाचा रसीद किया।

फिर वाणी बोली, “आज तक, यहाँ तक, अभी 15 मिनट पहले तक तो आप मेरे पापा थे, मगर अब सिर्फ विनय, जो एक घिनौना और कायर इंसान है, जिसकी बाजुओं में दम तो है मगर अपने से कमज़ोर के लिए।”

“और हाँ, मिस्टर विनय, यह थप्पड़ मैंने आपकी बेइज़्ज़ती के लिए नहीं मारा, क्योंकि आप जब तक किसी की इज़्ज़त नहीं कर सकते तो इज़्ज़त करवाने का भी हक़ नहीं। बस यह थप्पड़ दर्द महसूस करने के लिए एक छोटा सा उदाहरण दिया है और आइंदा से याद रखिएगा यह दर्द किसी को भी देने से पहले।

“वाह! आरती देख तूने कैसी परवरिश की अपनी औलाद की?”

“हाय! वाणी तूने यह क्या कर दिया? तूने मेरी दुनिया उजाड़ दी? मेरा परिवार ख़राब कर दिया? मैंने क्या क्या झेल कर इस परिवार को टिका रखा था।”

“माँ तुमने पिट पिट कर वो परिवार बनाया जो आपकी इज़्ज़त तक नहीं कर सका, उस इंसान को साथ रखा जो आपको अपनी जूती बना कर रखना चाहता था, कितने मेकअप बॉक्स ख़रीदे आपने, कितने ही? और साड़ियां वो भी सिर्फ गिनती की 5? इस से ज़्यादा तो आपने अपने ज़ख्मों को छुपाने के लिए कितने ही फेस पावडर लगा लिए, और दुप्पटे से अपनी आस्तीनों के ज़ख़्मों को छुपाती आई हो। माँ, अपनी पीठ से पूछो उसने कितने दर्द झेले हैं, और अपनी मांग के वो निशान देखो माँ, जिसमें सिंदूर भरने का रास्ता ही नहीं बचा। छोड़ो माँ यह घर अभी के अभी और चलो मेरे साथ।”

“आरती यह सब क्या हो रहा है समझाओ इस बेहूदी लड़की को, यह हमारा घर है, अपना”, पीछे से विनय ने दरिद्र भाव से बोला।

“माँ यहाँ का एक भी समान मत छूना और न लेकर चलना साथ, यहाँ कुछ भी हमारा नहीं।”

दोनों माँ बेटी घर छोड़ कर निकल जाती हैं, और सुकून से 2 कमरों के फ्लैट में अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहीं हैं।

मगर वो मेकअप बॉक्स ज़िन्दगी भर याद आता रहेगा…

मूल चित्र : Canva

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