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अप्रैल के महीने को पूरे विश्व में यौन उत्पीड़न जागरूकता महीने के रूप में मनाया गया है, आइये देखें कि हमारे कार्यस्थल महिला सुरक्षा के पैमाना पर कहाँ खड़े हैं?
1992 में हुए भंवरी देवी के रेप केस ने जैसे मानो महिलाओं को एक नई उम्मीद दी। भंवरी देवी ख़ुद इसके लिए सामने आयी और फिर उसी बीच जयपुर और दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठनों ( NGOs ) के कार्यकर्ताओं और महिला समूहों ने इसके खिलाफ आवाज़ उठायी और विशाखा नाम के सामूहिक मंच से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। उन्होंने मांग की कि कार्य स्थलों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाया जाना चाहिए और नियोक्ता को कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए, खासकर महिलाओं की चिंताओं और महिला सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करके।
इस आंदोलन ने अंततः कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की परिभाषा को लागू किया, जिसे आमतौर पर विशाखा दिशा निर्देश के रूप में जाना जाता है। अगस्त 1997 के इस फैसले ने कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की मूल परिभाषा प्रदान की और इससे निपटने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान किए। इसे भारत में महिला समूहों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी जीत के रूप में देखा जाता है।
लेकिन क्या आप इसे जानती हैं? ये किस प्रकार से काम करता है और क्या इस कानून के बाद कार्य स्थल पर महिलाओं की स्थिति में, महिला सुरक्षा में सुधार आया है?
कहने को तो अप्रैल के महीने को पूरे विश्व में यौन उत्पीड़न जागरूकता महीने (Sexual Assualt Awareness Month) के रूप में मनाया जाता है। और हर साल की तरह इस साल का अप्रैल भी चला गया। लेकिन क्या सच में आप तक जागरूकता पहुंची? क्या हमारी ग्रामीण महिलाओं तक जागरूकता पहुंची? महिला सुरक्षा से जुड़े इन्हीं सवालों के ज़वाब की खोज में हमने हाल ही में दो ऐसी महिलाओं से बात करी जो इस से लम्बे समय से जुड़ीं हुई है।
पहली हैं साशा (SASHA – Support Against Sexual Harassment) की फाउंडर कांती जोशि।इन्होंने कई सेक्टर्स में इंटरनल कंप्लेंट कमेटी के एक्सटर्नल मेंबर की भूमिका निभाई है और ये लगातार महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए काम करती आयी हैं।
दूसरी हैं डॉ अनघा सरपोत्दार, इन्होंने इसी विषय पर अपनी पीएचडी करी है और लम्बे समय से महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए काम करती आयी हैं।
इन्होंने हमे इस कानून से जुड़े महत्वपूर्ण पहलूओं को बताया। तो आइये जानते हैं, क्या है ये कानून और किस प्रकार से हम इसका उपयोग कर सकते हैं।
अगर इन में से कोई भी कार्य पीड़ित के कार्य स्थल से संबंधित जगह पर होता है, तो वो इस कानून के तहत वो अपने कार्य स्थल में एम्प्लॉयर को शिकायत दर्ज़ करवा सकती है।
इसमें एक्सटेंडेड वर्कप्लेस का कांसेप्ट है। इसका मतलब है की अगर आप अपने काम के सिलसिले में कहीं भी बाहर भी जाते है और अगर आपके साथ ऐसी दुर्घटना हो जाती है तो वो इसी कानून के तहत आएगा। इसमें सभी तरह के काम शामिल है, चाहे आप अस्थायी रूप से उस कंपनी के लिए काम कर रहीं हो या स्थायी रूप से और इतना ही नहीं अगर आप एक दिन के लिए भी किसी कार्य स्थल पर जाते हैं ( चाहे आप उसकी एम्पलॉयी हों या ना हो ), और अगर आपके साथ उस कम्पनी के किसी एम्पलॉयी ने ऐसी कोई भी बद्तमीज़ी करने की कोशिश करी है, तो भी आप इस कानून के तहत वो अपने कार्य स्थल में एम्प्लॉयर को शिकायत दर्ज़ करवा सकती है।
कानून के मुताबिक़ प्रिवेंशन एंड रेड्रेसल दोनों एम्प्लॉयर की ज़िम्मेदारी है। जिस भी कार्यालय में 10 या 10 से अधिक लोग काम करते है वहां एक इंटरनल कंप्लेंट कमेटी ( आंतरिक शिकायत समिति ) होना अनिवार्य है। इंटरनल कंप्लेंट कमेटी में 1 महिला सीनियर सदस्य, कंपनी से 2 एम्प्लॉईज़ और 1 एक्सटर्नल मेंबर का होना जरूरी है। कुल मिलाकर 50% हिस्सेदारी महिलाओं की होती है। इसके साथ ही हर कंपनी में समय समय पर वर्कशॉप्स और अवेयरनेस प्रोग्राम ( जागरूकता अभियान ) होने चाहिए। एम्प्लॉयर की ज़िम्मेदारी होती है कि वो सुनिश्चित करे की हर जगह नोटिस लगा हो जिससे एम्प्लॉईज़ को ध्यान रहें की यौन उत्पीड़न एक दुर्व्यवहार के अंदर आता है और इस पर कड़ी कानूनी करवाई हो सकती है।
साथ ही अगर कभी किसी महिला को पुलिस के पास जाना हो तो ये एम्प्लॉयर की ज़िम्मेदारी होती है की वो उसे अस्सिस्टेंस दे। अगर एम्प्लॉयर सतर्क रहें तो बहुत हद तक हमारी महिलाएं इस से बच सकती हैं।
एक बार शिकायत दर्ज होने पर इंटरनल कंप्लेंट कमेटी जाँच शुरु करती है और उसके बाद 7 दिनों के अंदर अंदर उन्हें शिकायत की एक कॉपी जिसके ख़िलाफ़ शिकायत करी गयी है, उसे देनी होती है। ये कमेटी सिविल कोर्ट की तरह ही काम करती है। इसमें दो सिचुएशन हो सकती है। पहली, अगर केस बड़ा नहीं हो(जैसे अगर पुरुष ने महिला को अनुचित मैसेज भेजें हो) और महिला सेटलमेंट करने के लिए तैयार है, तो कमेटी दोनों के बीच समझौता (Conciliation) करवा सकती है, जिसमे पुरुष महिला से माफ़ी मांग सकता है और दोबारा नहीं करने के लिए कहता है। लेकिन इन केस में भी एक पूरा ड्राफ्ट तैयार होता है और दोनों के साथ शेयर किया जाता है।
दूसरा अगर केस सीरियस हो और महिला चाहती है, तो कमेटी पूरी जाँच बैठाती है। उसमे सभी सबूतों को देखा जाता है, महिला और पुरुष दोनों की सुनी जाती है और अगर कोई विटनेस होता है तो उसके स्टेटमेंट्स भी रिकॉर्ड करें जाते है। इसमें सभी चीज़ो को देखा जाता है की महिला पर क्या असर हुआ है, उत्पीड़न की फ्रीक्वेंसी क्या है, उसके बाद कमेटी फैसला लेती है।
अगर आपके साथ कार्य स्थल पर ऐसी कोई दुर्घटना होती है, तो आप उसकी शिकायत कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के अंतर्गत भी करवा सकती हैं और आप चाहे तो पुलिस में FIR भी दर्ज करवा सकती हैं।
अगर आप किसी कारण वश केस को 3 महीने के अंदर अंदर दर्ज़ नहीं करवा पाए, तो आपका जो भी कारण है वो आप लिखित में देकर इसकी शिकायत दर्ज़ करवा सकते हैं।
आज भी अगर हम देखें तो बहुत सारे सेक्टर्स ऐसे है जहां से रिपोर्टिंग होती ही नहीं है। इसके कई कारण हो सकते है। या तो महिलाओं को डर रहता है की उनकी जॉब चली जाएगी, या उन्हें कोई सपोर्ट नहीं करेगा और इसके अलावा अभी भी लोगो में जागरूकता की कमी है। आज भी बहुत सी महिलाओं को पता ही नहीं होता है कि उनके लिए इस प्रकार का कोई कानून भी है।
कई सेक्टर्स ऐसे है जहां से नतीजे बहुत अच्छे मिल रहे है और जबकि कई ऐसे है जहां पर ये बिलकुल ही नहीं है। तो कह सकते है कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा का बहुत बड़ा योगदान एम्प्लॉयर्स का भी होता है, अगर वो जागरूक करेंगे तभी महिलाएं सामने आकर बोलेगी और पुरुष भी ऐसा कुछ करने से पहले सोचेंगे।
जब 2018 में मी टू मूवमेंट आया था तो उसके बाद से इस कई महिलाएं उनके साथ हो रहे अत्याचार के लिए खुलकर सामने आयीं तो कह सकते हैं कि इस एक आंदोलन से हमारी महिलाओं को हिम्मत मिली है और वो अब शिकायत दर्ज़ करवा रही है। लेकिन महिला सुरक्षा को नज़र में रखते हुए अभी भी मंज़िल बहुत दूर है।
जहां भी 10 से कम लोग काम करते है वहां इंटरनल कंप्लेंट कमेटी नहीं होती है। उनके लिए लोकल कमेटी होती है जो डिस्ट्रिक्ट लेवल ( ज़िला स्तर) पर होती है। लेकिन उसके बारे में बहुत कम लोग जानते है। कह सकते है उसके लिए कभी जागरूक ही नहीं किया गया और न डिस्ट्रिक्ट लेवल का कोई रिकॉर्ड मौजूद है की वहां कितने केसेस आते है, कितने नहीं आते है और इन सबके पीछे वज़ह क्या है।
कई जगह इसको लेकर बहुत सतर्कता बरती जाती है, तो कई जगह अभी भी इसको अनदेखा करा जाता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है महिला सुरक्षा को लेकर जागरूकता की कमी। सरकार ने कानून तो बना दिया लेकिन इसके बारे में जागरूक नहीं किया। सीधे शब्दों में कहे तो जागरूकता के लिए कभी कोई बजट ही नहीं दिया गया तो आखिर लोकल लेवल पर इसकी जागरूकता कैसे होगी? तो इस कानून के विफल होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है सरकार की लापरवाही। हां सरकार ने कानून तो बना दिया लेकिन कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा की क्या उस कानून का तो लाभ लोगो को मिल पा रहा है।
अब आपकी और हमारी बारी है। सबसे पहले तो आप अपने आप को महिला सुरक्षा के प्रति जागरूक करें और जानें कि आखिर क्या कहता है ये कानून और उसके बाद अपने सह कर्मियों को इसके बारे में बताये। अगर अभी भी आपकी कंपनी में इस प्रकार के कोई नोटिस नहीं निकलते है या कोई अवेयरनेस कैंप नहीं होते है तो तुरंत इसकी शिकायत करें।
लेकिन इन सबसे बड़ी बात, जब आपको पता है की ये क्या है, इसके तहत आपके क्या हक़ है, तो इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं। चुप नहीं रहें और इतना ही नहीं अगर आपके किसी साथी के साथ भी ऐसा होता है तो उन्हें भी आप प्रोत्साहित करें कि वो शिकायत करें। और हां बेशक ये कानून सिर्फ महिलाओं के लिए है लेकिन हमे पुरुषों की सेफ्टी का भी उतना ही ध्यान रखना है। और अगर आपको अभी भी इस कानून से संबंधित कोई भी संदेह है, तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं।
मूल चित्र : Canva
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