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हम तो थे जैसे, हम वैसे रह गए…

पारुल और रोहित, दोनों प्यार के पंछी, घर और नौकरी में उलझे बड़ी मुश्किल से अपने लिए वक्त निकाल पाते थे, फिर वक्त की चाल बदली और....

पारुल और रोहित, दोनों प्यार के पंछी, घर और नौकरी में उलझे बड़ी मुश्किल से अपने लिए वक्त निकाल पाते थे, फिर वक्त की चाल बदली और….

पारुल और रोहित की शादी को दो साल 4 महीने हो चुके थे। अब क्योंकि इन दोनों ने जैसे तैसे घरवालों को राजी कर प्रेम विवाह किया था। तो जिन्दगी की पटरी पर अपने विवाह रूपी रेलगाड़ी के पहिए खुद ही संभाल रहे थे।

दोनों रहने वाले तो बनारस के थे, लेकिन आईटी कंपनी में नौकरी होने के कारण आ बसे थे मुंबई महानगरी में। घरवालों को गुस्सा जताने का और कोई तरीका ना मिला, तो बस आशीर्वाद दे, नवदंपति का घर बसाने के अपने सहयोग से इतिश्री कर ली थी।

दोनों प्यार के पंछी, घर और नौकरी में उलझे बड़ी मुश्किल से अपने लिए वक्त निकाल पाते थे। फिर वक्त की चाल बदली और आ गई एक महामारी। मिल गया दोनों को वर्क फ्रॉम होम…

आगे की कहानी खुद पारुल और रोहित की ज़ुबानी

हम बने तुम बने एक दूजे के लिए पारुल ने गुनगुना कर प्यार की तान छेड़ी, ‘रोहित आज नाश्ते में क्या खाओगे?’
रोहित ने भी प्यार का जवाब दिया प्यार से, ‘जो तुमको ही पसंद वहीं ब्रेकफास्ट करेगें।’

प्यार भरा ब्रेकफास्ट पड़ गया दोनों पर भारी। ‘एक बार में कॉल क्यों नहीं उठा?’ थी, बॉस ने डांट लगाई। ‘छुट्टी नहीं मिली है,मिला है वर्क फ्रॉम होम।’

आगे फिर क्या होना था वहीं किस्मत का रोना था …

ज़ूम मीटिंग में लगे थे दोनों, अपने अपने कमरे में। जैसे तैसे दिन वो बिता खत्म हुई ऑफिस की आफत।

रोहित ने एक कोशिश फिर की पारुल को रिझाने की, ‘बोला प्रिय! अब तुम फरमाओ रात में क्या खाओगी? मुझे बताओ।’

पारुल ने कहा, ‘तुम कर दो जी बर्तनों के ढ़ेर की सफाई, मैं खिचड़ी पका कर आई।’

खत्म कर झाड़ू, बर्तन, खाना पीना हाथों से कान पकड़े दोनों ने। लौट के बुद्धू घर को आए, ‘हमको नहीं वर्क फ्रॉम होम भाए।’

कल से अलार्म घड़ी को है बजाना, जायदा कुछ ना बस खिचड़ी और मैगी से है काम चलाना।

कभी तो आयेगी बहार फिजा में, कभी तो भवरे गुनगुनाएंगे। अभी तो बस काम दोगुना हैं वर्क फ्रॉम होम ने हमको रोबोट बना के छोड़ा है।

पारुल और रोहित की तरफ से आप सब को भी वर्क फ्रॉम होम के लिए शुभकामनाएं।

मूल चित्र : Pexels 

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Khushi Kishore

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