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फिल्म थप्पड़ की इन बातों का ज़िक्र अब तक किसी ने क्यों नहीं किया?

माना जा रहा है कि फिल्म थप्पड़ ने घरेलू हिंसा के बारे में बातचीत शुरू की है, लेकिन अब सिर्फ बातचीत नहीं, इसे एक अगले पायदान पर चढ़ना होगा जहाँ सवाल और भी मुश्किल हैं। 

माना जा रहा है कि फिल्म थप्पड़ ने घरेलू हिंसा के बारे में बातचीत शुरू की है, लेकिन अब सिर्फ बातचीत नहीं, इसे एक अगले पायदान पर चढ़ना होगा जहाँ सवाल और भी मुश्किल हैं। 

जब से फिल्म थप्पड़ अमेज़न प्राइम पर आयी है बहुत से लोगों ने इसे देखा और इसकी बहुत बातें हुई , समीक्षाएं हुई , लेकिन कुछ बातें जो मैंने होती नहीं देखी

मैरिटल रेप शब्द तक फिल्म थप्पड़ में नहीं कहा जाता

फिल्म में मैरिटल रेप दिखाया तो जाता है और वो भी उस महिला वकील का जो आर्थिक रूप से सक्षम है, मज़बूत है , किसी दूसरी औरत के लिए लड़ती है लेकिन इसके खिलाफ आवाज़ तक नहीं उठाती , बस चुपचाप अलग हो जाती है , मैरिटल रेप शब्द तक फिल्म में नहीं कहा जाता

फिल्म थप्पड़ में महिलाओं की 3 सास हैं

  • अमु की माँ – मध्यमवर्गीय खाने से प्यार दिखाने वाली माँ/सास।
  • अमु की सास – अमीर , उच्चवर्गीय , बहु से प्यार करने वाली , त्याग की देवी , पति और बच्चों के लिए अपनी सेहत का सत्यानाश कर चुकी माँ
  • सुनीता की निम्नवर्गीय सास जिसको बुरी होना ही है

क्या ये ओवर सिम्पलीफिकेशन और क्लास बायस नहीं है?

किसी भी शादीशुदा मर्द का कोई और रिश्ता नहीं दिखाया

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में नेत्रा अपने प्रेमी के साथ लॉन्ग ड्राइव पर जाती है , सुबह साइकिलिंग के बाद मिलती है, और फिर बड़ी आसानी से उसे छोड़ भी देती है , किसी भी शादीशुदा मर्द का कोई और रिश्ता नहीं दिखाया जाता

औरत के लिए संस्कार अलग क्यों?

विधवा माँ , सिंगल मदर दिया मिर्ज़ा पर समाज और पुरुष सवाल उठा सकते हैं – करती क्या है ये ? लेकिन उसे किसी नये रिश्ते की चाह होना शायद संस्कार नहीं ?

शादी बने रहने के लिए चुप रहना ज़रूरी?

अमु की जेठानी का शायद एक ही डायलाग है फिल्म में जो “ये कह रहे थे ” से शुरू होता है, वो अच्छा खाना बनाती है और चुपचाप परोसती है , और ऐसी बहु की शादी बनी रहती है और घर भी – मैसेज क्लियर है

हिंसा का कानूनी कार्यवाही में ज़्यादा ज़िक्र नहीं

पूरी फिल्म का premise है एक थप्पड़ जो पति नहीं मार सकता लेकिन उस हिंसा का पूरी कानूनी कार्यवाही में ज़िक्र तक नहीं किया जाता, और एक सवाल अगर यही थप्पड़ पार्टी के बजाय बैडरूम में मारा जाता तो इसके नतीजे क्या होते?

घरेलू हिंसा ऐसे रूकती है?

सुनीता आखिर में पति पर वापिस हाथ उठाती है और वो रुक जाता है लेकिन इसका मतलब ये है कि घरेलू हिंसा ऐसे रूकती है ? नहीं कई बार बढ़ती है जानलेवा हो जाती है , और दोनों तरफ से हिंसा किसी रिश्ते को बेहतर नहीं बना सकती न ही ये बराबरी है।

महिला का अपनी कोख पर अधिकार?

अगर अमु तय करती की उसको ये बच्चा नहीं चाहिए तो शायद भारतीय समाज के लिए शायद कम विक्टिम हो जाती और उसकी तकलीफ कम, महिला की कोख पर उसका अधिकार है या नहीं?

अमु के पति का सेक्सिस्म सिर्फ वो एक थप्पड़ नहीं

  •  माँ और पिता के तनाव भरे रिश्ते में व्यस्क होते हुए भी कुछ नहीं कहना
  • होने वाले बच्चे के लिए “मेरा बच्चा ” वाली एंटाइटलमेंट
  • मैं फूडी हूँ और तुम्हें खाना बनाना नहीं आता फिर भी मैंने शादी की वाला त्याग=एहसान जताना
  • माँ को पूजा के लिए देर हो रही है तो चाय बनाने की नाकाम कोशिश , बीवी को चोट लगी थी तो पूछा भी नहीं
  • सुनीता को ज़्यादा पैसे देना ताकि वो अमु की “खबरें”‘ उसको दे

ये सब भी उसके सेक्सिज़्म को बखूबी दर्शाता है। और इस सबके बावजूद एक सॉरी और एक फ़िल्मी डायलाग – मैं अब तुम्हें कमाऊंगा से सब माफ़ होता जैसा लगता है।

पितृसत्तात्मक समाज औरत से क्या चाहता है?

घरेलू हिंसा से लड़ रही महिला भी वही बातें करे जो पितृसत्तात्मक समाज चाहता है तभी स्वीकार्य है , जैसे कि –

  • पति से तलाक की मांग करने पर किसी भी तरह का संपत्ति में हिस्सा है आर्थिक अधिकार न मांगे
  • बच्चा पति का है इस लिए जो भी पति और उसका परिवार चाहे बच्चे के लिए वो करे
  • अपने पिता को बस अच्छे पिता तक ही देखे वो कैसे पति रहे हों ये न आंके
  • शादी में बलात्कार है तो चुप्पी लगा ले , इसे ने हमारा समाज मानता है न कानून

अक्सर तर्क बस ये दिया जाता है कि थप्पड़ ने घरेलू हिंसा के बारे में बातचीत शुरू की है, बातचीत ही हो रही है लेकिन दया और करुणा से ऊपर उठकर अब इसे हक़ और कानून के अगले पायदान पर चढ़ना होगा जहाँ सवाल और भी मुश्किल हैं जैसे कि शादी में सेक्स का अधिकार, महिला का एबॉर्शन का अधिकार और स्त्रियों के संपत्ति में अधिकार।

मूल चित्र : फिल्म थप्पड़ 

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Pooja Priyamvada

Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness trainer, reflective read more...

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