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हमसे से कितनी ही महिलाओं की ज़िंदगी शादी के बाद बदल जाती है, हमारा उठना, बैठना, बोलना, चलना, खाना, पीना सब बदल जाता है, यहां तक कि हमारी हंसी भी बदल जाती है।
“रिया तुम्हारी फ़ोटो तो बहुत सुंदर आयी है, तुम्हारा फेस तो फोटोजनिक है, तुम तो हर फ़ोटो में कमाल का कहर बरसा रही हो, तुम्हे देख कर कोई नहीं कह सकता कि तुम्हारे दो बच्चे है… एक 15 और दूसरा 12 साल का। तुम तो बिल्कुल नई दुल्हन की तरह सज संवर कर रहती हो!”
“कैसे कर लेती हो सब?”
“अरे पिया तुम भी न, कितनी तारीफ़ करोगी मेरी? तुम्हारी बातें सुनकर मैं कहीं फूल न जाऊं। कभी घर आओ तब बैठ कर तुम्हें अपनी औऱ भी पुरानी पिक्चर्स दिखाऊँगी।”
अगले ही दिन पिया रिया से मिलने आ गयी। घर आते ही सबसे पहले रिया की सास मुँह बनाकर बोली, “आ गयीं तुम? आज बहुत दिनों के बाद आई हो?”
“तुम बैठो, मैं रिया को भेजती हूं और क्या लोगी चाय या कॉफी?” सास अंदर चली जाती है और रिया से कहती है, “बाहर तुम्हारी सहेली आई है।
“अब उसके साथ घंटो बैठ कर समय बर्बाद मत करना। बहुत काम पढ़ा है, जल्दी से विदा कर देना उसे, मैं खाना नहीं बनाऊँगी। तुमने ही बनाना है, सोच लेना”, इतना बोलकर सास चली गयी।
रिया पिया से मिली और दोनों ने खूब सारी बातें की। बातों के बीच मे रिया ने दाल भी बनने रख दी, चाय बना लायी। पिया बोली, “रिया तुम्हारी फोटोज़ तो दिखा दो….”
लेकिन पिया ने गौर किया रिया का सारा ध्यान रसोई की तरफ ही था, वो बार बार उठ उठ कर जा रही थी।
रिया ने भी अपना पिटारा खोल दिया। सब फोटोज़ को देखने के बाद पिया बोली, “एक बात कहूं? बुरा तो नहीं मानोगी? पहले वाली फोटोज़ में जो रिया है…अब वो रिया इन फोटोज़ में नहीं है। क्या हो गया है तुम्हें अब?”
“पहले की फोटोज़ वाली रिया अंदर से भी खुश है, बाहर से देखने पर तुम कमाल लगती हो… लेकिन शादी के बाद वाली फोटोज़ में बाहर से तो बहुत सुंदर है लेकिन अंदर की खुशी चेहरे से गायब है। क्या बात है… कुछ छिपा रही हो मुझसे?”
“बात करने से ही किसी समस्या का हल निकलता है बता दो।”
“क्या बताऊँ यार, पिया शादी के बाद मैंने ख़ुदको पूरा बदल दिया है। अब बाहरी रंग को तो नहीं बदल सकती, लेकिन मन से अब मैं वो रिया नहीं हूँ जो एक अल्हड़, बिंदास हंसने वाली मस्त लड़की होती थी। शादी के बाद अब शरीर के साथ आत्मा नहीं है…”, इतना बोलकर रिया चुप हो जाती है।
दोस्तों हमसे से कितनी ही महिलाओं की ज़िंदगी शादी के बाद बदल जाती है। हमारा उठना, बैठना, बोलना, चलना, खाना, पीना सब बदल जाता है। यहां तक कि हमारी हंसी भी बदल जाती है। हम अपना सब कुछ बदल लेती है लेकिन फिर भी वह घर हमें कभी अपनाता नहीं है। ना तो पूर्ण बहू बनने देता न ही बेटी? आप अपनी बहू को बहू ही रहने दो उसे बेटी न बनाओ, लेकिन खुलकर जीने की आज़ादी दे दो।
आप सब का क्या कहना है इस बारे में कृपया अपने विचारों को भी व्यक्त करें।
मूल चित्र : Unsplash
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