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ज़ाकिर खान की कविता, नानी याद आ गयी, इन दिनों सोशल मीडिया पर बहुत सराही जा रही है, ख़ूबसूरती से पिरोयी गयी इस कविता ने इमोशंस तो हैं, लेकिन एक्शन?
“ऐसे बुरे फ़से हैं कि नानी याद आ गयी। मम्मी तेरी मम्मी की सारी कहानियां याद आ गयीं।” जी हाँ, ये ज़ाकिर खान की कविता की ही कुछ लाइन्स हैं जो इन दिनों सोशल मीडिया पर बहुत सराही जा रही हैं। बहुत ही ख़ूबसूरती से पिरोयी गयी इस कविता ने लाखों लोगों के इमोशंस को उजागर किया है। अपने परिवार, माँ से दूर रहने वाला हर इंसान इसे महसूस कर सकता है, ख़ासकर के पुरुष।
इस लॉकडाउन ने हमे बहुत सी ऐसी चीज़े महसूस करवा दी हैं जो शायद हम सालों से अनदेखा करते आ रहे हैं और उन्हीं में से एक है इस कविता की चंद पंक्तियों के पीछे छुपी वो गहरी बात जो हमें पता तो है लेकिन हम उसे खुलकर एक्सेप्ट नहीं करते हैं। क्या ऐसी ही किसी दमदार कविता की हमें ज़रूरत थी?
लेकिन क्या इसमें भी माँ की गलती है? हाँ, चलो हम कह सकते हैं कि पहले के दौर में घर में लड़के और लड़कियों की काम बंटे हुए होते थे। लड़की घर के काम में अपनी माँ को मदद करवाएगी तो लड़का अपने पापा को बाहर के कामों में मदद करेगा। लेकिन क्या ये अब की सिचुएशन में भी लागू होता है?
अब लड़के और लड़कियाँ दोनों को हर काम सीखना ज़रूरी है। लेकिन क्या हम ये हक़ीक़त में करते हैं या बस बड़ी बड़ी बातें करके ही रह जाते है। इसी तरह हाल ही में अमूल ने एक डूडल बनाया जिसमे वर्किंग वीमेन को दिखाया गया कि वो किस तरह से वो घर और ऑफिस दोनों का काम संभाल रही है। औरतें तो बखूबी दोनों काम संभाल सकती है लेकिन पुरुषों का क्या ? वो तो आसानी से हर ज़िम्मेदारी घर की महिला पर छोड़ कर चले जाते है।
अक़्सर माँ सोचती है की वो अपने बच्चे से काम नहीं करवाएगी लेकिन वो भूल जाती है कि इस लाड़ प्यार से उन्हीं बच्चों को आगे जाकर दिक्कत आएगी। हां ठीक है पहले के समय में चल जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब हर इन्सान को ख़ुद के काम करना आना ही चाहिए। इसमें पेरेंट्स की भी उतनी ही ज़िम्मेदारी बनती है जितनी की बच्चों की। आपकी परवरिश उतनी ही मायने रखती है।
ठीक है लेकिन क्या बच्चों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती खासकर के लड़कों की। क्या कभी आपने आपकी माँ की मदद करने की कोशिश करी। इस कविता में है की “माँ तुझे बताना चाहिए था ना की ठंडी रोटियों पर घी पेलता नहीं है” तो आप दिल से एक चीज़ बताना कि क्या आपने ये खुद कभी जानने की कोशिश की? सालों से माँ तुम्हारे हर नख़रे झेलती आयी है, तुम तो तुम्हारी मर्ज़ी हुई तो खाओगे, वरना नहीं खाओगे। लेकिन उसे तो हर तरह से सोचकर चलना पड़ता है। तुमने अगर आज ज़्यादा खाया तो वो अपने हिस्से का भी दे देगी तुम्हें और अगर तुमने आज नहीं खाया तो कल तुम्हारे हिस्से का ठंडा खाना भी वो ही खायेगी। तो आखिर वो तुम्हें कब बताती कि बेटा, ठंडी रोटियों पर घी पेलता नहीं है।
जब तुम अपना दूध का गिलास भी सिंक में नहीं रखते तो वो तुम्हें बर्तन साफ़ करना किस हक़ से सिखाती। आज जब तुम्हें दों वक़्त का खाना क्या बनाना पड़ गया तुम्हें उस माँ की याद आ गयी? लेकिन जब तुम अपने दोस्तों के साथ पूरी रात पार्टी करते हो, पूरे दिन में दो मिनट भी उससे ठीक से बात नहीं करते हो, जब उसकी याद आयी थी तुम्हें ?
उन्हें समझने की कोशिश करी। अगर वो आपसे काम नहीं करवाती तो इसके पीछे भी उनका प्यार ही छुपा था, लेकिन वो आप जैसे राजा बेटों को कैसे समझ आएगा? आपको तो पैदा होने के साथ ही सारी छूट मिल जाती है। आप इतने समझदार तो होंगे ना कि खुद की देख-भला कर सकें? चलो माना की आपकी परवरिश ऐसे ही माहौल में हुई जहां आपसे काम नहीं करवाया गया लेकिन क्या अब आप ज़िम्मेदारी उठाते हैं? क्या अभी जब घर जाते हैं, तो क्या कभी अपनी माँ को समझने की कोशिश करी या फिर बस वही अभी खुद को उनकी ज़िम्मेदारी समझते रहते हैं?
उस माँ से कभी पूछा कि माँ तुझे भी तो अपनी माँ की याद आती होती, तुझे भी तो कभी हमारी तरह बिना टेंशन के जीने का मन करता होगा, कभी इन बातों पर पर भी कविता हो जाए, डूडल्स बनाये जाएँ! लेकिन इन बातों पर लोग इमोशनल कैसे होंगे? उन्हें शर्मिंदा होना पड़ेगा।
और हाँ, याद आया! जल्द ही मदर्स डे आने वाला है। क्या इस मदर्स डे भी आप ऐसे ही इमोशनल कवितायेँ लिखकर ही मनाएंगे या सच में कुछ करेंगे? एक बार अपनी ज़िम्मेदारी उठा कर तो देखो, नानी, माँ, बीवी सब याद ना आये तो बात है। उस माँ के बारे में सोचकर तो देखो।
ख़ैर अभी भी वक़्त नहीं हुआ है। आप चाहे तो अभी भी इस मानसिकता तो बदल सकते हैं। क्यों ना इसकी शुरुवात आज से ही करें। और अपनी माँ को सिर्फ खाने के लिए याद न करके बल्कि उसके हर छोटे बड़े काम को सम्मान करें और दिल से शुक्रिया करें।
मूल चित्र : YouTube
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