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चलो हम भी कुछ दिन और आरामदायक माहौल में काम करेंगे, बिलकुल तुम्हारी तरह… 

इस लॉक डाउन के चलते अब कुछ हफ्ते और वर्क फ्रॉम होम रहेगा... चलो हम भी कुछ दिन और आरामदायक माहौल में काम करेंगे, बिलकुल तुम्हारी तरह... 

इस लॉक डाउन के चलते अब कुछ हफ्ते और वर्क फ्रॉम होम रहेगा… चलो हम भी कुछ दिन और आरामदायक माहौल में काम करेंगे, बिलकुल तुम्हारी तरह… 

घर के काम निपटा कर अनु स्टडी टेबल पर बैठ गई और नोटपेड पर टू डू लिस्ट चैक करने लगी। लिस्ट में पहले नम्बर पर था, रेज्यूमे अपडेट करना। जिसे देखते ही उसने तुरंत लेपटॉप खोला और रेज्यूमे अपडेट किया। उसके बाद वह अपने विषय के कुछ महत्वपूर्ण टॉपिक्स पर नोट्स बनाने लगी तभी उसकी सास का फोन आ गया। उनसे बात करके फोन रखा तो डोर बेल बजी। दरवाजा खोल कर देखा तो पड़ोस वाली भाभी थी जो यदा -कदा अनु के पास अपने दुखों का पुलिंदा लेकर आ ही जाती थी। उसने भाभी से औपचारिकता निभा कर बहाना बनाया की उसे बाजार जरूरी काम से जाना है ओर बच्चों के आने से पहले वापस भी आना है इसलिए आज समय नहीं दे पाएगी।

जैसे-तैसे उनको विदा किया और फिर से नोट्स बनाने का मूड बनाया ही था कि नीरज का फोन आ गया। नीरज आज शाम को अपने नए बॉस को डिनर पर आमंत्रित कर चुके थे और उसी की तैयारी के लिए उन्होंने अनु को फोन किया था। फोन रख कर अनु ने पैन उठाया पर उसे विषय की बजाय डिनर में बनाए जाने वाले व्यंजन ही याद आते रहे और हारकर वह स्टडी टेबल को छोड़ कर बाहर लॉन मेंं लगे झूले पर बैठ गई।

झूले पर बैठे-बैठे वह सोचने लगी उसकी जिदंगी भी इस झूले की मानिंद हवा में झूलती सी हो गई है। वह घर की जिम्मेदारी और ‘वर्क फ्रॉम होम‘ के बीच हवा में गोते लगाते रह जाती है। पहले वह स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी पर दो बच्चों की जिम्मेदारी आने पर उसने घर से ही ऑनलाइन पढ़ाने का निर्णय लिया, पर वह निर्णय भी मझधार में अटक गया। फिर उसने घर से ही ट्यूशन लेने की सोची बड़ी मुश्किल से  एक बैच बन पाया था जो कुछ दिन बाद शुरू होने वाला था वह उसी की तैयारी मे लगी थी। पर जब भी वह कोई काम करने या पढ़ने की सोचती या तो कोई काम बीच में आ जाता या पति की कोई न कोई फरमाइश।

नीरज जब घर पर आए तो अनु को यू झूला झूलते देख बोल उठे, “अरे क्या हुआ? आज बचपन के झूले क्यूँ याद आ रहे हैं?”

तब उसे होश आया, “अरे! आप कब आए? बचपन याद नहीं कर रही। मैं तो घर पर रहकर परेशान हो गई। घर से काम नहीं हो पा रहा। माहौल ही नहीं बन पाता।”

“अरे तुम भाग्यवान हो जो घर के आरामदायक माहौल में काम करने का मौका मिल रहा है। हमसे पूछो ऑफिस में बॉस की खार खाई आँखों के सामने रहते हुए काम करना कितना मुश्किल है।”

“आरामदायक माहौल इन शैतानों के साथ?” अपने बच्चों की तरफ ईशारा करते हुए अनु ने कहां जो एक अदनी सी पेन्सिल पर अधिकार जमाने हेतु हाथापाई पर ऊतारू थे।

“अरे डिनर की तैयारी हो गई?” नीरज बड़ी चतुराई से विषय को बदलते हुए कमरे के आरामदायक वातावरण में प्रवेश कर चुके थे और मैं ठगी सी दोनों बच्चों को अलग करने की जुगत करते हुए दिमाग में डिनर की प्लानिंग करने लगी।

अगले दिन नीरज जल्दी घर आए तो हमने भी छेड़ने की नीयत से कह दिया, आज क्या ‘वर्क फ्रॉम होम’ करने का ईरादा है? तो नीरज उल्टा हमें ही संशय में डालते हुए कह बैठे, “और नहीं तो क्या”

“कोरोना वायरस के चलते यही डिसीजन लिया गया है। चलो हम भी कुछ दिन आरामदायक माहौल में काम करेंगे।”

यह सुनते ही हमारी तो हँसी छूट पड़ी और उनके पूछने पर हम भी भोले बन गए।

कुछ दिन तो घर के आरामदायक माहौल का लुत्फ उठाने की खुशी में निकल गए लेकिन फिर यह खुशी खीज़ में बदल गई। नीरज अचानक चिड़चिड़े से होने लगे। फिर हमारा हाथ पकड़ कर बोले, “यार काम का माहौल नहीं बन पा रहा।”

हम भी अपनी हँसी रोकने की कोशिश करते हुए सांत्वना देने लगे, “आप चिंता न करें। आदत नहीं है न आपको आराम से काम करने की। मैं चाय बनाकर लाती हूँ तब तक आप माहौल बनाईए।”

हमारी सांत्वना या फिर ढ़ेर सारा प्यार उडेल कर बनाई गई चाय का नतीजा वे कुछ घंटे काम पर टिक पाएं। तभी बच्चों ने टीवी ऑन कर दिया। उस पर माननीय प्रधानमंत्रीजी का भाषण कोरोना वायरस के चलते सतर्कता बरतने पर आ रहा था। हम सभी ध्यान से सुनने लगे। भाषण खत्म होने पर हमने किचन का रूख किया ही था कि इन्होंने हमारा हाथ पकड़ कर पास बैठने की गुजारिश की। हम तो हया की नदी में गोते लगाने लगे। बच्चे होने के बाद ऐसे पल तो विरले ही आए हमारी जिदंगी में कि पति कुछ फरमाइश न कर, बैठने की गुजारिश करें।

हम भी पूछ बैठे क्या हुआ,तो उनके मुख से निकला, “एक दो दिन तक तो ठीक था पर इतने दिन! हम माहौल कैसे बनाएंगे भला? काम तो होने से रहा।” और मायूस होकर बैठ गए। बस अब हमसे हँसी नहीं रुक रही थी और हम बुक्का फाड़ कर हँसने लगे, बच्चों ने भी हमारी हँसी में जुगलबंदी कर ही डाली। और नीरज कभी हमें और कभी हमारे बच्चों को देखते हुए सोचने लगे, “आखिर हमने कौनसा जोक मारा जो सभी को हँसी आ रही पर हमें न आ रही…”

अपने आप को संभालते हुए हमने बस यही कहा, “हम चाय बना कर लाते है आप कुछ दिन और माहौल बनाईए…”

मूल चित्र : Canva

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