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सीमा कुशवाहा ने ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे से अपनी ज़िंदगी और निर्भया केस से जुड़ी कुछ यादें और अनुभव साझा किए। आइये पढ़ें उस इंटरव्यू के कुछ अंश यहाँ।
निर्भया को न्याय दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण चेहरा रहीं निर्भया की वकील सीमा समृद्धि कुशवाहा, जो चट्टान की भाँति निर्भया के लिए खड़ीं रहीं और आगे बढ़ती गईं।
सीमा कुशवाहा ने सोशल मीडिया पर शुरू से आखिरी तक अपने अनुभव साझा किए, इनके एक-एक शब्द से मज़बूती और कर्मठता की महक आती है। उनके इस ब्यान को सुन कर दिल तो दहल ही जाता है मगर उससे सीमा की दृढ़ निश्चलता साफ़ झलकती है। उसी अनुभव के कुछ अंश आज हम यहां आपके साथ साझा करने जा रहे हैं।
इस इंटरव्यू में सीमा कुशवाहा कहती हैं कि वह यूपी के उगरपुर नामक गाँव में पैदा हुईं थी। सीमा आगे बताती हैं कि “जब मेरी माँ को पता चला कि वह गर्भवती है, तो वह गर्भपात करना चाहती थी क्योंकि उनकी पहले से ही 3 बेटियाँ और 3 बेटे थे, लेकिन वह गर्भपात नहीं करा पाईं क्योंकि हम एक सयुंक्त परिवार में रहते थे।” जब मैं पैदा हुई तो मेरे पिताजी और बुआ को छोड़कर हर कोई दुःखी था। मेरी माँ ने मुझे मारने का निर्णय लिया मगर मेरे पिताजी और बुआ के हस्तक्षेप से में जीवित रही। बड़े होकर, मेरे भाइयों ने मेरे साथ एक अनचाहे बच्चे की तरह व्यवहार किया। चीजें अंततः बेहतर हो गईं, लेकिन मुझे हमेशा लगा कि हम लड़कियों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता है।मगर मेरे पिताजी ने मुझे पढ़ाया और मुझे आगे बढ़ने का मौका दिया।
सीमा कुशवाहा के शब्दों में – मैंने 8 वीं कक्षा पास की और उसके बाद मेरी साथी लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया। मैंने जैसे तैसे कर के पढ़ाई जारी रखनी चाही, मगर गाँव के लोग और खानदान के लोग बोलने लगे इसको पढ़ाने की क्या ज़रूरत है, शादी तो करनी है। तब तक पिताजी गाँव प्रधान बन चुके थे और मैं शहर के लोगों और विधायकों के शिक्षित बच्चों के साथ यात्रा पर जाना चाहती थी और उनके साथ समय बिताना चाहती थी। पर घरवालों को यह बात मंज़ूर ही नहीं होती। मैंने बोला कि मैंने इंदिरा गांधी और झांसी की रानी पर किताबें भी पढ़ी हैं और उनकी तरह बनना चाहती हूं। मैंने पिताजी से कहा कि मेरे भाई की पढ़ाई नहीं रुक रही है – फिर मेरी क्यों रोकी जाएगी?
सीमा कहती हैं कि अंत में, मेरे शिक्षक श्री जगदीश त्रिपाठी ने मेरे पिता को आश्वस्त किया कि मैं अपने गाँव की पहली लड़की हूँ जो 8 वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई करती है। लेकिन पिताजी मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, क्योंकि मुझे विद्यालय से आने जाने में कम से कम 3 घंटे लगते थे। उन्होंने जल्द ही महसूस किया कि उन्हें चिंता करने की कोई बात नहीं है।
एक बार की बात है जब वे विद्यालय से घर आ रही थीं तो कुछ लड़कों ने उन्हें गंदी बातें बोलीं, उन्होंने चुपचाप जाकर उनको पीट दिया और कहा “छोडूंगी नहीं तुझे” पूरे इलाके में यह बात फैल चुकी थी। लड़के अक्सर कहा करते थे इस लड़की से पंगे मत लेना बहुत डेंजरस है सीधा पिटाई कर देती है। सीमा कहती हैं कि पितृसत्ता के प्रति मेरी असहिष्णुता तब से ही शुरू हो गई थी, लेकिन शायद इन सब से गुजरना मेरे भाग्य में था, ताकि एक दिन मैं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मामले को लड़ सकूं।
वे अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए बहुत उत्साहित थीं और कहती हैं कि मुझे किसी और की कोई परवाह नहीं थी – मैंने अपनी चप्पल पहनी और अपना थैला उठाया, और अपने भाई की साइकिल ली और स्कूल के लिए निकल गई। मैंने हर चीज में हिस्सा लिया – मैंने भाषण दिए और यहां तक कि लखनऊ में अपनी NCC टीम की कप्तानी करने के लिए भी चुनी गई। फिर वही असमानता की घन्टी मेरे गाँव वालों के दिमाग में बजने लगी, बोलने लगे अगर लड़की शहर जाएगी तो तुम्हारा नाम बदनाम करेगी और कुछ नहीं।
सीमा कुशवाहा याद करती हैं कि उनके पिताजी ने उनका समर्थन किया – मैंने अपने भाई से पैसे लिए और बिना किसी को बताए लखनऊ के लिए रवाना हो गई। वहां, हमने प्रतियोगिता जीती और मेरा नाम अख़बार में आया-एक गाँव की लड़की के बारे में एक छोटा-सा लेख जो उनकी टीम को जीत की ओर ले जा रहा था। उसके बाद, कुछ समय के लिए, मैं अकेली ही रही। लेकिन 10 वीं के बाद, मेरे परिवार ने मेरी शादी पर जोर दिया। मुझे अपनी पढ़ाई बंद होने का इतना डर था कि मैं 3 दिनों के लिए भूख हड़ताल पर चली गई। इसके बारे में जब लड़के वालों ने सुना तो उन्होंने मुझे ज़िद्दी पागल लड़की का ख़िताब दे डाला। मैं पढ़ाई करने के लिए बेताब थी। अपने कॉलेज की फीस का भुगतान करने के लिए, मैंने अपनी पायल और बालियां बेचीं और एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। कुल मिलाकर, मैंने हार मानने से इनकार कर दिया।
वर्ष 2002, में मेरे पिताजी का निधन हो गया और मेरे सबसे बड़े भाई ने मुझे बोला के अब तुमको शादी तो करनी ही होगी। मैं इस बात से सहमत नहीं थी। इसलिए मेरी दोस्त रिंकी ने मुझे LLB एलएलबी का फॉर्म भरवाया और किताबें दिलाने में मदद की।अंत में, मैंने घर छोड़ दिया। वकील बनने के लिए मैंने ज़िन्दगी में कड़ी मेहनत की और बहुत से उतार चढ़ाव देखे।
लेकिन यहाँ मैं एक बात साझा करना चाहूंगी के बंबई या दिल्ली में महिला वकीलों की स्थिति छोटे शहरों की तुलना में अलग है। कानपुर में, हमें न्यायालयों में कोई सम्मान नहीं दिया जाता था – एक महिला वकील के लिए सिर्फ उसके लिंग के कारण तारीखें न मिलना आम बात थी। इसलिए अंततः, मैं दिल्ली आ गई जहाँ मैंने अपनी UPSC(यूपीएससी) की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।
जब यह भयानक दुर्घटना हुई तब सीमा कुशवाहा एक PG में रहा करती थीं। 16 दिसंबर, 2012, जिस दिन उन्होंने उसके साथ गैंगरेप किया, उस दिन हम समाचार सुन रहे थे और देख रहे थे, मेरे साथ कि 12 लड़कियों ने दिल्ली छोड़ने का फैसला किया मगर मैं अडिग रही और उस मामले को देख देख कर मैं अंदर ही अंदर सिसक रही थी और मैंने रोने के बाद आने आंसू पोछे और उस समय मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरे अंदर कुछ हिल रहा हो। मैंने निश्चय किया कि मेरा सारा जीवन, मैंने अपने लिए लड़ा, लेकिन यह घर पर बैठकर रोने का समय नहीं था – यह वहाँ से बाहर निकलने और वापस लड़ने का समय था।
उनका कहना है कि उस समय पूरा देश आक्रामक हो रहा था। वह ऐसी यातना से गुज़री जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकती थीं – और सभी ने उसके दर्द को महसूस किया। उनका कहना है कि अगर हमने उस समय किसी भी दोषी को देखा होता तो हम उनके टुकड़े टुकड़े कर देते – ऐसा हमारे मन का फ्रेम था। जहां उनको ठहराया गया था, उस क्षेत्र में और उसके आसपास लगभग 50,000 युवा थे – हमने विरोध करने का फैसला किया। 22 दिसंबर को इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन में मैं सबसे आगे थी।
उन्होंने हम पर पानी के छींटे मारे; लाठी चार्ज किया – लेकिन हम नहीं रुके। मैंने शुरू से अंत तक हर विरोध में भाग लिया। मैं यह नहीं समझा सकती कि जब हमें खबर मिली कि ज्योति की जीवन लीला समाप्त हो गई और उसने अपनी जान गंवा दी तो मुझे कैसा लगा। मुझे उससे बहुत गहरा जुड़ाव महसूस हुआ और मैंने उसकी याद में एक बैठक आयोजित की और उसके माता-पिता को आमंत्रित किया।
उसके बाद, शायद ही कभी ऐसा दिन रहा हो जब उन्होंने निर्भया की माँ से बात न की हो। मैंने इस केस की हर सुनवाई में भाग लिया, भले ही मैं ज्योति की वकील नहीं थी। मैं 7 जनवरी को कोर्ट में उपस्थित थी जब उन्होंने साकेत कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की। वहां कुछ वकील थे जो आरोपियों का मामला उठाना चाहते थे मैंने उनसे नैतिक आधार पर अपील की कि वे इसे न लें। मुझे पता था कि यह अतार्किक था।
एक समय आया जब एपी सिंह ने इस केस में खुद की उपस्तिथि दर्ज कराई और आरोपियों का मामला उठाया, जबकि राज्य ने ज्योति का बचाव करने के लिए एक वकील प्रदान किया। अगले वर्ष, जिला अदालत में दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई। फिर भी, कोई अमल नहीं हुआ। उनका कहना है कि महीने बीतते गए और निर्भया की माँ हर गुजरते दिन के साथ दुःखी होती गई।
सारे तथ्यों को जोड़ने के लिए, जब एक पत्रकार ने एपी सिंह से सवाल किया था कि क्या वह यह मामला आगे तक ले जाएंगे? अगर ज्योति आपकी बेटी होती तो? – उन्होंने कहा, ‘अगर वह मेरी बेटी होती, तो मैं उस पर पेट्रोल डालकर उसे आग लगा कर जला देता।’ उस समय मेरा खून उबल रहा था। अंत में, मई 2014 में, जब मैंने आंटी से बात की और उन्होंने मुझसे कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि मेरी बेटी को न्याय मिलेगा।’ तब मैंने उससे वादा किया की मैं ज्योति के लिए लड़ूंगी; मैं इस मामले को आगे तक ले जाऊंगी – हम उनको छोड़ेंगे नहीं। यहीं से सीमा ने अपने मन और मस्तिष्क को समझा दिया था कि वह पीछे हटने वालों में से नहीं है।
वे कहती हैं कि “मुझे अभी भी याद है कि मैंने क्या महसूस किया था जब मैंने उच्च न्यायलय में उन दोषियों को देखा था। मैं पूरी तरह तर बतर हो गई थी – उनकी क्रूरता और अपराधों की तस्वीरें मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छा गईं थीं। मगर उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था के जैसे उन्होंने कुछ नहीं किया, बिल्कुल शांत और एक दूसरे के साथ मजाक भी कर रहे थे। यह वह चेहरे थे जिन्होंने एक जानवर से भी बदतर काम को अंजाम दिया था। उनकी हिम्मत इस क़दर बढ़ी हुई थी के वह निर्भया की माँ की तरफ देख कर हँस रहे थे। वह कैसा पल रहा होगा? मैं उस समय पूरे गुस्से से भर गई ऐसा गुस्सा मुझे कभी नहीं आया था। लेकिन एक महिला होते हुए भी मैंने उन्हें हरा दिया और उन्हें अपने हाथों से उस जगह पहुंचाया और सज़ा दिलवाई जो उन्होंने अपराध किया था। लेकिन एक वकील के रूप में, मुझे अपने दिल पर पत्थर रखना पड़ा और शांत रहना पड़ा यह भी वक़्त की ज़रूरत थी।
क्रॉस-चेकिंग,गवाह के बयानों और (DNA)डीएनए परीक्षण के दौरान मैं थोड़ी हड़बड़ाहट में थी , मैंने देखा कि उनमें से सभी दोषियों ने अपनी गंदी ज़ुबान के माध्यम से हर बार झूठ ही बोला। विनय और पवन ने कहा कि वे उस रात एक पार्टी में थे; अक्षय ने दावा किया कि वह शहर से बाहर था, और मुकेश ने कहा कि वह बस चला रहा था और उसके साथ बलात्कार नहीं किया था। मैं जानती थी यह सब उनकी मनगढ़ंत चाल थी।
उस समय को याद करते हुए वे बताती हैं कि ज्योति के शरीर पर काटने के निशान थे जो अक्षय के दांतों से मेल खाते थे। उसके नाखूनों में दोषियों की त्वचा के अंश था और उनके शुक्राणु के नमूने ज्योति के निजी अंगों में पाए गए थे। जब मैंने अदालत में उस रॉड को देखा जो ज्योति के शरीर को छिन्न भिन्न करने के लिए इस्तेमाल हुआ था, मैं उस स्तिथि में क्या महसूस कर रही थी मैं बयान नहीं कर सकती, वह कितना दुखदायी था। मुझे लगा कि मैं बेहोश हो गई हूं, यहां तक कि उस दर्द की भी कल्पना कर रही हूं, जो ज्योति के साथ हुआ होगा – फिर भी, उन्होंने झूठ बोला और कहा कि उन्होंने रॉड को पहले कभी नहीं देखा है। मगर रॉड पर उन सभी के अंगुलियों के निशान मौजूद थे।
उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बाद भी, एपी सिंह(दोषियों के वकील) ने दोषियों को बचाने के लिए हर हथकंडे अपनाए और अपनी आक्रामकता बढ़ाई। उन्होंने मौखिक रूप से अदालत में न्यायाधीशों पर हमला किया, मामले को आगे बढ़ने से रोकने के लिए अपील की और ज्योति के चरित्र का अपमान भी किया। मैं चौंक गई थी और अपने मानसिक स्तिथि को स्टेबल कर रही थी। मैंने अपने प्रतिद्वंद्वी को देखा कि वह क्या था – एक इंसान जिसने इस जघन्य अपराध को रोकने के लिए कुछ नहीं किया। उसके शब्दों ने मुझे प्रताड़ित किया मगर मैं यह जानती थी कि मैं हार मान कर निकलने वाली नहीं हूँ। मुझे उसे हराने के लिए उसकी मानसिकता को समझने की जरूरत थी। इसलिए, मैंने अपने कंपोजर को कुछ नहीं कहा और उसने मुझे उखाड़ने की भरकस कोशिश की और मैं अपनीगरिमा के साथ लड़ी।
लेकिन, न्याय का सटीक इस्तेमाल कहीं नहीं हो रहा था और मामला आगे नहीं बढ़ रहा था। मैंने अंकल और आंटी को सांत्वना देने की कोशिश की, मगर उन्होंने अपनी उम्मीद खो दी थी। लेकिन मैंने उन्हें शपथ दिलाई कि जब तक मौत की सज़ा कानून के पत्र में है, तब तक न्याय ज़रूर मिलेगा।
आगे सीमा कुशवाहा कहती हैं कि मेरी लड़ाई सिर्फ ज्योति के लिए नहीं थी। यह भारत की हर लड़की के लिए थी। मैं अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चीज के लिए तैयार थी। यहाँ तक कि मैंने सोचा था ज़िन्दगी का केस में देश के सबसे बड़े न्यायलय में लड़ूंगी- जैसे सुप्रीम कोर्ट
वे बताती हैं कि उस समय मेरे लिए सुप्रीम कोर्ट में भी तारीख तय करना कठिन था, लेकिन हमने अपनी बात को सुनाने की हर कोशिश की, लेकिन वह व्यर्थ ही गई। अदालतों के पास मामलों का एक बैकलॉग था और मुझे यह भी बताया गया था कि हमारे मामले की सुनवाई 2021 से पहले नहीं होगी – लेकिन मैंने सवाल उठाया के इस मामले को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है? मैंने कई एडवोकेट को फोन किया और रजिस्ट्रार पर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया, अंत में पूरे 1 वर्ष के बाद सुनवाई हुई।
2 साल और उसके 11 महीने बाद; 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ही फैसला दिया – दोषियों को सज़ा ए मौत दी जाएगी। लेकिन एपी सिंह ने अंतिम निष्पादन में देरी के लिए हर संभव कोशिश की। उसने मुझे याचिकाओं में डुबो दिया- हर बार जब मैंने एक राउंड जीता, तो 10 अन्य थे जो शुरू भी नहीं हुए थे। उन्होंने अपने बचाव का रास्ता ढूंढ लिया था – दोषियों को एक साथ लटका दिया जाना था या बिल्कुल भी नहीं। वह उन सभी 4 के लिए एक साथ याचिका दायर कर सकता था, लेकिन उसने एक एक कार के याचिका को दायर किया एक खारिज होरी फिर दूसरी याचिका फिर वह खारिज होती तो तीसरी याचिका। यह एक दुष्चक्र था। तब तक 6 साल हो चुके थे।
अदालतें इतनी ढीली क्यों थीं? क्या उन्होंने रॉड नहीं देखी थी? क्या उन्होंने देश की नाराज़गी नहीं सुनी? या हमने बलात्कार को सामान्य किया था, चाहे वह कितना भी क्रूर क्यों न हो? न्याय तो दूर की बात है, लेकिन ज्योति के कमरे में जाने और मुस्कुराते हुए फोटो देखने के बाद मुझे हर बार ताकत मिली। मुझे उसकी माँ ने हर बात बताई कि वह जीना चाहती थी और डॉक्टर बनना चाहती थी और लोगों की मदद करना चाहती थी। मगर भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था।
सीमा कुशवाहा उसकी फोटो देखती रहतीं और उससे वादा करती रहती थीं कि मैं यह सुनिश्चित करूंगी और आरोपियों को फाँसी तक पहुंचा कर ही दम लूंगी। उसके साथ बलात्कार करने और उसकी जान लेने का अधिकार किसी को नहीं था। वे अपनी बात पर डटी रहीं और वे कहती हैं कि मैंने राष्ट्रपति और पीएम को पत्र भी लिखा। मैंने मीडिया में देरी पर सवाल उठाया और अदालत में लड़ाई लड़ी जैसे मेरा जीवन इस पर निर्भर था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि एपी सिंह के पास अनुभव के हर पहलू के लिए यह मेरा पहला मामला था।
आखिरी में 7 साल, 3 मौत के वारंट और अनगिनत देरी बाद में, हमारे प्रयासों ने अपना योगदान दिया । 20 मार्च, 2020 को ज्योति के लिए न्याय प्रदान किया गया, जिनमें से 4 आखिरकार लटकाए जाने वाले थे। लेकिन एपी सिंह ने अभी तक हार नहीं मानी है – वह फिर किसी निर्भया के खून से अपनी आस्तीन को रंगने वालों के समक्ष खड़ा होगा।
सीमा कुशवाहा के इस साक्षात्कार को पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मन से इनके लिए बहुत दुआ निकली। साथ ही ये दुआ भी निकली कि दुनिया की हर लड़की ही नहीं, बल्कि दुनिया का हर इंसान इतना सशक्त हो कि ये दुनिया बिना अन्याय और डर के और जीने लायक बन जाए।
मूल चित्र : Instagram(Humans of Bombay)
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