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निश्छल प्रेम और प्रेम की परिभाषा

प्रेम एक बिल्कुल निश्छल भावना है, हाँ मगर वह प्रेम ही हो क्यूँकि प्रेम तो वह एहसास है जहाँ स्वार्थ का नाम दूर-दूर तक नहीं होता।

प्रेम एक बिल्कुल निश्छल भावना है, हाँ मगर वह प्रेम ही हो क्यूँकि प्रेम तो वह एहसास है जहाँ स्वार्थ का नाम दूर-दूर तक नहीं होता।

गर तुम्हें फूलों की खूबसूरती से प्रेम हो तो बागीचे में जाना,
लेकिन तोड़ कर फूलदान में हरगिज़ न सजाना,
क्योंकि यह प्रेम नहीं है!

गर तुम्हें चिड़िया के रंगों से प्रेम हो तो जंगल नें जाना,
लेकिन चिड़िया को पिंजरें में कैद न करना,
क्योंकि यह प्रेम नहीं है!

गर तुम्हें किसी के प्रति दिल से प्रेम हो तो खुद के भीतर उतरना,
लेकिन उससे दिल लगाकर फिर प्रेम न मांगना,
क्योंकि यह प्रेम नहीं है!

मूल चित्र : Pixabay

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