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नमस्कार की एक मुद्रा : ईश्वर से आशा की आभा या एक विनती

मैंने जीवन भर ईश्वर से शिकायत की उन्होंने मुझे बेटा क्यों नहीं दिया पर मैं भूल गया था ईश्वर ने तुम बेटियों के रूप में एक नहीं चार लाठियाँ दी हैं।

मैंने जीवन भर ईश्वर से शिकायत की उन्होंने मुझे बेटा क्यों नहीं दिया पर मैं भूल गया था ईश्वर ने तुम बेटियों के रूप में एक नहीं चार लाठियाँ दी हैं।

हरिया की नज़रें आसमान पर टिकीं थी। बादलों और बारिश का नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था।यह लगातार तीसरा साल था जब पूरा इलाक़ा सूखे की चपेट में था। हरिया ने बड़ी बेटी की शादी के लिये यह सोच कर साहूकार से क़र्ज़ लिया था, कि फ़सल अच्छी होने पर क़र्ज़ सूद समेत चुका देगा। पर यह सूखा! ‘न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी’। हरिया बहुत परेशान था क्योंकि वह जानता था कि यदि उसने क़र्ज़ नहीं चुकाया तो साहूकार उसकी ज़मीन हड़प लेगा।

वह गाँव की गुमटी पर उदास बैठा अपनी क़िस्मत को कोस रहा था। अब उसकी बूढ़ी हो चलीं हड्डियाँ भी अधिक साथ नहीं देतीं। बेटे की आस में घर में चार लक्ष्मियाँ घर आ गईं थीं। अभी तो क़र्ज़ लेकर एक ही बेटी का विवाह कर पाया है। जवान होती बेटियाँ हरिया के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण थीं । वह सोच रहा था कि एक लड़का होता तो शायद उसका सहारा बनता, पर ये बेटियाँ !पैसे की कमी के कारण वह उन्हें पढ़ा भी न पाय,  हाँ वे सिलाई कढ़ाई में निपुर्ण  हैं।

तभी पड़ोस के रामू की आवाज़ उसके कानों में पड़ी “सरकार किसानों के क़र्ज़ माफ़ कर रही है हरिया चाचा, अब तुम्हारी परेशानी दूर हो जायेगी”

“पर बेटा, हमने तो क़र्ज़ साहूकार से लिया है सरकार से नहीं ! हमारे लिये तो कोई राहत नहीं। सुना है बेटा सरकार किसान के मरने पर भी पैसा देती है, लाखों का मुआवज़ा”।

“ हाँ मुआवज़ा मिलता तो है, पर तुम क्यों पूछ रहे हो चाचा ?”  रामू ने आश्चर्य से पूछा।

“ कुछ नहीं ऐसे ही” कह कर हरिया घर चल दिया। रास्ते में उसने निर्णय कर लिया और निष्कर्ष पर पहुँच कर उसकी चिंता कुछ हद तक दूर हो चुकी थी। 

हरिया घर पहुँचा तो घरवाली ने भोजन की थाली सामने रख दी। थाली पर नज़र पड़ते ही वह सोचने लगा ‘आज तो कोई त्यौहार नहीं, फिर थाली में नमक भात के स्थान पर दाल भात कैसे ? 

तभी घर वाली ने रुपये लाकर उसके हाथ पर रखते हुए कहा “ ये पैसे रखो लाली के बापू, साहूकार को देकर अपनी ज़मीन छुड़वा लो”।

“ कहीं से लाटरी लग गई है क्या ?” हरिया ने आश्चर्य से पूछा । 

“ कोई लाटरी नहीं, यह सब लाली और सुमन की मेहनत का फल है। गाँव की टीचर जी शहर की किसी बड़ी कम्पनी के लिये यहाँ से कपड़े सिलवा कर भेजती हैं, बेटियों को उसी के पैसे मिले हैं”।

हरिया की बूढ़ी सूनी आँखों में चमक के साथ साथ आँसू आ गये। उसने बेटियों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा “मैंने जीवन भर ईश्वर से शिकायत की उन्होंने मुझे बेटा क्यों नहीं दिया जो मेरे बुढ़ापे की लाठी बनता, पर मैं भूल गया था ईश्वर ने तुम बेटियों के रूप में एक नहीं चार लाठियाँ दी हैं। मैं तो कायरों की तरह आज अपने प्राण देने की सोच रहा था, पर मैं भूल गया था मुश्किल और कठिन समय में ईश्वर कोई न कोई दरवाज़ा अवश्य खुला रखते हैं जिससे ख़ुशियाँ किसी न किसी रूप मे अंदर आ जाती है। जैसे कि आज तुम दोनों। सच है, बेटियाँ लक्ष्मी का रूप ही होती हैं”।

हरिया ने एक बार फिर आसमान की ओर देखा, इस बार ईश्वर से शिकायत करने के लिये नहीं अपितु ईश्वर का धन्यवाद देने के लिये और उसके हाथ स्वत: ही नमस्कार की मुद्रा में जुड़ गये ।

मूल चित्र : Pexels 

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