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मुझे अच्छा लगता है सबका ख्याल रखना, मगर मुझे भी अच्छा लगेगा अगर कोई मुझसे कहे, “सुनो, तुम थकी हुई हो, क्यों न आज मैं काम कर दूं?”
सुनो! मैं भी इंसान हूँ, मेरी रगों में भी खून का बसेरा है। मैं भी साँस लेती हूं। मेरी भी आवाज़ है और ढेर सारे ख्वाब हैं। मैं ज़िंदा रहना चाहती हूँ, ज़िन्दगी की तरह।
सुनो! मैं बचपन से सुनती आ रही हूँ, के मैं लड़की हूँ। हाँ! मैं जानती हूँ मैं लड़की हूँ। मगर मेरा भी अस्तित्व है। मैं भी एक ह्रदय रखती हूँ और अरमान भी।
सुनो! कभी कभी मुझे ऐसा क्यों लगता है के मैं अभिशापित हूँ? क्या मैं हूँ? नहीं! मैं शक्ति हूँ, जो सृष्टि को दिशा प्रदान करती है।
सुनो! मैं काया से कमज़ोर दिखती ज़रूर हूँ, मगर नौ माह तक अपने पेट पर बच्चे का बोझ बांधे बांधे मैं थकती नहीं, मेरा शरीर थक जाता है, मगर मेरी आत्मा कभी नहीं थकती।
सुनो! क्या मैं संवेदनहीन हूँ? या मुझे कुछ महसूस नहीं होता? नहीं! मैं भी भावुक हूँ और संवेदनशील भी, जितना इस सृष्टि में कोई नहीं। मैं हर रात देर से सोकर सुबह जल्दी उठ कर अपने कार्य का निर्धारण करती हूँ। और एकांत में सिसकती भी हूँ।
सुनो! मैं हर कार्य में निपुर्ण हूँ, और मैं अनुभवशील भी हूँ। मैं समाज भी झेलती हूँ और घर भी। मगर दो बोल प्यार के शब्दों को सुनने को जी तो चाहता है।
सुनो! मैं सबका पालन पोषण करती हूँ, चाहे वह मेरी कोख से जन्मा बच्चा हो या मेरे साथ मेरा जीवनसाथी। मुझे अच्छा लगता है कि मैं सेवा करूँ, मगर क्या कोई मुझसे पूछ सकता है के, “सुनो, तुम्हारी कोई आवश्यकता तो नहीं? तुम थकी हुई हो, आज मैं कुछ काम कर दूं?”
सुनो! मैं हर रूप में प्रताड़ित की जाती हूँ, चाहे माँ, के रूप में हूँ या पत्नी या बहन, मगर मैं शिकार क्यों बनती हूँ, जबकि मैं भी इंसान हूँ। आपकी तरह।
सुनो! मुझे कभी प्यार का आलिंगन और कंधे का तकिया मिल सकता है क्या? इतनी हक़दार तो मैं शायद हूँ। मेरे आंसुओं को साड़ी के आंचल या दुपट्टे के दामन की ज़रूरत भले ही न हो, लेकिन उन मज़बूत हाथों की ज़रूरत है जो उनको पोछ सकें, और संभाल सके।
सुनो! मुझे भी आज़ादी देकर आबाद करो। मुझे भी प्यार का सवेरा और इज़्ज़त की शाम चाहिए। मुझे भी अरमान में आकाश में उड़ने का, और इतनी ऊंचाईयों पर पहुंचने का, जहाँ से असमानता और भेदभाव की चादर नज़र न आती हो। जहाँ हमको इंसान समझा जाए, और एक औरत होने के नाते सम्मान और प्यार मिले।
मूल चित्र : Canva
चुप थी तब, चुप हूँ आज-पर, लड़की हूँ बोझ नहीं
हाँ औरत हूँ! मुझे जीने दो……
शून्य हूँ मैं, सिफ़र हूँ मैं
अब न मैं अबला हूँ, मैं आज की वुमनिया हूँ!
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