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घुटता है दम इस प्राकृतिक की गोद में …..

शहरी जीवन का वातावरण आज कल बहुत प्रदूषित होता जा रहा है।  ऐसे में दम घुटने लगता है और प्राकृतिक की दशा छिन्न भिन्न हो रही है। 

शहरी जीवन का वातावरण आज कल बहुत प्रदूषित होता जा रहा है।  ऐसे में दम घुटने लगता है और प्राकृतिक की दशा छिन्न भिन्न हो रही है।

ये धुंध का पहरा,

होने लगा है कुछ गहरा,

घुटन है शहरों में छाई,

सांसों पे मंडराता घोर – घनेरा।

ये कोपलें छोटी गुलहड़ की,

जो रहती थीं पहले खिली – खिली,

ना खिलती हैं वो अब, मुरझाया है सवेरा।

ये नन्हे पक्षी जो आते थे सुदूर से,

कितना प्यारा था वो उनका कलरव सुरीला

आज जमघट है वहीं लाशों का,

जो दलदल में थे फंसे,

कोई तो रोको उनकी मौत का ये रेला।

ये पौधे, ये पंछी, प्रतिबिंब हैं हमारे भविष्य के,

क्या दे सकते हैं हम उन्हें स्वच्छ प्राणवायु का कतरा?

वो नन्हा बचपन मेरा जो मिट्टी में था खेला,

वो बचपन आज है सिर्फ यादों का मेला।

इस स्वच्छ हवा और पानी पर है सबका हक़,

चलो बचा लें हम ये बचपन, पेड़ और फल।

ना करो प्रदूषित धरती तुम इतनी,

क्यूंकि स्वच्छ है धरा तो सुरक्षित है जीवन।

मूल चित्र : Pexels

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