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ये रिश्ता अगर दो लोगों से बनता है, तो ऐसा क्यों है कि एक ज़्यादा ज़रूरी है और एक नहीं? ऐसा क्यों है कि मेरा अस्तित्व तेरे होने से ही है?
इक तू है, इक मैं हूं;
इक रिश्ता जो तेरा-मेरा है, एक ही डगर पर साथ चलने सा है।
तेरे बिना मैं अधूरी, मेरे बिना तू अधूरा; फिर क्यूं आधी दुनिया को लगता यही, कि तेरे होने से मैं तो हूं; पर मेरा होना कुछ खास नहीं?
इक सवाल यही; हर रोज ही; दिल में सुई सी चुभोता है…
इक तु है, इक मैं भी हूं; इक रिश्ता जो तेरा-मेरा है, अस्तित्व इसमें तेरा-मेरा है…
मूल चित्र : Pexels
A mother, reader and just started as a blogger
इक बार बचपन मैं फिर से जी जाऊँ…
हां, मैं आत्मसम्मान हूं! तेरा आत्मसम्मान हूं!
मैं भी सही हूँ, पर ये तू नहीं समझेगा…
मैं भी अर्धांगिनी : लेकिन ये आधा मुद्दा ही तो है अब सबसे बड़ा मुद्दा!
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