कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कैसे ढूंढें ऐसा काम जो रखे ख्याल आपके कौशल और सपनों का? जुड़िये इस special session पर आज 1.45 को!
कभी कभी प्राकृतिक के ऐसे ऐसे रूप देखने को मिलते हैं, जिससे मन में लालसा पैदा हो जाती है, काश ! हम भी ऐसे होते, आज़ाद परवाज़ और आज़ाद जीवन,जैसे नदियाँ और पेड़।
अपनी ही धुन में मग्न ,
बंजारों के संग ,
बनकर बहती हवा सा ,
दिल चाहता है नदी के जल सा बहता ही जाऊँ मैं।
कभी दिल कहता है जा सागर से मिल जाऊँ मैं।
सच्चे मोती की तलाश में ,
खुद को पाने की आस में ,
लहरों पर हो सवार ,
दिल चाहता है समंदर की गहराइयों को नापू में।
कभी दिल कहता है क्षितिज से जा मिल जाऊँ मैं।
मंजिल को पाने की प्यास में ,
पंछी बन उड़ जाऊँ मैं ,
बादलों पर हो सवार ,
दिल चाहता है सबसे ऊँची शिखर पर चढ़ जाऊँ मैं।
कभी दिल कहता है जीत का पताका लहराऊँ मैं।
इतिहास के पन्नों में अपना भी एक नाम हो ,
एक अलग पहचान हो ,
बनकर हीरे सा निखरूँ मैं ,
दिल चाहता है इन सितारों सा चमकूँ मैं ,
कभी दिल कहता है उस चाँद तले अपनी एक दुनिया बसाऊँ मैं ,
दिल चाहता है उड़ जाऊँ सपनों के पंख लगाए दूर आसमां में।
कभी दिल कहता है कर ले मुझको भी शामिल इस नील गगन में।
मूल चित्र : Pixabay
Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild
अब मैं कमला भसीन जैसा बनना चाहती हूँ…
फिर लौट आओ
हाँ मैं रुक गयी…मैं ये सोच के रुक गई!
मैं ‘तू’ बन जाऊँ…बस इतना सा ख़्वाब है!
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!