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उमा नेहरू : भारतीय महिलाओं के अधिकारों की शुभ चिंतक

उमा नेहरू आज से 110 साल पहले महिला अधिकारों के लिए लिख रही थीं और आज़ादी के बाद एक सांसद के रूप में भी महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद करती रहीं।

उमा नेहरू आज से 110 साल पहले महिला अधिकारों के लिए लिख रही थीं और आज़ादी के बाद एक सांसद के रूप में भी महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद करती रहीं।

भारत में स्त्री-आंदोलन के लिहाज से 20वीं सदी के शुरुआती तीन दशक बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर जो आत्ममंथन की प्रक्रिया चल रही थी, उसी के एक बड़े हिस्से के रूप में स्त्री-स्वतंत्रता की चेतना भी एक ठोस रूप ग्रहण कर रही थी। हिंदी में तत्कालीन नारीवादी चितंन में जिन लोगों ने दूरगामी भूमिका अदा की, उनमें उमा नेहरू का नाम प्रमुख हैं, जिनको आज याद भी नहीं किया जाता है।

उमा नेहरू ने किया महिला अधिकारों के लिए लेखन

मोती लाल नेहरू के खानदान में उनकी पुत्री विजया लक्ष्मी पंडित, बहू कमला नेहरू, पोती इंदिरा गांधी, उसके बाद सोनिया, मेनका और प्रियंका गांधी की चर्चा हमेशा से ही मुख्यधारा के राजनीति में होती रही है और वह भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप से दिखती भी रही हैं। पर उमा नेहरू का नाम? वे आज से 110 साल पहले महिला अधिकारों के लिए न केवल धारदार लेखन कर रही थीं बल्कि आज़ादी के बाद एक सांसद के रूप में भी महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद करती रहीं।

पं जवाहर लाल नेहरू से पांच वर्ष बड़ी, उमा नेहरू, मोतीलाल नेहरू के बड़े भाई नंदलाल नेहरू के पुत्र शामलान नेहरू की पत्नी थीं। लेकिन उमा नेहरू का व्यक्ति और कॄतित्व कभी भी नेहरू नाम का मोहताज नहीं रहा। उनका जन्म 8 मार्च 1884 को आगरा में हुआ। हुबली के सेंट मेरीज कान्वेंट से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की।

पारिवारिक जीवन

14 फरवरी 1901 को मात्र 17 साल के उम्र में नेहरू खानदान में बड़ी बहू बनकर आईं। जिस ज़माने में हिंदी में कोई महिला लेखिका नहीं मिल पाती थी, उस ज़माने में 26 साल के उम्र में उनका लेख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे। उन्होंने हिंदी की लोकप्रिय पत्रिका मर्यादा के स्त्री विशेषांक का संपादन भी किया था। उस ज़माने में महिलाओं के प्रमुख पत्रिकाओं में से एक स्त्री दर्पण जो करीब बीस साल तक प्रकाशित होती रही, उसके संचालन में भी उमा नेहरु और रामेश्ररी नेहरू का बहुत बड़ी भूमिका रही। उमा नेहरू का लेखन इतना अधिक धारदार था कि यदि का समय होता तो धार्मिक कट्टरपंथी उनकी पत्रिकाओं की प्रतियां जलाने लग जाते।

उमा नेहरू ने किया अंग्रेजी किताबों का अनुवाद

उस दौर की बहुचर्चित किताब मिस कैथरीन मेयों की “मदर इंडिया” का हिंदी अनुवाद उन्होंने ही किया और 27 पेज की लंबी प्रस्तावना भी लिखा। वह लिखती हैं कि “इससे भी बड़ी गलती यह होगी कि हम इस पुस्तक का संपूर्ण रीति से प्रचार न करें। यदि इसमें हमारी वास्तविक दशा चित्रित है, तो इसे पढ़ना और दूसरों को पढ़वाना हमारा धार्मिक कर्तव्य होना चाहिए। यदि इस पुस्तक में झूठ है तो उससे पश्चिम संसार धोखा भले खाए, हम स्वयं उससे धोखा नहीं खा सकते। अपने दोषों से घृणा करना इन्हें दूर करने की पहली सीढ़ी है और जो अपने दोष से घबरारे हैं, वे दवा न खाने वाले बिमार के समान अपने रक्त से स्वयं अपने रोग का पालन करते हैं।”

उमा नेहरू उस दौर में कांग्रेस की तीसरी बड़ी नेता

जाहिर है उमा नेहरू भारतीय महिलाओं के दशा और दिशा को लेकर बहुत अधिक संवेदनशील महिला नेत्री थीं। सदी के महानायक अमिताब बच्चन के पिता और कवि हरिवंश राय बच्चन जी के शब्दों में उमा नेहरू उस दौर में कांग्रेस की तीसरी बड़ी नेता थीं।

उमा नेहरू ने अपने ही दौर में महिलाओं के निम्म दशा के कारण के रूप में उसकी आर्थिक पराधीनता को माना था। उमा नेहरू ने स्त्री-पराधीनता और स्वाधीनता, दोनों की ठीक-ठीक पहचान की। ‘अच्छी स्त्री’ और ‘स्त्री के आत्मत्याग’ जैसी धारणाओं पर उन्होंने निर्भीकतापूर्वक लिखा कि ‘जो आत्मत्याग अपनी आत्मा, अपने शरीर का विनाशक हो… वह आत्महत्या है।’ भारतीय समाज के अन्धे परम्परा-प्रेम पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि “राष्ट्रीय और राजनीतिक प्रश्नों के अलावा जो सबसे बड़ा प्रश्न संसार के सामने है, वह यह कि आनेवाले समय और समाज में स्त्री के अधिकार क्या होंगे?”

आजादी के बाद वह पहले और दूसरे लोकसभा चुनाव में जीत

भारत के आजादी के संघर्ष में उन्होंने नमक यात्रा और भारत छोड़ों आंदोलन में भी हिस्सा लिया था और जेल भी गई थीं। आजादी के बाद वह पहले और दूसरे लोकसभा चुनाव में उन्होंने सीतापुर सीट से कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज की। उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की सदस्य भी बनी और स्त्रियों से जुड़े अनेक विधेयक को परित कराने में उनकी अग्रणी भूमिका थी। 28 अगस्त 1963 को उनका देहांत हुआ।

उमा नेहरू बहुत ही जागरूक लेखिका और स्त्री अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली सामाजिक कार्यकर्त्ता थीं। लेखिका बनकर लोकप्रिय होने की आकांक्षा उनमें नहीं थीं। लिखना उनके लिए माध्यम था समाज को बदलने का और महिआओं के स्थिति में सुधार कर। उनका लेखन महिलाओं को रूढ़िवादी पंरम्पराओं से मुक्त्ति दिलाने का था।

नोट : इस लेख को लिखन के लिए प्रज्ञा पाठक की किताब “उमा नेहरू और स्त्रियों के अधिकार” से मदद ली गई है।

मूल चित्र : Times Content  

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