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ओ री गौरेया… नन्हीं सी चिड़िया अंगना में फिर आ जा रे!

20 मार्च वर्ल्ड स्पैरो डे के रूप में मनाया जाता हैं। इन नन्हे पक्षियों का हमारे जीवन में बहुत बड़ा योगदान है।  यह एक लेख उनके नाम।  

20 मार्च वर्ल्ड स्पैरो डे के रूप में मनाया जाता हैं। इन नन्हे पक्षियों का हमारे जीवन में बहुत बड़ा योगदान है।  यह एक लेख उनके नाम।  

सुबह उनकी चहचहाट से ही हमारी नींद खुलती थी। सारा दिन आँगन में उछलती कुदती फांदती रहती थी। मेरे घर में अपने पूरे हक से रहती थी। कभी-कभी इनका शोर सुनकर ऐसा लगता मानो वो मकान मालिक है और हम उनके किरायेदार। दो रंग के होने के कारण हम बच्चे हमेशा कन्फ्यूस्ड रहते कौन से मम्मी चिड़िया है और कौन से पापा?? खूब शर्त लगाते थे दोस्तों के साथ फिर सारा दिन ध्यान लगाकर देखते बच्चों के लिए खाना कौन लेकर आ रहा है। वैसे कभी लगता सुंदर चटक रंग वाली चिड़िया और बदरंग वाली चिड़ा फिर अगले दिन खुद को ही लगता नहीं यह बदरंग वाली ही चिड़िया होगी। शहरों में वैसे भी पक्षी कम ही दिखते है। परन्तु कबूतर, कौवे, गौरैये जैसे कुछ पक्षी है जिन्होंने मनुष्य से दोस्ती कर ली है। पर हम इंसान इतने खुदगर्ज़ है कि कब हमारा ये दोस्त (गौरैया )हमारे आस-पास से गायब हो गया हमें पता ही न चला। जब इनकी संख्या बिल्कुल ही कम हो गई तब अहसास हुआ।

मुझे बहुत दुःख होता है कि मेरे बेटों ने गौरैया सिर्फ किताबों और इंटरनेट में देखी है। मेरे पति जम्मू कश्मीर में रहते है। पिछले साल की गर्मियों में जब हम वहाँ गये तो शायद पंद्रह साल के बाद मैंने फिर से गौरैया देखी। मैं इतनी उत्साहित थी, मैंने अपने बेटों को बुलाकर दिखाया। वो आये और एक शब्द कहा “अरे स्पैरो, वाऊ” बस……. फिर वो कमरें में चले गये। मैं तो ये सोच रही थी कि वो मेरे साथ खड़े होकर देर तक इसे कूदते-फुदकते देखेंगे। इनके बारे में ढेर सारे सवाल करेंगे और मैं अपने बचपन के अनुभव बताउंगी। मैं तो घंटो इन्हें निहारती रह सकती हूँ। पर जब इनका कोई लगाव ही नहीं बन पाया इन नन्हें परिंदो के साथ तो बच्चों को दोष देने का भी कोई मतलब नहीं।

बस उस दिन से ही मैंने गौरैयों के बारे में जानकारी बढ़ाने के लिए पढ़ना शुरू किया। कुछ इंटरनेट से जानकारी ली। गौरैयों के विलुप्त होने के प्रमुख कारण मोबाइल फोन के टावरों से निकलने वाली तरंगे है। ये तरंगे गौरैया के अंडो को नष्ट कर देती है। फ्लैट कल्चर भी इनको विनाश के कगार पर लाने के मुख्य कारणों मे से है। इन घरों में गौरैयों के रहने लायक जगह नही होती। शहरों में खुले मैदानों , बागीचों की कमी है। तथा कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग तथा पेट्रोल के जलने से निकलने वाली मेथिल नाइट्रेट के कारण छोटे कीट पतंगे मर रहे है जो कि इनके चूजों के मुख्य भोजन है।

संकट ग्रस्त गौरैये को बचाने के लिए लोगों ने अपने स्तर पर अनेक प्रयास किये है। कोई प्लाईवुड से गौरैया हाउस बनाकर लोगो में बाँट रहे है। पंजाब के दविंदर सिंह लकड़ी के वाटर प्रूफ घोंसले बनवाकर अपनी कालोनी के आसपास लगवा रहे है। २० मार्च को विश्व गौरैया दिवस के दिन वन विभाग की तरफ से भी इनके संरक्षण के लिए काफी संख्या में लकड़ी के बर्ड नेस्ट भी बांटे जाते है। थोड़े से प्रयास करके हम इन परिंदो को फिर से अपने आसपास देख सकते है। मैंने भी अपनी तरफ से प्रयास किया है। मिट्टी के बर्तन में पानी रखती हूँ, प्लास्टिक की बोतलों को आकार देकर दाना रखने की व्यवस्था की है। अमरूद के पेड़ में घास फूस से घोंसले का आकार बनवाया है। तोते, कबूतर, कोयल, मैना अब सुबह सुबह हमारे बागीचे के मेहमान होते है। मेरे बेटों की भी दोस्ती इनसे होने लगी है। अब इंतजार है तो मेरी छोटी सी गौरैये की। मुझे पूरा भरोसा है कि एक सुबह मेरा इंतजार जरूर खत्म होगा।

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