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कुछ सवालों का जवाब ढूंढ़ना ही होगा

किसी की गलती करने पर उससे बड़ी गलती करना हमारी समझ तो नहीं है, क्या कर रहे हैं हम? क्यूँ डर रहे हैं हम? किससे छिप रहे हैं हम? 

किसी की गलती करने पर उससे बड़ी गलती करना हमारी समझ तो नहीं है, क्या कर रहे हैं हम? क्यूँ डर रहे हैं हम? किससे छिप रहे हैं हम? 

जो भाई-चारे को भी धर्म की दृष्टि से देख रहे हैं, वो हमारे पड़ोसी नहीं हैं, वो तो कोई और हैं…
हमारे पड़ोसी तो आज भी वही लोग हैं जो हमारी मदद को हमारे परिवार से भी पहले आगे आते हैं।
ये जो हिंसा हो रही है उसमें आप जैसे, हम जैसे लोग शामिल हैं, इस पर अभी भी विश्वास नहीं होता…
क्यूँकि बेगुनाहों का घर यूँ ही उजाड़ देना तो हमारी संस्कृति नहीं है।

कौन हैं वो लोग जो कत्लेआम मचा कर चले गए?
चंद लोग फिर भी हिन्दू मुस्लिम की राजनीति में लग गए।
क्यूँ?

अपने आस पास देखती हूँ तो बंटवारा नज़र नहीं आता…
फिर वो कौन लोग हैं जिन्हें भारत को बँटा हुआ बताने में ही मज़ा आता?
क्यूँ?

कुछ चंद लोगों को बिल्कुल हक नहीं है सबका नुमांइदा बनने का।
आश्चर्यचकित हूँ कैसे हम देख रहे हैं इस दरिंदगी को और बन रहे हैं उस भीड़ का हिस्सा!
क्यूँ?

किसी की गलती करने पर उससे बड़ी गलती करना हमारी समझ तो नहीं है।
क्या कर रहे हैं हम? क्यूँ डर रहे हैं हम? किससे छिप रहे हैं हम? इन सवालों का जवाब शायद हमारे पास नहीं है।

इन सवालों का जवाब अब हमें ढूंढ़ना ही होगा।
क्या चल रहा है? क्यूँ चल रहा है? समझना ही होगा।

मूल चित्र : Canva 

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Deepika Mishra

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