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क्या ये आवाज़ आपकी और मेरी है, “नहीं कहती कि मुझे सदा पलकों पर बिठा कर रखो, लेकिन मेरे सम्मान से खेलने वाले को सज़ा देने का हक तो दो न!”
नहीं कहती कि मुझे अपनी बराबरी करने दो, लेकिन अपने पैरों पर खड़े होने का हक तो दो न!
नहीं कहती कि मुझे सदा पलकों पर बिठा कर रखो, लेकिन मेरे सम्मान से खेलने वाले को सज़ा देने का हक तो दो न!
नहीं कहती कि मुझ पर धन-दौलत न्यौछावर कर दो, लेकिन अपने प्रेम को चुनने का हक तो दो न!
नहीं कहती कि मुझे चाँद-तारे तोड़कर ला दो, लेकिन खुली हवा में सांस लेने का हक तो दो न!
नहीं कहती कि मेरी खूबसूरती पर कविताएं लिखो, लेकिन मुझे मेरे जीवन को निखारने का हक तो दो न!
नहीं कहती कि मुझे कुछ वक्त चाहिए तुम्हारा, लेकिन मुझे कुछ पल मेरी मर्ज़ी से जीने का हक तो दो न!
नहीं कहती कि पूरी दुनिया देखनी है मुझे , लेकिन मुझे बेखौफ होकर चार कदम चलने का हक तो दो न!
नहीं कहती कि मेरी झोली खुशियों से भर दो, लेकिन मां, मुझे दुनिया में आने का हक तो दो न!
मूल चित्र : Canva
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अगर तुम कहते हो कि घर मेरा है तो इसे अपना लगने तो दो…
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