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अगर अपने समाज में बदलाव देखना है तो…प्यार बाँटते चलो!

मेरी यह बात कई लोगों को बहुत बुरी लगेगी, मगर वास्तव में अगर सोचा जाए कि इतने सारे त्यौहारों के बीच यदि एक दिन सिर्फ प्यार के नाम है भी तो इसे रहने दें।

मेरी यह बात कई लोगों को बहुत बुरी लगेगी, मगर वास्तव में अगर सोचा जाए कि इतने सारे त्यौहारों के बीच यदि एक दिन सिर्फ प्यार के नाम है भी तो इसे रहने दें।

प्यार, इश्क़ और मोहब्बत!

इन तीनों अल्फ़ाज़ों में एक ही कहानी नज़र आती है। मगर मेरी नज़र में तीनों शब्द के अलग-अलग मायने हैं। प्यार वो होता है जो हम भाई-बन्धु, माँ-बाप इत्यादि करते हैं, जिसमें रोमांस की लज़्ज़त नहीं होती। यही प्यार जब रोमांस की लज़्ज़त लिए हो और आकर्षण इसका आधार हो तब यह इश्क़ कहलाता है।

मेरे क़रीब जो सबसे सटीक अल्फ़ाज़ आता है वह है, ‘मोहब्बत’ जिसमें जिस्म का रुतबा ना के बराबर होता है। जिसमें दो लोगों का होना भी ज़रूरी नहीं, ये मोहब्बत हम ईश्वर से भी कर सकते हैं और इंसानों से भी। मोहब्बत, प्यार और इश्क़ का मिलाजुला रूप भी हो सकता है। मगर, अगर बात की जाए खालिस, बिल्कुल प्योर मोहब्बत की तो इसमें आत्मा का मेल होता है, इसमें रूहों का मिलन होता है।

मैं इस मोहब्बत में पिछले दस से गिरफ्तार हूँ। इसमें अभी ना रोमांस का एहसास है और ना ही जिस्म को पाने की ललक। मेरी मोहब्बत बेहद शफ्फाक (शुद्ध) है। मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं बिना बारिश के बूंदों में नहा रहा हूँ, और मेरी मोहब्बत की बौछारें मुझे सराबोर कर देती हैं। मोहब्बत एक बहुत ही शुद्ध और पारदर्शी एहसास है। मैं मोहब्बत का कोई भी नकारात्मक रूप नहीं देख पाया।

हाँ! इश्क़ करना मुश्किल आवश्यक है, यह चाहे लैंगिकता के आधार पर हो या समलैंगिकता के आधार पर। हमारा समाज आज भी किसी भी मनुष्य को यह आधार नहीं देता के वह अपने आप किसी से प्यार कर सके। आज भी वही पुरानी घिसी-पिटी विचारधारा और वही रूढ़िवादी सोच।

एक लड़का और लड़की अगर प्यार कर रहे हैं, चाहे उस प्यार के पीछे उनकी वासना हो या कोई और भावना, समाज उसको नहीं अपनाता, और अगर बात समलैंगिकता की हो, तो बात तो और बिगड़ जाती है। लोग मज़ाक उड़ाने लगते हैं और उसका सामाजिक बहिष्कार कर देते हैं। इस तथ्य से यह तो साबित है के प्यार करना पाप है।

प्यार करना एक व्यक्तिगत एहसास और आधार है, जिसको कोई नहीं छीन सकता और ना छीनना चाहिए। हर जगह सिर्फ प्रेम ही प्रेम बरसना चाहिए, जिससे हम अपने समाज में कई प्रकार के बदलाव अवश्य ही देख पाएंगे।

हमारे देश में धर्म के कई ऐसे ठेकेदार हैं जो इस एहसास को पाप या गुनाह क़रार देते हैं। यह कैसे पाप हो सकता है? इस बात की आधिकारिक स्पष्टता की व्याख्या करना हमारे देश के एक-एक नागरिक पर आवश्यक होनी चाहिए। विश्व की मौजूदा स्तिथि को देखते हुए, हम सब को यही प्रण लेना चाहिए के सबको प्रेम से जीत सकते हैं, घृणा और नफरत से केवल नुकसान ही उठाया जाता है।

सबको प्यार करने की आज़ादी मिलनी चाहिए, चाहे वह किसी भी लिंग का हो या जाति का हो। प्रेम का पाठ सीखने के लिए और भविष्य में स्तिथि को सुधारने के लिए, एक दिन तो प्यार के उपलक्ष्य में होना चाहिए। मेरा मानना है कि विद्यालय में 14 फरवरी प्रेम-दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। बच्चों को भी इस दिन प्यार का महत्व बताया जाना चाहिए। विश्व शांति की शुरुआत प्यार से ही होती है।

मेरी यह बात कई लोगों को बहुत बुरी लगेगी, मगर वास्तव में अगर इस बात को सोचा जाए के इतने सारे त्यौहार और राष्ट्रीय पर्व के बीच एक दिन तो ‘प्रेम’ के नाम होना चाहिए। ज़रूरी नहीं वैलंटाइंस डे के दिन लोग आपस में किस और सेक्स को ही प्रोत्साहित करते हों, मगर एक दिन तो ऐसा मनाते हैं जिसमें उनके लिए लड़ाई-झगड़े घृणा के लिए कोई जगह नहीं होती। सिर्फ प्रेम का दिन निर्धारित होता है।

तो चलिए 365 दिनों में से एक दिन प्रेम के नाम करते हैं और गुलाब के फूलों से लोगों का स्वागत करते हैं।  गुलाबों में लाल रंग के अलावा भी कई रंग होते हैं और हर रंग अपनी एक पहचान के लिए जाना जाता है, लाल न सही, गुलाबी, सफेद और पीले से ही लोगों को प्रेरित करें।

और आख़िरी में मेरे द्वारा लिखी गई एक ग़ज़ल-

तुझे अपना बनाने की फ़क़त एक आरज़ू कर के, कभी बे आस होते हैं, कभी मुरझा भी जाते हैं।
ठहर जाते हैं महफ़िल में गरेबां चाक ख़ुद कर के, कभी बे-आबरू होकर निकाले हम भी जाते हैं।
ये गुलशन था बहारों का यहाँ चंद रोज़ क्या रुकना, खिज़ां की जद में माली के सर-ओ-सामां भी आते हैं।

मूल चित्र : Canva 

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