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माँ प्लीज़ अब तुम भी बड़ी हो जाओ ना

आज ज़माना बदल गया है, थोड़ा आप भी समझिये और बच्चे के दोस्त बनिये। यकीन मानिये बच्चा कुछ भी नहीं छुपाएगा आपसे। आज ज़माना बदल गया है। 

आज ज़माना बदल गया है, थोड़ा आप भी समझिये और बच्चे के दोस्त बनिये। यकीन मानिये बच्चा कुछ भी नहीं छुपाएगा आपसे। आज ज़माना बदल गया है। 

शाम को दफ्तर से घर लौटा तो रोहन के कमरे से चिलाने की आवाज़ आई, “मम्मी प्लीज़ यार आपको एक बार समझ नहीं आता क्या।” तभी मेरी बीवी शोभा उसके कमरे से निकलते वक्त बड़बड़ाने लगी, “इतना बड़ा थोड़ी हो गया कि माँ को भी अब दरवाज़ा खटखटा के अंदर जाना पड़े। माँ हूँ मैं तेरी मेरे लिये तू बच्चा ही है।”

मैं अपने बेटे रोहन को बाहर बुला कर पूछा कि क्या हुआ। वो मुझसे शिकायत करने लगा, “पापा माँ को समझाओ ना। बिना नॉक किये कमरे में आ जाती है।” मैंने शोभा को घूरा। वो पूरे हक़ से बोली, “तो तू कोई डायरेक्टर है कंपनी का? आप पूछो इसे कमरे में करता क्या रहता है ये। मेरे जाते ही लैपटॉप बंद कर देता है।”

अब सारी बात समझ आई। एक 17 साल के बेटे की माँ ये बात हज़म नहीं कर पा रही कि उसका बेटा बड़ा हो गया है। उसके लिये अब भी वो छोटा गुलु बच्चा है जिसके बाल वो किसी के भी आगे ठीक कर सकती है। उसके कमरे में बे झिझक जा सकती है। उसका फोन देख सकती है। वहीं दूसरी तरफ बेटा जो अब एक वयस्क बन रहा है अपने शरीर अपने बारे में रोज़ नई खोज कर रहा है। उसको अपना समय चाहिए। अब दोनों को कैसे समझाऊँ।

दोनों की बक बक चालू थी, “मम्मी दोस्तों के आगे कुछ भी बोल देती है। थोड़ा लेट हो जाऊँ तो 10 फोन करती है।” वहीं शोभा भी शुरू थी, “पहले हर बात सुनता था। अब जो बोलो उसका उल्टा करता है। ना बात करता है ना कुछ बताता है। पता नहीं किस से खुसर फुसर करता रहता है।”

मैंने सोचा दोनों को अलग अलग समझाऊंगा। अभी कोई फायदा नहीं। रात को मैंने शोभा से बात करने की कोशिश की। उसे समझाते हुए कहा, “देखो शोभा रोहन बड़ा हो रहा है। बच्चा नहीं है। इस उम्र में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से बच्चा अपने आप को जानने और समझने की कोशिश करता है। तुमको समझना होगा।”

वो तिलमिला के बोली, “तो क्या देख रेख ना करूँ? कुछ ना बोलूँ? कल को हाथ से निकल गया तो? आजकल इतनी चीज़ें हैं शराब, ड्र्ग्स, गूगल। इसकी गर्ल फ्रेंड भी है, मैं बता रही हूँ आपको।”

मैंने कहा, “तो ऐसे चीख़-चीला के रोक लोगी उसे? शोभा हमारे ज़माने में ये सब नहीं था। पर जिसे भटकना था भटक ही गया ना। माँ बाप का इतना खौफ़ था कि दिल की बात दिल में ही रह गई। तुम भी यही चाहती हो कि वो भी तुमसे दूर भागे। बेटा बड़ा हो गया तुम कब होगी। अब वो मम्मी-मम्मी करता हुआ स्कूल से नहीं आएगा समझो ये बात। उसके दोस्त हैं एक अपनी दुनिया बना रहा जहां उसको खुद समझने में वक़्त लगेगा कि हो क्या रहा। आज कल ज़माना अलग है शोभा। बाप के आते ही हम दुबक जाया करते थे। आज कल बाप सबसे अच्छे दोस्त बनते हैं बेटों के। क्योंकि ज़माना अलग है उस हिसाब से चलना होगा।”

“मैं भी सब देख रहा हूँ। पर एक दोस्त की हैसियत से सब समझाऊंगा उसे और तुम भी उसकी दोस्त बने की कोशिश करो। वो तुमको सब बताएगा। क्या हमारे ज़माने में लड़का-लड़की नहीं मिलते थे छुप के? सोचो ज़रा, होता तो तब भी था। बस फर्क ये है कि मोबाइल ने काम आसान कर दिया वरना घण्टों तुम्हारी एक आवाज़ सुने के लिये लैंडलाइन के पास बैठा रहता था।”

शोभा मुस्कुराई, उसे शायद बात समझ आ गई थी।

रोहन से बात हुई तो उसको मैंने कहा,”बेटा माँ से ऐसे बात नहीं करते। उसके लिये तुम बच्चे ही हो। माना तुम बड़े हो गए हो, लेकिन फिर भी अपनी बात माँ को ठीक से भी समझा सकते हो। इतनी उम्मीद रखता हूं तुमसे।उसने रात रात भर जाग कर 17 साल का किया है तुम्हें। वक़्त दो उसे समझने के लिये की तुम अब बड़े हो गए हो। प्यार से भी बोल सकते हो ना?”

रोहन शर्मिंदा था बोला, “सॉरी पापा पर माँ भी ना कभी कभी बहुत ज़्यादा ही कर देती है।”

मैं हँसा, “बेटा माँ है। धीरे-धीरे समझेगी कि बच्चा अब माँ के इलावा भी कुछ और चाहता है। मैं समझ रहा हूँ कि तुम दोस्तों के साथ रहना चाहते हो, मज़े करना चाहते हो, पर हमारे प्रति और पढ़ाई के प्रति कोई ढील ना छोड़ना। इस उम्र में भटकने में देर नहीं लगती। जो अच्छा लग रहा है वो शायद बहुत बुरा भी हो सकता। शराब, सिगरेट, नशा आज कल कूल हो गए हैं। पर इनका मकसद तब समझ आता है जब ज़िंदगी बर्बाद हो चुकी होती है।”

“सजग रहना की किस संगत में जा रहे हो क्या कर रहे हो”, रोहन ने हाँ में सर हिलाया। मैंने आगे कहा, “माँ से अच्छी दोस्त नहीं मिलेगी। माँ को दोस्त बनाओ। कभी बुरा नहीं चाहेगी और एक बात बेटा मुझे तेरी गर्ल फ्रेंड बनाने से दिक्कत नहीं पर याद रहे की दोंनो की पढ़ाई पे असर ना हो। हावी ना होने देना। प्यार आपको जितना ऊपर ले जा सकता है उतनी ही ज़ोर से नीचे भी फेंक सकता है। तब तकलीफ बहुत होती है। यही वक़्त है कुछ करने का प्यार को ताकत बनाना कमज़ोरी नहीं।”

“हमारे देश में लड़कों को समाज कुछ नहीं कहता लेकिन ध्यान रहे कभी किसी लड़की की इज़्ज़त पे बात ना आए।” माहौल काफी सीरियस हो गया था।

मैंने रोहन से कहा, “अरे यार तू घबरा मत। ये सब इस उम्र में होगा ही। प्यार करूँ या पढ़ाई इस में ही दिमाग रहेगा। असली टेस्ट तो अब है कि तू कितना काबू पाता अपने आप पर। ये पड़ाव पार कर गया ना तो जिंदगी आराम से कट जाएगी।”

“देख बाप की हैसियत से नहीं दोस्त बन के बोल रहा हूँ। जब कुछ समझ ना आए मैं हूं यहाँ और मम्मी है। हम दोस्त हैं तेरे बस ये समझ।”

रोहन भाग कर गले लग गया और बोला, “पापा यु आर दी बेस्ट। आप चिंता ना करो पढ़ाई पर पूरा ध्यान रहेगा” मैंने उसकी पीठ थप थपाते हुए कहा, “निराश ना करना मुझे।”

अगले दिन से शोभा भी काफी बदल गई। उसे बातें पूछती। दरवाज़ा नॉक करती। उसकी प्राइवेसी उसको देने लगी जिसकी एक वक्त हर बच्चे को ज़रूरत होती है। लेकिन साथ-साथ उसे प्यार से मज़ाक में बातें भी समझाती रहती कि कहीं गलत राह ना पकड़ ले।

माँ-बेटे का रिश्ता सही दिशा में जा रहा था और ये देख मैं खुश था।

दोस्तों हम भी कितनी बार इस दौर से गुज़रे हैं। जहां हमको प्यार से समझाने की ज़रूरत थी वहाँ डांट डपट कर या माँ-बाप ने ताने दे कर हमको समझाया। आज ज़माना बदल गया है, थोड़ा आप भी समझिये और बच्चे के दोस्त बनिये। यकीन मानिये बच्चा कुछ भी नहीं छुपाएगा आपसे। अपनी तकलीफ खुशी सब आपके साथ बांटेगा। ये उम्र ही ऐसी है जहाँ दोस्त सही, माँ-बाप गलत लगते हैं। आप उसके दोस्त बनिये, क्योंकि आपसे बेहतर सलाह कोई और नहीं दे पाएगा।

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मूल चित्र : Pexels

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