कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
समर्पण ही तो आता है स्त्रियों को, हर रिश्ते की कीमत में, क्योंकि स्त्रियाँ मतिहीन ही तो होतीं हैं, नहीं आता उन्हें खुद के बिखरे हुए हिस्सों को इकठ्ठा करना।
स्त्रियाँ मतिहीन होतीं हैं वे प्रेम करती हैं और उसमें डूब जातीं हैं आकंठ ना निकलना चाहतीं हैं और ना ही तरना चाहतीं हैं
प्रेमी को सौंप देतीं हैं अपना प्रेम का समंदर और चिर रिक्त हो जातीं हैं फिर कभी किसी के लिए नहीं भर पातीं उस रिक्त पयोनिधि को
हालांकि किसी और को सर्वस्व समर्पण कर देतीं हैं करतीं हैं सब कुछ यंत्रचालित सी पर दिल के कमरे में एक कोना रखती हैं अनछुआ निषिद्ध सा जहाँ तक कभी कोई न पहुँच सके इसलिए डाले रखतीं हैं उसपर एक मोटा सा पर्दा
बस वही तो एक जगह है जहाँ वो करती हैं घंटों खुद से बातें खुद से ही रूठती है और झगड़ती है खुद को मना लिया भी करतीं हैं मिलती हैं उस अल्हड़ लड़की से जिसने कभी प्रेम किया था और खाली हो गई थी
बारिश का पानी भी नहीं भर सकता उसे दुबारा क्योंकि उसके लिए वाष्पीकरण की क्रिया जरूरी है सख़्त हो चुकी भूमि से तरलता की उम्मीद कैसे वो सख़्त जरूर है पर बंजर नहीं क्योंकि वो अंकुरित करती है अपने बीज को अपनी बची खुची तरलता से
समर्पण ही तो आता है स्त्रियों को हर रिश्ते की कीमत में क्योंकि स्त्रियाँ मतिहीन ही तो होतीं हैं नहीं आता उन्हें खुद के बिखरे हुए हिस्सों को इकठ्ठा करना इसलिए अधूरी ही जीतीं हैं
मूल चित्र : Canva
read more...
Women's Web is an open platform that publishes a diversity of views, individual posts do not necessarily represent the platform's views and opinions at all times.