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बाज़ार ऐसे-ऐसे उत्पादों से लबरेज़ है जो सिर्फ़ आपके पैसे ऐंठने के लिए बेचे जा रहे हैं और बेशुमार विज्ञापनों के ज़रिए आपको गुमराह कर रहे हैं।
सरकार ने एक बढ़िया कदम उठाते हुए, गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर एक लगाम लगाई, लेकिन इन विज्ञापनों के पीछे भी हमारी ही कुंठित सोच है।
दुनिया एक ग्लोबल मार्केट है और इस मार्केट को चलाने में सबसे बड़ा हाथ है विज्ञापनों का। आपको कपड़े खरीदने हों या फिर घर का राशन, पर्सनल हाइजीन की चीज़ें लेनी हो या फिर कोई भी सामान, आप कहीं ना कहीं ये ज़रूर ख्याल रखते हैं कि आप उस प्रोडक्ट/ब्रांड का नाम जानते हों या फिर टीवी पर कभी एड देखा हो। विज्ञापन देखने से आपको कहीं ना कहीं ऐसा विश्वास होता है कि हां, ये प्रोडक्ट अच्छा है और इसपर भरोसा किया जा सकता है।
लेकिन मल्टी मार्केटिंग की इस दुनिया में जहां आपके बालों से लेकर पैर के नाख़ून तक हर चीज़ के लिए प्रोडक्ट बिक रहे हैं, ऐसी स्थिति में आपको और सावधान रहने की ज़रूरत है। बाज़ार ऐसे-ऐसे उत्पादों से लबरेज़ है जो सिर्फ़ आपके पैसे ऐंठने के लिए बेचे जा रहे हैं और बेशुमार विज्ञापनों के ज़रिए आपको गुमराह कर रहे हैं। कोई आपको गोरा बनाने का दावा करता है, कोई उम्र घटाने का, कोई पतला करने का तो कोई आपको फिट रखने का। हम सब समझते-जानते हुए भी कई बार ऐसे विज्ञापनों पर भरोसा कर लेते हैं और उनके प्रोडक्ट खरीदकर इस्तेमाल भी कर लेते हैं।
विज्ञापन सिर्फ इसलिए ज़रूरी होने चाहिए क्योंकि वो हमें बाज़ार में उपलब्ध चीज़ों के बारे में जानकारी देते हैं, लेकिन उन्हें खरीदने के लिए हमें हर तरह से उन्हें परख लेना चाहिए कि वो फायदेमंद हैं भी या नहीं। भ्रामक विज्ञापनों और उत्पादों का हमारे जीवन पर हानिकारक प्रभाव हो सकता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसी दिशा में अहम पहल करते हुए ड्रग्स ऐंड मैजिक रेमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल ऐडवर्टाइजमेंट) ऐक्ट 1954 में कुछ बदलाव प्रोपोज़ किए हैं ताकि भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाई जा सके। इन प्रस्तावित संशोधनों के अंतर्गत विज्ञापनों के ज़रिए बरगलाने वाली कंपनियों या व्यक्तियों को बतौर सज़ा 5 साल तक की जेल और 50 लाख तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। जो कंपनी पहली बार ऐसे भ्रामक ऐड दिखाते हुए पकड़ी जाती है जो उसे 10 लाख जुर्माना या 2 साल जेल हो सकती है। लेकिन दोबारा ऐसा करने पर ये सज़ा और जुर्माना दोनों बढ़ जाएगा।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों को विज्ञापन का मतलब समझाने और प्रस्तावित संशोधनों से जुड़ा एक ड्राफ्ट रिलीज़ किया है। सरकार ने जनता से 45 दिनों के अंदर इस ड्राफ्ट पर उनके सुझाव, टिप्पणियां और शिकायतें मांगी हैं। इस ड्राफ्ट में 78 ऐसी चीज़ों की सूची है जिनके बारे में झूठा प्रचार या गुमराह करने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है जैसे एड्स, हाईट बढ़ाना, गोरेपन का प्रचार, समय से पहले बालों को सफेद होने से बचाना वगैरह।
प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक, विज्ञापन का मतलब ‘लाइट, साउंड, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इंटरनेट या वेबसाइट के माध्यम से किया गया कोई भी ऑडियो या विजुअल प्रचार, समर्थन और ऐलान शामिल होगा। इसमें नोटिस, सर्कलुर, लेबल, रैपर, इनवॉइस, बैनर, पोस्टर या इस तरह के दूसरे डॉक्युमेंट जैसे माध्यमों के ज़रिए किया जाने वाला प्रचार भी शामिल है।
एडवर्टाइज़िंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया जो कि विज्ञापनों पर नज़र रखता है, उनके पास लंबे समय से उपभोक्ताओं की शिकायतें आ रही थी जिसे काउंसिल ने सरकार तक पहुंचाया। काउंसिल की सिफ़ारिश के बाद काफी सोच विचार करके स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस एक्ट में संशोधन का फ़ैसला किया।
ASCI ने अपनी कई रिपोर्ट्स में ऐसी दर्जनों गुमराह करने वाली एड्स का ज़िक्र किया है जो इस एक्ट का उल्लंघन करते हैं। इस सूची में कई विज्ञापन हैं जो अस्थमा, कैंसर, डायबिटीज़, मोटाफा, सौंदर्य उत्पाद और सेक्शुअल परफॉर्मेंस से जुड़े बड़े-बड़े दावे करते हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय का ये कदम वाकई सराहनीय है लेकिन एक उपभोक्ता होने के नाते हमें भी ये समझना होगा कि इन विज्ञापनों में जो उत्पाद बेचे जा रहे हैं उन्हें हम खरीद क्यों कर रहे हैं? क्योंकि हमारी मानसिकता भी बीमार है।
आप गोरे होने की क्रीम क्यों खरीदते हैं? क्योंकि समाज ने खूबसूरती का पैमाना तय किया है कि अगर आप गोरे नहीं है , बेदाग नहीं हैं तो आप सुंदर नहीं है। समाज की ये सोच इस तरह हमारे मन में घर कर गई हैं कि हमें भी अब सच लगने लगा है कि मोटा होना गलत है, काला होना गलत है, उम्र से पहले सफ़ेद बाद होना गलत है।
हम आज भी शादी के लिए गोरी लड़की, लंबी लड़की, छरहरी लड़की, सुंदर लड़की, ये सब क्यों ढूंढते हैं? क्योंकि ये हमारी सोच बन गई हैं पर ये पैमाने तय किसने किए? समाज के तंग सोच वाले चंद लोगों ने ये सब तय कर दिया और हम अंधे होकर उनका पीछा करने लगे। बाहरी सुंदरता के पीछे भाग रहे ये लोग अंदरूनी ख़ूबसूरती के मायने भूल गए हैं।
दक्षिण भारत की अभिनेत्री साँई पल्लवी ने 2 करोड़ का फेयरनेस विज्ञापन ये कहकर ठुकरा दिया कि ‘हम भारतीय हैं और हम हर रंग के होते हैं, यही हमारी पहचान है। हम किसी विदेशी के पास जाकर ये तो नहीं पूछते कि आप सभी व्हाइट क्यों हैं? क्योंकि वो उनका रंग है।’
कंगना रनौत ने भी एक बड़े फेयरनेस ब्रांड के विज्ञापन को ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा, ‘मैं कभी भी गोरेपन के पीछे जो मानसिकता है उसे समझ नहीं पाई। मैं ऐसे उत्पादों का प्रचार करने हमारी आने वाली जेनेरेशन के आगे कैसे उदाहरण पेश करूंगी। ये मुझे मंज़ूर नहीं है।’
अभिनेत्री कल्कि केकलान कहती है कि वो कभी भी फेयरनेस ब्रांड का विज्ञापन नहीं करेंगी क्योंकि वो गोरेपन का झूठा प्रचार नहीं करना चाहतीं। अनुष्का शर्मा ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बयान दिया था कि वो कभी भी ऐसे प्रोडेक्ट का प्रचार नहीं करेंगी जो रेसिस्ट, सेक्सिस्ट या फिर किसी तरह के टैबू से जुड़े हों। स्वरा भास्कर ने 2015 में एक क्रीम का ब्रांड एंबेस्डर बनने से इनकार कर दिया था। उनका मानना था कि फेयरनेस क्रीम का मकसद ही उन्हें बहुत पिछड़ा हुआ लगता है जो रंगभेद जैसे गंभीर विषय की जड़ है।
कोई क्रीम या कोई दवाई ना आपको सुंदर बनाएगी ना ही आपको स्मार्ट बनाएगी। अच्छा खाना, अच्छे विचार, अच्छा लाइफस्टाइल ही आपको सुंदर बना सकते हैं। ये विज्ञापन आपको बेचे नहीं जा रहे बल्कि आपको ख़रीद रहे हैं।
सावधान रहें, जागरूक उपभोक्ता बनें।
मूल चित्र : YouTube
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