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सबने बड़े आराम से कह दिया, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, पर कौन बचाए हमें उससे, जो हिफाज़त और प्यार के नाम पर, रूढ़िवाद की फॉंसी चढ़ा दे?
अपनी मूँछ ऊँची रखने के चक्कर में, अपनी औलाद की खुशियॉं बेचने में कोई ऐतराज़ नहीं…. पर खबरों में लड़की के साथ हुई दरिंदगी पर उदास हो जाते हैं।
छाती ठोक कर कहते हो, “हमारे घर की लड़कियॉं हमारी शान है!” तो अपनी शान को कौन अचानक से किसी गैर के हाथ थमा देता है?
सीना तान कर कहते हो, “मेरी बेटी मेरी जान है!” तो कौन जान की जान लेता है, जब वो अपने सच्चे प्यार से ब्याह रचाना चाहती है?
सबने बड़े आराम से कह दिया, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” पर कौन बचाए हमें उससे जो हिफाज़त और प्यार के नाम पर रूढ़िवाद की फॉंसी चढ़ा दे?
किसी ने ठीक ही कहा है…. लड़कियाँ आजकल न बाहर और न ही घर में सुरक्षित हैं।
बाहर हैवानोें का खतरा होता है, और घर में… अपने कहलाने वालों की कट्टर सोच का…
मूल चित्र : Canva
Model + Ph.D + Aspiring Counsellor
बहू-बेटी में ये अंतर क्यों?
लड़के वाले आज भी लड़की वालों को लाचार और कमज़ोर क्यों मानते हैं?
मेरे अस्तित्व की यह परिभाषा
मायके से बेटी की डोली उठती है और ससुराल से अर्थी…
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