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क्या हमारी पहचान हमारे नाम या जेंडर तक ही सीमित रहनी चाहिए?

बहुत से लोग अब अपने आप को नॉन बाइनरी के रूप में चिन्हित करना ज्यादा उचित समझते हैं, वे कहते हैं कि उनकी पहचान सिर्फ़ उनके शारीरिक अंगों से नहीं हो सकती।

बहुत से लोग अब अपने आप को नॉन बाइनरी के रूप में चिन्हित करना ज्यादा उचित समझते हैं, वे कहते हैं कि उनकी पहचान सिर्फ़ उनके शारीरिक अंगों से नहीं हो सकती। 

विश्व के बड़े प्रकाशक हर वर्ष विभिन्न भाषाओं से और सामान्य बोलचाल में प्रयोग होने वाले नए शब्दों को अंग्रेज़ी शब्दकोष में शामिल करते हैं। प्रख्यात प्रकाशक मरियम वेबस्टर ने अभी कुछ दिन पहले ही करीब 530 नए शब्दों को अपने शब्दकोष में जगह दी है।

ये शब्द विभिन्न भाषाओँ और बोलियों से लिए गए हैं और इनमें पारलैंगिक(non binary) व्यक्तियों के लिए अंग्रेज़ी शब्द सम्बोधन ‘they’ और ‘them’ को भी स्वीकृति दी गयी है। द ह्यूमन राइट्स कैम्पेन, अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन और GLAAD (गे एंड लेस्बियन अलायंस अगेंस्ट डिसक्रिमिनेशन) जैसी संस्थाओं ने मरियम वेबस्टर के इस कदम का स्वागत किया है। 

‘they’ और ‘them’ का सर्वनाम के रूप में प्रयोग 14वीं शताब्दी से होता आया है, पर संख्या में एक से अधिक व्यक्तियों के लिए। अब कुछ वर्षों से एक या एक से अधिक नॉन बाइनरी व्यक्तियों के लिए भी यह शब्द प्रचलन में आ गया है।

मरियम वेबस्टर के संपादक पीटर सोकोलोव्स्की का कहना है कि ‘शब्दकोष के लिए नए शब्द गढ़े नहीं जाते, अगर कोई शब्द प्रचलन में प्रमुखता से दिखता है, तो उसे शब्दकोष में शामिल कर लिया जाता है।’ उनका मानना है कि सामाजिक शक्तियां भाषा में परिवर्तन लाती हैं और वे सिर्फ उस परिवर्तन को शब्दकोष में रिकॉर्ड कर रहे हैं।   

बदलते समय और सोच के साथ समाज में मनुष्य की पुरानी, सिर्फ स्त्री या सिर्फ पुरुष वाली, पहचान भी बदल रही है। बहुत से लोग अब अपने आप को नॉन बाइनरी के रूप में चिन्हित करना ज्यादा उचित समझते हैं। वे कहते हैं कि उनकी पहचान सिर्फ़ उनके शारीरिक अंगों से नहीं हो सकती। 

प्रसिद्ध गायक सैम स्मिथ जिन्होंने अपने आप को नॉन बाइनरी व्यक्ति के रूप में पेश किया है वो चाहते हैं कि उन्हें अंग्रेज़ी के सर्वनाम they और them से सम्बोधित किया जाये। अपनी ट्विटर पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ‘मैंने अपने सर्वनामों को ‘वे’ और ‘उन्हें’ में बदलने का फैसला किया है, अपनी पूरी जिंदगीभर अपने लिंग की सच्चाई के साथ जूझने के बावजूद मैंने खुद को वैसे ही स्वीकार करने का फैसला किया है, जो मैं अंदर और बाहर हूं।’

पारलैंगिक या नॉन बाइनरी वे लोग हैं जो अपनी पहचान को किसी एक जेंडर तक सीमित नहीं करते हैं। ऐसे लोग खुद को सिर्फ़ महिला या पुरुष कहलाना पसन्द नहीं करते क्योंकि या तो उनमें महिला और पुरुष दोनों की  विशेषताओं का समावेश होता है या वे दोनों ही से अलग होते हैं।

अंग्रेज़ी भाषा में नॉन बाइनरी व्यक्तियों के लिए, उनकी व्यक्तिगत पहचान के आधार पर,कई तरह के सम्बोधन इस्तेमाल किये जाते हैं, जैसे जेंडर न्यूट्रल, अजेंडर, बाइ जेंडर, जेंडर क्वीअर, थर्ड जेंडर, जेंडर फ्लूइड आदि।

अन्य भाषाओँ ने तो इन बदलावों को स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया है पर क्या हिंदी और अन्य भारतीय भाषायें इन सर्वनामों को स्वीकार कर पाएंगी? क्या हिंदी भाषा में इनके समानांतर कोई शब्दावली है?

हिंदी में ‘वे’ शब्द का प्रयोग बहुवचन यानि एक से ज्यादा संख्या के लिए या फिर सम्मानसूचक शब्द के रूप में किया जाता है। हम सब जानते हैं कि हिंदी भाषा में व्याकरण और वर्तनी की शुद्धता पर काफ़ी जोर दिया जाता है और इस लिहाज से एक व्यक्ति के लिए पुल्लिंग, स्त्रीलिंग की बजाय एक उभयलिंगी या बहुवचन वाले शब्द को प्रयोग करना काफ़ी मुश्किल और असहज हो सकता है ।

कुछ लोगों को जेंडर न्यूट्रल सर्वनामों का प्रयोग गलत और अतार्किक भी लग सकता है क्योंकि सदियों से हम सिर्फ़ दो ही तरह के लिंगों को जानते थे और भाषा उन्हीं के हिसाब से बनाई गयी है। तीसरा सम्बोधन नपुंसकलिंग, थर्ड जेंडर या जिन्हें हम सामान्य बोलचाल की भाषा में किन्नर कहते हैं, उनके लिए और निर्जीव वस्तुओं के लिए प्रयोग होता है। पारलैंगिकता के लिए हिंदी में ऐसा कोई सर्वनाम बना ही नहीं है।

लेकिन क्या इसी वजह से नॉन बाइनरी व्यक्तियों को सिर्फ़ स्त्रीलिंग और पुल्लिंग की सीमाओं में बाँध देना चाहिए? भाषा किसी पत्थर की तरह अविचल और अपरिवर्तनीय नहीं।  उसका स्वरुप समय और परिवेश के साथ बदलता रहता है, नयी सोच के साथ नयी समझ और नयी भाषा विकसित होती है।

मेरे विचार में हिंदी में किसी व्यक्ति विशेष की पहचान के अनुसार उनके लिए सम्बोधन प्रयोग करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वैसे भी हिंदी में ‘वह जाती है’ और ‘वह जाता है’ कहने के साथ साथ ‘वे जाते हैं’ कहना आसान ही है। बेशक शुरुआत में हमें कुछ अजीब लगेगा और गलतियां भी होंगी पर कोशिश करना भी तो ज़रूरी है।

वैसे भी अगर देखा जाए तो कई संस्कृतियों में महिला और पुरुष के नाम भी एक समान होते हैं। सिर्फ नाम सुनें तो आप ये नहीं बता पाएंगे कि ये औरत है या पुरुष। और मैं मानती हूँ कि नाम रखने की ये प्रथा बहुत ही प्रगतिशील है। आखिर नाम में रखा ही क्या है? हमारी पहचान सिर्फ हमारे नाम या हमारे जेंडर से ही क्यों हो?

‘वो जा रहा/रही है’ की जगह ‘वे जा रहे हैं’ कहना कई मुश्किलों का अंत कर सकता है। ‘वे जा रहे हैं’ का इस्तेमाल होते ही ये प्रतीत होता है कि या तो किसी समूह या किसी उम्र में बड़े या सम्मानीय व्यक्ति की बात हो रही है। और सम्मान के हक़दार तो छोटे भी होते हैं!

किसी भी व्यक्ति की बात करते हुए सबसे पहले उसका जेंडर ही उसकी पहचान क्यों बन जाता है? ‘वे’ का इस्तेमाल हमारे तय जेंडर रोल्स पर भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। किसी को ‘औरत’ या ‘मर्द’ की केटेगरी में डालते ही ‘वो क्या-क्या कर सकते हैं’ या वो दिखते कैसे होंगे’ की तरफ ज़्यादा ध्यान जाता है। मेरा मानना है कि हमें ज़्यादा से ज़्यादा ‘वे’ का इस्तेमाल करना चाहिए।

सैम स्मिथ ने अपने ट्वीट में आगे लिखा है, ‘मैं समझता हूं कि मुझे और मेरे लिंग को लेकर आगे कई गलतियां होने वाली है, लेकिन मैं आपसे अपील करता हूं कि कृपया आप कोशिश करें। जिस तरह मैं खुद को देखता हूं, मुझे आशा है कि आप भी मुझे वैसे ही देखेंगे।’

तो आइये, हम और आप भी मिल कर कोशिश करते हैं अपनी सोच, अपनी भाषा को एक नया स्वरुप देने की। और सभी नॉन बाइनरी व्यक्तियों को उनकी इच्छित पहचान के अनुसार सम्मानजनक शब्दों से सम्बोधित करने की। 

मूल चित्र : Canva

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Seema Taneja

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