कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी में आलिया भट्ट बनेंगी लेडी डॉन गंगूबाई

फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी में आलिया भट्ट बनेंगी लेडी डॉन, संजय लीला भंसाली की अगली फिल्म  कहानी है गंगा की गंगूबाई से लेडी डॉन बनने की।

फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी में आलिया भट्ट बनेंगी लेडी डॉन, संजय लीला भंसाली की अगली फिल्म  कहानी है गंगा की गंगूबाई से लेडी डॉन बनने की।

अपनी पावरफुल और ऐतिहासिक फिल्मों के लिए जाने जाने वाले निर्देशक संजय लीला भंसाली अब एक और फिल्म लेकर आ रहे हैं जिसका पोस्टर कल ही रिलीज़ किया गया है। इस पोस्टर में अभिनेत्री आलिया भट्ट हैं और उसके नीचे नाम लिखा है, गंगूबाई काठियावाड़ी।

इसे देखकर सबसे पहला ख्याल आया कि गंगूबाई कौन हैं? ये कहानी है गंगा से गंगूबाई बनने की और गंगूबाई से लेडी डॉन बनने की।

गंगा से कैसे बनी गंगूबाई

गंगा गुजरात की रहने वाली थीं और उसका पूरा नाम था गंगा हरजीवनदास काठियावाड़ी। बचपन से ही गंगा हीरोइन बनने के सपने देखा करती थीं। वो चाहती थीं कि वो मुंबई जाकर खूब नाम और पैसा कमाएं।

सपने देखती हुई गंगा की ज़िंदगी में अचानक प्यार आ गया और उन्होंने अपने पिता के अकांउटेंट से शादी कर ली। वो दोनों भागकर मुंबई चले गए और एक लॉज में रहने लगे।

मुंबई पहुंचते ही गंगा के हीरोइन बनने का सपना फिर से जागने लगा। लेकिन किस्मत की कलम ने उनके लिए कुछ और ही कहानी लिखी थी। जिसके लिए गंगा घर-परिवार छोड़कर एक अनजान शहर में आ गयी थीं, उसी पति ने गंगा को चंद पैसों के लिए बेच दिया। पति की इस हरकत से अनजान गंगा सिर्फ 500 रुपयों के लिए गंगूबाई बन चुकी थीं।

गंगूबाई से बनी लेडी डॉन

गंगा 16 साल की छोटी सी उम्र में वेश्यावृत्ति के जंजाल में फंस गयीं। वो मजबूर ज़रूर थीं लेकिन उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी। मुंबई के कमाठीपुरा इलाके में कोठे पर काम करते वक्त गंगूबाई अक्सर कई अपराधियों और गुंडों से मिलती थीं।

एक बार मुंबई के डॉन करीम लाला के गुंडे ने गंगूबाई के साथ रेप किया। वो वेश्या ज़रूर थीं लेकिन अपने साथ जबरन हुई इस हैवानियत के ख़िलाफ़ उन्होंने आवाज़ उठाई। गंगूबाई कहती थीं कि वो जो कर रही हैं वो उनका काम ज़रूर है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कोई भी उनकी मर्ज़ी के बिना उन्हें हाथ लगा सकता है।

अपनी इज्ज़त पर आई इस आंच से गंगूबाई इतनी आग बबूला हुईं कि वो करीम लाला के पास गयीं और इंसाफ मांगने लगीं। करीम लाला उनकी हिम्मत देखकर हक्के-बक्के रह गए और कुछ ही दिनों बाद गंगूबाई को अपने गैंग में शामिल कर लिया।

अब वो ताकतवर हो गई थीं

अपनों से धोखा खाने वाली गंगूबाई को जब करीम लाला जैसे इंसान का साथ मिला तो उनको हिम्मत मिली और उन्होंने करीम लाला को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया। गंगूबाई जिस कोठे में काम करती थीं, करीम लाला ने उसका पूरा ज़िम्मा ही गंगूबाई को दे दिया। अब वो ताकतवर हो गई थीं।

गंगूबाई ने अपने साथ जो हुआ वो किसी और के साथ नहीं होने दिया। अपने कोठे में उन्होंने कभी भी किसी लड़की को बिना मर्ज़ी के नहीं रखा। अपने साथ काम करने वाली औरतों और उनके बिना पिता के बच्चों के लिए गंगूबाई काठियावाड़ी ने बहुत काम किया।

प्रधानमंत्री नेहरू से मिलने दिल्ली पहुंच गयीं

एक वक्त था जब मुंबई में वेश्या बाज़ार के ख़िलाफ़ एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया था। उस वक्त का एक किस्सा है कि आंदोलन रोकने की बात करने गंगूबाई तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू से मिलने दिल्ली पहुंच गई थीं।नेहरू से बातचीत के दौरान गंगूबाई ने मुंबई की सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।

ऐसा कहा जाता है कि नेहरू ने जब उनसे ये पूछा कि आपको तो अच्छी नौकरी और पति भी मिल सकता है फिर आप इस धंधे में क्यों आईं? तो जवाब में अपने बेबाक अंदाज़ में गंगूबाई ने कहा कि आप मुझे मिसेज़ नेहरू बना दीजिए मैं तुरंत आंदोलन रूकवा दूंगी। नेहरू गंगूबाई की इस बात से बहुत झुंझला गए।

सहज गंगूबाई ने कहा कि मैं तो आपको बस आपकी व्यवहारिकता का बोध करा रही थी। उन्होंने कहा उपदेश देना कुछ कर दिखाने से आसान है। गंगूबाई की बातों के सामने सरकार को झुकना पड़ा और वेश्यालयों को हटाने के अपने आंदोलन को रोकना पड़ा।

60 के दशक में गंगूबाई का ऐसा रूतबा था जब उनके नाम से भी लोग कांपा करते थे। आज भी कमाठीपुरा में गंगूबाई का स्टेच्यू है।

माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई

लेखक हुसैन ज़ैदी की लिखी किताबमाफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई में गंगूबाई की कहानी को बड़ी गहराई से लिखा गया है। उस किताब का वो अंश जो ये बयां करता है कि कैसे गंगा गंगूबाई बनीं, वो यहां बताना चाहूंगी :

“उसे शादी का लाल जोड़ा पहनकर गुलाबों से भरे बिस्तर पर बैठने के लिए कहा गया। उसके होंठ पर सुर्ख लाल रंग की लिपस्टिक थी और नाक में बड़ी सी नथ। ग्रामोफोन पर गाना चल रहा था जिसे सुनकर उसे अपने पति के साथ सुहागरात याद आई। वो अभी भी इस बात से अनजान थी कि वो कहां है और क्यों है। अचानक दरवाज़ा खुला और एक आदमी अंदर आता है। शराब में धुत उस इंसान को देखकर वो घबरा जाती है। उस 16 साल की बच्ची को उस एक पल में निर्वस्त्र सा महसूस होता था। उसे मालूम भी नहीं था कि ज़िस्मफ़रोशी के बाज़ार में आज उसकी ये पहली रात थी। उस इंसान ने गंगा के कपड़े उतारे और उसकी आत्मा को मैला कर दिया।”

एक औरत की हिम्मत की कहानी

ये कहानी किसी वेश्या या लेडी डॉन की नहीं एक औरत की हिम्मत की है। कोई औरत कभी भी चाह कर अपनी इज्ज़त नहीं बेचती। कोई मजबूरी में करती है तो किसी को गरज होती है। उस औरत की क्या हालत होती होगी जिसे अपनों ने ही बाज़ार में बेच दिया हो।

वे कभी टूटी नहीं

गंगूबाई काठियावाड़ी को भरोसा करने की सज़ा मिली, उन्होंने सब झेला, लेकिन वे कभी टूटी नहीं। डॉन बनकर शायद गंगूबाई ने कई गलत काम किए होंगे लेकिन उन्होंने अपनी ताकत से उन औरतों और बच्चों की मदद की जिनके साथ ज़िंदगी ने गलत किया था। औरत के रूप बस मां, पत्नी, बेटी या बहू का ही नहीं हैं। ऐसी भी कई औरतें हैं जिनकी ज़िंदगी में वो ये किरदार कभी निभा ही नहीं पाती।

उम्मीद है गंगूबाई काठियावाड़ी की ये कहानी बड़े पर्दे पर सबको पसंद आएगी। फिल्म में उनका किरदार आलिया भट्ट निभा रही हैं जो इससे पहले भी कई विमेन सेंट्रिक फिल्में जैसे हाइवे और राज़ी कर चुकी हैं। शायद गंगूबाई उनकी ज़िंदगी का यादगार किरदार बन जाए।

मूल चित्र : Twitter  / Indiatimes 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

133 Posts | 486,039 Views
All Categories