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आज हम संकल्प-रत हैं, और प्रण है यह - उगायेंगे निर्जन मरूभूमि में मधुबन, एक पौधा पितृ सा पावन,पुण्य तर्पण से अधिक सिंचन!
आज हम संकल्प-रत हैं, और प्रण है यह – उगायेंगे निर्जन मरूभूमि में मधुबन, एक पौधा पितृ सा पावन, पुण्य तर्पण से अधिक सिंचन!
गलतियाँ मानव ने बहुत की कर भी रहे हैं मानती हूँ! दूर तक सुनसान राहें, और ये मासूम जंगल दे रहे गवाही, जानती हूँ!
मूर्खता ने राह में काँटे बिछाए हैं, उन्हें पहचानती हूँ!
भूल हम ने ऐसी की है – कि प्रायश्चित जिसका पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ करती रहेंगी!
ये कटे बीहड़ – निर्जन वन, वस्त्र हीनता, वृक्ष हीनता, नग्न धरती – देख कर हम खुद लजाते हैं!
मत करो हमारी शिकायत, मत करो अब भर्त्सना, क्योंकि पश्चाताप-रत हैं हम और अनुभव कर रहे हैं – आत्मा-हनन पूर्ण कार्यों की घुटन!
आज हम संकल्प-रत हैं, और प्रण है यह – उगायेंगे निर्जन मरूभूमि में मधुबन!
एक पौधा पितृ सा पावन, पुण्य तर्पण से अधिक सिंचन
लक्ष्य है यदि जो, मनुज-आरोहण, तो करेंगे हम, वृक्ष – आरोपण!
मूल चित्र : Canva
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