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मासूमियत ही भगवान

मैं बहुत खुशी खुशी घर आई, आइने में अपने आप को ‌देखा तो एक अजीब सी चमक थी और एक विश्वास था कि मेरा दिन बहुत सुन्दर जाएगा।

मैं बहुत खुशी खुशी घर आई, आइने में अपने आप को ‌देखा तो एक अजीब सी चमक थी और एक विश्वास था कि मेरा दिन बहुत सुन्दर जाएगा।

दो चार दिनों से मौसम बेहतरीन हो रहा है। तेज ठंडी पर फिर भी कोमल हवा बह रही है। पेड़ों को भी जैसे बहुत मस्ती आ रही है और वह एक ही जगह पर रह कर भी ऐसे नाच रहे हैं मानों इन हवाओं से सबसे ज्यादा बस वही खुश हैं। कोई शर्म,‌ कोई विचार उन्हें हंसने, खिलखिलाने, और नाचने से नहीं रोक सकता।

आज सुबह बहुत जल्दी उठ गई मैं और मुझे मेरे अलार्म ने नहीं बल्कि इन‌‌ पेड़ों की खुशी ने, उनके हंसने ‌की आवाज ‌ने उठाया। पर्दा हटाया और नजारा लिया।‌ इतनी मासूमियत थी बाहर। वातावरण से कोई छेड़छाड़ नहीं।  एक हल्की सी रोशनी, ठंडी हवा, और झूलते हुए‌ पेड़। वह मासूमियत, वह शांति भगवान से कम नहीं थी। दिन की शुरुआत एक मुस्कान से हुई और पहला‌ विचार आया कि क्यों लोग भगवान को ढूंढने मंदिरों में जाते हैं।‌ मुझे तो वह इस मौसम में ही दिख रहे थे।

फिर मैं जल्दी से जूते पहन के तैयार हुई और नीचे सैर के लिए निकल गई।

रास्ते में मेरे पास से दो गिलहैरिया निकली।‌ मैंने घ्यान से देखा तो वह दोनों आपस में खेल रहीं थीं। अपने में मस्त, किसी का भय नहीं, और किसी के साथ कोई मुकाबला नहीं। भागती, कूदती, पेड़ों पे चढ़ती, अपने आप में सम्पूर्ण थी।

तभी अचानक एक बहुत ही छोटी सी, नीली सी चिड़िया मेरे सामने से निकली और एक डाल पे बैठ गई और अपनी छोटी सी चोंच से चहचहाने लगी।  वैसी चिड़िया मैंने आज तक नहीं देखी थी। मैं थोड़ी देर खड़े होकर उसे देखती रही। कमाल की सुन्दर चिड़िया थी।

अभी मैं उसे देख ही रही थी कि एक बहुत ही बुजुर्ग से व्यक्ति वाहा से निकले। मैं उन्हें जानती नहीं थी। जब मैंने उन्हे निकलने के लिये रास्ता दिया तो उन्होंने मुझे हाथ जोड़ कर नमस्कार किया। उनके मुंह में दांत नहीं थे और उनकी मुस्कान बहुत ही सरल और मासूम थी। मैंने भी उन्हें हाथ जोड़ के, मुस्कुराते हुए नमस्कार किया।

फिर किसी के घर से आरती की आवाज आने लगी और दो बहुत ही छोटे बच्चे स्कूल के लिए अपने पापा की उंगली पकड़े निकले। पापा के हाथों में वो छोटे छोटे हाथ कितने मासूम और निश्चित लग रहा थे।

यह सब देखते हुए मुझे एहसास हुआ कि मैं तब से सिर्फ मुस्करा ही रही थी।

एक बार फिर लगा कि लोग भगवान को ढूंढने मन्दिर क्यों जाते हैं जब वह आपके आसपास हि है। भगवान हर उस मासूमियत में है जिसे हम कितनी आसानी से नजर अंदाज कर देते हैं।

मैं बहुत खुशी खुशी घर आई। आइने में अपने आप को ‌देखा तो एक अजीब सी चमक थी और एक विश्वास था कि मेरा दिन बहुत सुन्दर जाएगा।

आज सही मायने में मुझे भगवान दिखे थे।

मूल चित्र : Unsplash

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Ruchi

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