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यदि हम ज़िंदगी में आये बदलाव को स्वीकार कर लें तो ज़िंदगी गुलज़ार है!

अब हमारी बातें भी सिर्फ बच्चों की होती हैं और गानों की जगह, अब लोरियां आ गई हैं जिसको सुनते-सुनाते कभी-कभी तो हम दोनों ही अपने बच्चों से पहले सो जाते हैं!

अब हमारी बातें भी सिर्फ बच्चों की होती हैं और गानों की जगह, अब लोरियां आ गई हैं जिसको सुनते-सुनाते कभी-कभी तो हम दोनों ही अपने बच्चों से पहले सो जाते हैं!

“अरे यार! सुनती हो आज मैंने ज़ीरो मूवी देखने का प्लान बनाया है। तुम्हारे शाहरुख खान की फिल्म है। फिल्म के रिव्यू भी बहुत अच्छे आ रहे हैं। हम आज रात 9 से 12 वाले शो में जायेंगे। मैंने टिकट बुक करवा दिया है। तुम तैयारी कर लेना”, रवि ने विधि से कहा।

“तुम भी ना यार! टिकट्स बुक कराने से पहले मुझसे पूछ लेते, चलना है या नहीं? बच्चों के साथ इतनी ठंड में मूवी देखना। अब पॉसिबल नहीं है। उन्हें ठंड लग गई तो सारा मज़ा किरकिरा हो जाएगा और मुझे परेशानी होगी वो अलग”, विधि ने कहा।

“तुम फिर मुझे मत कहना कि तुम कितना बदल गए हो रवि। तुम मेरा बिल्कुल ध्यान नहीं रखते! अब तुम मुझसे प्यार नहीं करते। तुम्हारे पास मेरे लिए टाइम ही नहीं है”, रवि ने झल्लाते हुए विधि से कहा।

“नहीं कहूंगी यार, प्लीज अब तुम टिकट्स कैंसल करवा दो,” विधि ने उदास आवाज़ में रवि से कहा। फिर विधि अपने ख्यालों में खो गई।

हमारा परिवार, हमारी छोटी सी दुनिया, हम दो हमारे तीन, मतलब कि मैं, मेरे पति और हमारे दो प्यारे-प्यारे बच्चे पीकू और चीकू और इनके साथ हमारा प्यारा सा कुत्ता सिल्की, जो हमारे बच्चों के बाद हमारे परिवार में आया है। मेरे दोनों बच्चों की जान है सिल्की। सारा दिन उसके साथ खेलना-कूदना, खिलाना, पिलाना, सैर करवाना यही काम है।

हमारा प्यारा सा परिवार है लेकिन अब हम दोनों पति-पत्नी की लाइफ में काफी बदलाव आ गया है। जब शादी हुई तब उन्मुक्त पंछी की तरह थे जब चाहा घूमना, फिरना, शॉपिंग, मूवी, पार्टी कर सकते थे।

लेकिन वो सब अब कहाँ? अब तो दोनों बच्चों के बाद लाइफ बच्चों के अनुसार चल रही है। उनके इर्द-गिर्द ही हमारी सुई घूमती रहती है। अब हम कहीं भी, कोई भी प्रोग्राम बनाने से पहले सौ बार सोचते हैं कि कैसे, कब, कहाँ जाएं, कहीं बार तो हमें प्रोग्राम कैंसल करना पड़ता है या उसके समय में बदलाव करने पड़ते हैं। कहीं बच्चों के सोने का, आराम का, आदि का बहुत ध्यान रखकर प्रोग्राम बनाना पड़ता है।

और जब हम दोनों की आपस में किसी मुद्दे पर बहस हो जाए या लड़ाई भी हो जाए तो बच्चों के सामने बड़े प्यार से बात करनी पड़ती है ताकि उन पर कोई असर न पड़े। बच्चों के आने के बाद अपने लिए तो हमारे पास समय ही नहीं है। पहले तो जब चाहे गलबहियां डाले हम घण्टों बातें करते थे, पुराने किशोर कुमार के गानों को गुनगुनाते थे, देर रात तक फिल्म देखते थे।

लेकिन अब तो सब छूमंतर हो गया है। अब बातें भी सिर्फ बच्चों की स्कूल की, पढ़ाई की, उनके साथ पार्क में खेलने की ही होती हैं और गानों की जगह तो अब लोरी आ गई जिसको सुनते-सुनाते कभी-कभी हम दोनों पति-पत्नी सो जाते हैं, लेकिन हमारे बच्चे नहीं। फिर भी हम अपने इस लाइफ को बहुत एंजॉय कर रहे हैं क्योंकि यह समय भी लौटकर फिर नहीं आएगा।

हम लाइफ के इन मज़ेदार पलों को जी रहे हैं। बच्चों के साथ हमारी ज़िंदगी की इस चलती रेलगाड़ी पर बस यही धुन बजती है,

यूँ ही कट जाएगा सफर साथ चलने से
कि मंजिल आएगी नज़र साथ चलने से…

आप सब के साथ भी ऐसा कुछ हुआ है क्या? आप अपने विचारों को ज़रूर बताएं।

मूल चित्र : Rawpixel 

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