कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मुखौटा! क्यों हर किसी की असलियत है ये नकली मुखौटा!

मुखौटा ओढ़े लोगों से थी जब मैं अनजान, तो खुशियां बांटते नहीं थकती थी, वाकिफ क्या हुई मैं उन चेहरों की फितरत से, अब अपनों को भी बेगाना समझती हूँ।

मुखौटा ओढ़े लोगों से थी जब मैं अनजान, तो खुशियां बांटते नहीं थकती थी, वाकिफ क्या हुई मैं उन चेहरों की फितरत से, अब अपनों को भी बेगाना समझती हूँ।

पूजती थी मैं जिस इंसानियत को, आज हर गली में बिकते दिखती है
कभी मासूमियत थी मुझमें, अब हर दिन अपनी ही नज़र में गिरती हूँ।

एक समय था जब मैं किसी असहाय को देख कर खुद आगे बढ़ती थी
और आज कोई मदद मांगे भी तो, न जाने क्यों मैं उसी से डरती हूँ।

मुखौटा ओढ़े लोगों से थी जब मैं अनजान, तो खुशियां बांटते नहीं थकती थी
वाकिफ क्या हुई मैं उन चेहरों की फितरत से, अब अपनों को भी बेगाना समझती हूँ।

अचानक ये बदलाव नही आया है, धीरे धीरे मैं तुमको अपनाती थी
तुम्हारी कामयाबी मुबारक हो तुमको, अब तो आईने में भी मुखौटा देखती हूँ।

मूल चित्र : Unsplash

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Shivangi Agrawal

Writing is fun..!! read more...

3 Posts | 5,186 Views
All Categories