कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कैसे ढूंढें ऐसा काम जो रखे ख्याल आपके कौशल और सपनों का? जुड़िये इस special session पर आज 1.45 को!
मुखौटा ओढ़े लोगों से थी जब मैं अनजान, तो खुशियां बांटते नहीं थकती थी, वाकिफ क्या हुई मैं उन चेहरों की फितरत से, अब अपनों को भी बेगाना समझती हूँ।
पूजती थी मैं जिस इंसानियत को, आज हर गली में बिकते दिखती है कभी मासूमियत थी मुझमें, अब हर दिन अपनी ही नज़र में गिरती हूँ।
एक समय था जब मैं किसी असहाय को देख कर खुद आगे बढ़ती थी और आज कोई मदद मांगे भी तो, न जाने क्यों मैं उसी से डरती हूँ।
मुखौटा ओढ़े लोगों से थी जब मैं अनजान, तो खुशियां बांटते नहीं थकती थी वाकिफ क्या हुई मैं उन चेहरों की फितरत से, अब अपनों को भी बेगाना समझती हूँ।
अचानक ये बदलाव नही आया है, धीरे धीरे मैं तुमको अपनाती थी तुम्हारी कामयाबी मुबारक हो तुमको, अब तो आईने में भी मुखौटा देखती हूँ।
मूल चित्र : Unsplash
Writing is fun..!!
रंजनी हूँ! मैं, अब सिर्फ मैं हूँ
अब न मैं अबला हूँ, मैं आज की वुमनिया हूँ!
मुझे खुद के लिए लड़ना आता है…
मैं कविता हूँ
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!