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क्यों लड़कों की अपने ससुराल के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती?

हमारे समाज में लड़की वालों को कब तक लड़के वालों द्वारा बनाये गए मापदंडों पर खरा उतरना पड़ेगा? क्या शादी का मतलब है लड़की के घर वालों से लड़की का रिश्ता ख़त्म?

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हमारे समाज में लड़की वालों को कब तक लड़के वालों द्वारा बनाये गए मापदंडों पर खरा उतरना पड़ेगा? क्यों लड़के की अपने ससुराल की तरफ कोई ज़िम्मेदारी नहीं? 

हरीशंकर शर्मा जी की बेटी रूपम का देखने लड़के वाले आने वाले हैं। घर के सभी लोग बड़े उत्साहित हैं। रूपम अपने नाम के अनुसार बहुत सुंदर, अच्छी कद काठी की, सरकारी जॉब वाली अध्यापिका है, वो भी प्रथम दर्जे की। स्कूल में ग्यारवीं और बारवीं क्लास के बच्चों को मैथ्स पढ़ाती है।

शर्मा जी खुद आर्मी ऑफिसर हैं। उनकी पत्नी मीरा जी घरेलू महिला हैं और उनकी तीन बेटियां है। रूपम सबसे बड़ी, फिर रिया और पिया है। रिया बारवीं क्लास में है, तो पिया नौवीं क्लास में है।

और लड़के वाले…

उदित शर्मा, जो लड़के के पिता हैं, वह सरकारी अस्पताल में क्लर्क हैं। उनकी पत्नी कौशल्या प्राइवेट टीचर हैं, बेटा रोहित मल्टी नेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। दो बेटियां हैं, अंजू जिसकी शादी हो गई और वेदिका जो सातवीं में है।

बिचौलिए ने दोनों परिवार की आर्थिक स्थिति को देखभाल कर रिश्ता सुझाया था। अभी बात सिर्फ हरीशंकर जी और उदित जी से हुई थी। दोनों को यह रिश्ता काफी पसंद आया। उदित जी के अनुसार लड़की पढ़ी-लिखी होनी चाहिए। वह रूपम थी ही।

फिर क्या था! बिचौलिए ने रविवार का दिन तय किया, तो दोनों तैयार हो गए और उदित जी अपने बेटे और पत्नी के साथ अपने भाइयों को लेकर पहुंच गए लड़की देखने।

हरीशंकर जी और मीरा जी ने अपने किसी रिश्तेदार को नहीं बुलाया कि पहले रिश्ता ही जाए फिर सबको बता देंगे। सभी मेहमान कमरे में बैठे हैं। तभी कौशल्या जी ने कहा कि अब तो बुला लीजिए अपने बच्चों को हम भी मिल लेंगे।

तभी उनकी बेटियां आ जाती हैं। रूपम हाथ में चाय की ट्रे लेकर कमरे में दाखिल होती है। उसने बहुत सुंदर सी साड़ी पहनी है। सब बहिनें वहीं बैठ जाती हैं।

एक दूसरे का परिचय करवाया जाता है आपस में…

उदित जी को परिवार पसंद आ जाता है, लेकिन कौशल्या जी थोड़ी नाखुश लग रही हैं। तभी कौशल्या जी बोल पड़ीं, “और सब तो ठीक है, आपके बेटा नहीं है क्या?”

“हमें आपके घर में रिश्ता नहीं करना, आपके बेटा जो नहीं है”, कौशल्या जी ने गुस्से में कहा।

“यह क्या कह रही हैं आप”, हरीशंकर जी ने कहा।

“मैं बिल्कुल ठीक कह रही हूं। हमें आपके परिवार के साथ कोई रिश्ता नहीं करना। हमें ये नहीं पता था कि आपके कोई बेटा नहीं है।” कौशल्या जी के साथ आए और भी परिवार वाले उनका साथ देने लगे, “हमारा बेटा पूरी ज़िंदगी आपके घर का ही करता रहेगा क्या? और आपकी लड़की का ध्यान भी अपने मायके में लगा रहेगा। हम तो सारी उम्र इसी चक्करों में घूमते रहेंगे। मेरा बेटा कब तक आपके घर के कर्तव्यों का ही वहन करेगा?”

“हमें आपकी लड़की नहीं पसंद और ना ही यह रिश्ता मंज़ूर है”, और उदित जी अपनी बीवी के सामने कुछ नहीं बोलते। आए हुए सभी मेहमान चले जाते हैं। घर के सभी सदस्यों के चेहरे उतर जाते हैं।

इसमें हरीशंकर जी के परिवार की क्या गलती?

यह एक परिवार की कहानी नहीं समाज कि सच्चाई है। लड़की चाहिए जो सुंदर हो, सुशील हो, पढ़ी-लिखी हो, और सभी कामों में माहिर हो। जो एक अच्छी बहू में होनी चाहिए, वो सभी क्वालिटी होने के साथ-साथ ऐसा परिवार होना चाहिए जिसमें भाई हों चाहे छोटा ही हों। बिना लड़के के परिवार से रिश्ता करने से पहले हज़ार बार सोचते हैं, कहीं बार तो मना कर देते हैं और यदि रिश्ता कर भी लेंगे तो होने वाली बहू का इसका ताना पूरी ज़िंदगी सुनने को मिलेगा। कई बार तो उसे उसके परिवार से ताल्लुक रखने पर भी लगाम लगाई जाती है।

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मूल चित्र : Pexels 

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