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क्यों नहीं नारी अपने लिए सजती सँवरती?क्यों नारी स्वार्थपरता नहीं अपनाती?

१२ साल से शिव को पाने के लिए अनेकों निर्जल व्रतों के कठिन नियम मानते-मानते इस बार मेरे मन में ये प्रेरणा आई कि क्यों न मैं ये सारे व्रत सिर्फ अपने लिए रखूँ।

१२ साल से शिव को पाने के लिए अनेकों निर्जल व्रतों के कठिन नियम मानते-मानते इस बार मेरे मन में ये प्रेरणा आई कि क्यों न मैं ये सारे व्रत सिर्फ अपने लिए रखूँ।

हाल में ही बीती हरतालिका व्रत ने मेरे मन को अजीब मंथन में डाल दिया। हमारा देश भारत अनेकों रीति-रिवाज़ों, त्योहारों, व्रत, इत्यादि को मनाता आया है, जिसमें से अधिकतर सब पुरुष प्रधान हैं।

अपने घर में अपनी माँ, दादी, मामी, चाची, इत्यादि को तीज व्रत करते देखा था। लगा, ये शायद अपने प्रिय पति को अपनी प्रतिबद्धता दिखाने का सबसे अच्छा तरीका होता होगा। प्यार मोहब्बत के जोश मैं मैंने भी सबकी देखा-देखी शादी के पहले ही तीज व्रत करने का निश्चय कर लिया।

जब व्रत करने का मौका आया, तब असली आटे-चावल का मोल पता चला। तब समझ आया कि पूरा एक दिन, पूरी एक रात बिना पानी पिए, रात्रि जागरण करना कोई आसान काम नहीं है। देवी पार्वती ने न जाने कैसे इतनी घोर तपस्या की थी। पर उनसे क्या तुलना, वो तो साक्षात शक्ति हैं। देवी ने अपने अंदर शक्ति जागृत की, तभी वो शिव को पा सकीं और हमारे सृष्टि का निर्माण संभव हुआ।

आज देखा जाये, तो ये व्रत बस अधूरी, असंतुष्ट औरतों को पूरा करने के लिए, उनको समाज में जगह दिलाने के उपकरण रह गए हैं। सुहागन है, व्रत करती है, तो एक अलग पहचान है समाज में। नहीं तो, किसी अँधेरे कोने में गुम है नारी।

आखिर आज समाज में ऐसा क्यों है कि जब तक नारी के जीवन में एक पुरुष है, तब तक ही उसे सजने सँवरने का अधिकार है। क्यों नहीं नारी अपने लिए सजती सँवरती? क्यों नहीं नारी अपने आप को भी वैसे ही बिना शर्ते प्यार करती जैसे वो अपने परिवार को करती है। हालांकि नारी का सर्वोतम गहना है उसका अविरल प्रेम, उसकी पालन पोषण करने का प्राकृतिक स्वाभाव, उसके सृजन करने की क्षमता, पर दूसरों पर खुद को न्यौछावर करने के पहले नारी को स्वयं से प्रेम करना सीखना होगा। शिव को मांगने से पहले अपने अंदर शक्ति का आवाहन करना होगा।

अगर हम आने वाली बेटियों बेटो को ख़ुश देखना चाहते हैं तो आज समस्त नारी जाति को अपने वास्तविक शक्ति रूप में आना पड़ेगा। हमें अपना स्थान पाने के लिए नर की प्रतिलिपि नहीं बनाना, बस अपने फेमिनिन रूप में आना है। खुद की खुशियों के लिए किसी पर भी निर्भर रहना त्यागना होगा। हम किसी और को दे भी क्या सकते हैं अगर हमारे स्वयं-प्रेम का घड़ा खाली है। वो प्रेम जो संसार में रंग भरता है, वो सृजन जिसके बिना सब शून्य है, उसको गर्व से अपनाना होगा। नारी तुम्हें किसी और की मान्यता की ज़रुरत नहीं है!

ये नियम जिसने भी बनाया कि पति के स्वर्गवासी होने के बाद पत्नी दुबारा अपने जीवन में कभी रंग नहीं भर सकती, कभी किसी तीज त्यौहार में सम्मिलित नहीं हो सकती, वो कौन होते हैं भगवान की बनाई हुई किसी भी  कृति की खुशियां निर्धारित करने वाले। ये निर्णय व्यक्तिगत होना चाहिए।

कई सदियों से हमारे समाज में पुरुष प्रधान भावनाएं, पुरुष प्रधान नियम हम औरतों को दूसरे स्थान पर रखते आए हैं। हमारा स्थान, हमारी ख़ुशी, हमारा दुःख, हमारी उपलब्धियां सब पुरुष क्यों निर्धारित करते आये हैं। मैं ऐसा नहीं कहती कि औरतें श्रेष्ठ हैं पुरुषों से, या पुरुष श्रेष्ठ हैं हम से, पर जब तक औरतों को उनका स्थान नहीं मिलेगा तब तक सृष्टि में संतुलन नहीं हो सकता हैं क्यूंकि, शिव के बिना शक्ति अधूरी है और शक्ति के बिना शिव।

असंतुलन जो हम निरन्तर अपने आसपास देख रहे है, संसार में प्रेम, कला, दया, भाई-चारा ख़त्म होता जा रहा है क्यूंकि पुरुष सिर्फ अपने तार्किक दिमाग से नेतृत्व कर रहा है। आज समय को और हमारी धरती माँ को ज़रुरत है ‘फेमिनिन’ नेतृत्व की, नहीं तो ये असंतुलित ‘मैस्कुलिन’ ऊर्जा विनाश को और अग्रसर है।

१२ साल से शिव को पाने के लिए अनेकों निर्जल व्रतों के कठिन नियम मानते-मानते इस बार मेरे मन में ये प्रेरणा आई कि क्यों न मैं ये सारे व्रत सिर्फ अपने लिए रखूँ। अपने स्वास्थ, अपने प्रचुरता के लिए शिव से प्रार्थना करुँ। शायद स्वयं दिव्य शक्ति ने मुझे प्रेरित किया कि ये तपस्या इस बार मैं अपने लिए करुँ और समस्त नारी जाति के लिए करुँ जो सदियों से शायद जन्म लेते ही शोषित हुई हैं। अपने अंदर शक्ति का आवाहन करूँ। शिव भी यही चाहते हैं।

मूल चित्र : Unsplash

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DragonFly

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