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मानते हैं ना आप कि बात करना बहुत आसान है पर निभाना मुश्किल?

चाहे कोई कुछ भी कहे पर अभी भी ज़्यादातर माँ-बाप को बेटी के ससुराल के साथ निभाना ही पड़ता है, चाहे वो लड़की के परिवार के साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें।

चाहे कोई कुछ भी कहे पर अभी भी ज़्यादातर माँ-बाप को बेटी के ससुराल के साथ निभाना ही पड़ता है, चाहे वो लड़की के परिवार के साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें।

इस बार रूही के ससुराल वालों के मन में लड्डू फूट रहे थे। रूही की शादी हुए सिर्फ दो महीने ही हुए थे, जब भी रूही के घर से कोई आता तो ढेर सारी मिठाईयां और पूरे परिवार के लिए कपड़े भी लेकर आता। शादी के समय ही उन लोगों ने इतना दिया कि महेश जी और उनके सातों पुश्तें निहाल हो गए। जितने भी रिश्तेदार शादी में आए थे, उनके लिए भी मंहगे-मंहगे गिफ्ट दिये कि सारे रिश्तेदार रूही के गुण गाने लगे। घर में सब खुश थे। महेश जी और अहिल्या जी के दोस्त और सहेलियां सब कहते, “भाग्यशाली हैं आप जो इतनी सुंदर बहू मिली और इतना दहेज लेकर आई। जबसे आई है बस आपके घर लक्ष्मी जी का आगमन ही हो रहा है।”

मन ही मन महेश और अहिल्या जी फूले नहीं समाते। अभी तीज का त्यौहार भी आने वाला था, सो इस बार भी उन्हें बहुत सारी गिफ्ट्स और शगुन मिलने की उम्मीद थी। हो भी क्यों ना इकलौती लड़की देखकर ही तो शादी की थी, सब तो रूही का ही था।

अचानक रूही के पापा को बिज़नेस में बहुत बड़ा घाटा हुआ और वो लोग सड़क पर आ गए। रूही को इस बारे में कुछ खबर न थी। लेकिन उन लोगों ने रूही के ससुर और अपने दामाद को ये बातें बताईं। महेश जी को तो जैसे सदमा ही लग गया ये सुनकर, “कितने लेने देने वाले थे आशीष जी, लेकिन अब जब इनके पास कुछ है ही नहीं तो हमें क्या देंगे।”

धीरे-धीरे ये बात रूही के कानों तक पहुंची और उससे अपने माता-पिता की ये हालत देखी ना गई। उनके लाख मना करने के बाद भी रूही ने उन्हें अपने घर रहने के लिए बुला लिया।

अब तो महेश और अहिल्या जी को मन ही मन अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन औपचारिक तौर पर कह दिया, “अरे ये तो आपका ही घर है, आराम से रहिए।”

उन्हें लगा कि वो लोग नहीं रहेंगे। उस समय आशीष जी के पास कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए वो वहीं रूक गए। उन्होंने भगवान को धन्यवाद देते हुए कहा, “मेरी बेटी को कितना अच्छा ससुराल मिला है, भगवान सबको ऐसा ही ससुराल दे।”

कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक चला लेकिन धीरे-धीरे महेश और अहिल्या जी हर बात पर अपना एहसान जताने लगे। अब आशीष जी को भी वहां रहना उचित नहीं लगा। रूही भी इस बात को महसूस कर रही थी।

कुछ दिन बाद, बातों ही बातों में अहिल्या जी ने कह ही दिया कि बेटी के घर अधिक दिनों तक रहना उचित नहीं होता। रूही के माता-पिता तो पहले ही लज्जित थे, वो रहना नहीं चाहते थे। लेकिन रूही के कहने और महेश जी और अहिल्या जी के कहने पर रूक गए थे। लेकिन उन्होंने ये सीख ले ली कि बोलने और करने में ज़मीन आसमान का फर्क होता है।

रूही भी ये समझ गई कि ससुराल ससुराल ही होता है। रूही के माता-पिता को वहां से चले जाना ही सही लगा। वो लोग वहां से चले गए। कुछ दिनों बाद उनकी आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी। धीरे-धीरे आशीष जी का बिज़नेस फिर से चल निकला।

ज़िंदगी उनको एक सबक सीखा गई कि रिश्तेदार दुःख की घड़ी में आपको दो मीठे बोल बोल सकते हैं, लेकिन आपको दो दिन पनाह नहीं दे सकते। चाहे कोई कुछ भी कहे पर अभी भी ज़्यादातर माँ-बाप को बेटी के ससुराल के साथ निभाना ही पड़ता है, चाहे वो लड़की के परिवार के साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें। इस डर से नहीं कि बेटी के ससुराल वाले हैं, इसलिए क्योंकि हमारी बेटी उस घर में है और हर माता-पिता यही चाहते हैं कि हमारी बेटी जहां भी रहे सुखी रहे। इसलिए वो बेटी के ससुराल वालों का अनादर नहीं करते हैं। इसलिए जैसे पहले आशीष जी लेन-देन करते थे फिर से वो सिलसिला चल निकला।

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मूल चित्र : YouTube (ससुराल सिमर का धारावाहिक से )

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Pragati Tripathi

This is Pragati B.Ed qualified and digital marketing certificate holder. A wife, A mom and homemaker. I love to write stories, I am book lover. read more...

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