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कन्या विहीन धरा को तुम कैसे पुष्पित कर पाओगे? फिर कन्याओं का भोग तुम कैसे लगा पाओगे? जब तक असुरक्षित कन्या और नारी हैं, तब तक चंद्रघंटा पूजा अधूरी हमारी है!
करते हैं हम दुर्गा का स्मरण हर बार
करते शैलपुत्री का आह्वान हर बार
देवी रूपी कन्याओं का भोग लगाते हर बार
करते ब्रह्मचारिणी का जय जय कार हर बार
क्या देश के ज्वलंत प्रश्न को सोचा है एक बार?
कोख में कन्याएं कुचली जाती हैं
कूड़ेदान में बेटियां फेंकी जाती हैं
दैत्यों की अपावन नज़रों से वह घायल हो जाती हैं
कहीं तो बाल विवाह का दुःख वह झेल जाती हैं
घर-बाहर, देश-द्वार वह असुरक्षित खुद को पाती हैं
कन्या विहीन धरा को तुम कैसे पुष्पित कर पाओगे?
फिर कन्याओं का भोग तुम कैसे लगा पाओगे?
जब तक असुरक्षित कन्या और नारी हैं
तब तक चंद्रघंटा पूजा अधूरी हमारी है
हर कन्या कूष्मांडा
हर कन्या स्कंदमाता है
मत आने दो आंच अस्मिता पर उसके
फिर कात्यायनी पूजा हमारी पूरी है
फिर कालरात्रि पूजा हमारी पूरी है
वृद्धाश्रम में माताओं को देख
मन द्रवित हो उठता है
घर की हर मां महागौरी है
घर की हर मां सिद्धिदात्री है
दे दो सम्मान घर आंगन में उसको
भोग लगा दो घर मंदिर में उसको
फिर दुर्गा पूजा हमारी पूरी है
फिर शक्ति पूजा हमारी पूरी है
मूल चित्र : Pixabay
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